जम्मू कश्मीर में बेरोजगारी के आगे हर कोई दिख रहा लाचार
राज्य में तीन दशक से जारी आतंकवाद सीमित संसाधन धारा 370 के कारण बाहर से कम निवेश और रोजगार नीति न होने के कारण बेरोजगारों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
जम्मू, रोहित जंडियाल । राज्य में तीन दशक से जारी आतंकवाद, सीमित संसाधन, धारा 370 के कारण बाहर से कम निवेश और रोजगार नीति न होने के कारण बेरोजगारों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। राजनीतिक दल भी इस मुद्दे को दठाते आए हैं, परंतु किसी ने भी इसके समाधान के लिए प्रयास नहीं किए। नतीजतन जम्मू कश्मीर में बेरोजगारी की दर देश में सबसे अधिक है।
राज्य में 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की जनसंख्या 1.25 करोड़ थी। यह बढ़कर अब एक करोड़ तीस लाख से भी अधिक हो गई है। इनमें युवाओं की संख्या बहुत है। विडम्बना यह है कि राज्य सरकार युवाओं को रोजगार देने में लगातार विफल रही हैं। सेंटर फार मोनीटरिंग इंडियन इकानमी की दो साल पहले की रिपोर्ट के अनुसार जम्मू कश्मीर में बेरोजगारी की दर 12.7 प्रतिशत थी। यह देश में सबसे अधिक थी। यह राज्य के सभी राजनीतिक दल भी जानते हैं। मगर कोई भी रोजगार नीति बना पाने में पूरी तरह से विफल रहे हैं।
इस समय राज्य के रोजगार केंद्रों में ही एक लाख के करीब युवाओं ने अपना पंजीकरण करवाया हुआ है। जबकि गैर अधिकारिक आंकड़ों के अनुसार बेरोजगारों की संख्या छह लाख को भी पार कर चुकी है। इनमें डाक्टर, इंजीनियर, पीएचडी, पोस्ट ग्रेजुएट, ग्रेजुएट और अन्य शामिल हैं। राज्य में बेरोजगारी का आलम यह है कि अगर चतुर्थ श्रेणी के लिए भी पद निकलते हैं तो हजारों की संख्या में उम्मीदवार आवेदन भरने के लिए आ जाते हैं। मेडिकल कालेज में पिछले वर्ष नर्सिंग अर्दली के पद निकले थे। इनमें नब्बे हजार से अधिक युवाओं ने आवेदन भरा था।
बेरोजगारी के कई कारण
राज्य में बेरोजगारी के कई कारण हैं। तीस साल से कश्मीर आतंकवाद ग्रस्त हैं। पहले कश्मीर में पर्यटन के कारण भी हजारों लोगों को रोजगार मिल जाता था। मगर आतंकवाद के बाद इसमें भी कमी आई है। कश्मीर के हालात खराब होने के कारण वार्षिक बाबा अमरनाथ की यात्रा आधी ही रह गई है। दो महीने की इस यात्रा के दौरान भी कइयों को रोजगार मिलता था। अब उसमें भी कमी आई है। धारा 370 के कारण यहां पर बाहर से निवेश करने वालों की संख्या न के बराबर ही है। बहुत कम लोगों ने उद्योग स्थापित किए हैं। इससे निजी क्षेत्र में भी रोजगार के साधन बहुत कम है। पीडीपी-भाजपा सरकार के समय में भी देश के प्रतिष्ठित उद्योगपतियों को जम्मू कश्मीर में निवेश करने के लिए आकर्षित किया गया था। लेकिन किसी ने भी रूचि नहीं दिखाई।
पैसे के लिए उठाते हैं पत्थर
कश्मीर के हालात खराब होने का एक कारण बेरोजगारी भी है। कश्मीर में युवा पैसों के लिए पत्थरबाजी भी करते हैं। कई बार पुलिस के अधिकारियों ने भी कहा है कि अलगाववादी रुपये देकर युवाओं को पत्थर मारने के लिए उकसाते हैं। कई युवाओं को पाकिस्तान आतकंवाद की राह भी धकेला है।
नहीं सफल हुई योजना
राज्य में दस साल पहले नेशनल कांफ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन सरकार ने रोजगार नीति बनाई। पांच दिसंबर 2009 को शेर-ए-कश्मीर रोजगार योजना लांच की गई। इसके तहत राज्य सरकार को पांच वर्ष में पांच लाख युवाओं को रोजगार देना था। हर वर्ष एक लाख युवाओं को सरकारी नौकरी या स्वयं रोजगार योजना के तहत रोजगार उपलब्ध करवाना था। सेल्फ हेल्प ग्रुप में 50 हजार को रोजगार, हैंडीक्राफ्ट, हैंडलूम में 20 हजार, स्किल डेवलपमेंट से दो लाख युवाओं को रोजगार देना था। यह योजना भी सफल नहीं हो पाई। इस योजना के तहत बेरोजगार युवाओं को स्टाइपेंड भी उपलब्ध करवाने का प्रावधान था। यह प्रक्रिया दो साल तक चली। बाद में विफल हो गई। रोजगार हासिल करने के लक्ष्य नाकाम साबित हुए।
कभी हां, कभी न
राज्य में युवाओं को रोजगार देने के लिए साल 2008 में ही ओवरसीज इंप्लायमेंट कॉरपोरेशन का गठन किया। इसके माध्यम से विदेशों में यहां के युवाओं को ोजगार देना था। मगर योजना पूरी तरह से विफल हुई। कारपोरेशन पर लाखों रुपये खर्च होने के बावजूद किसी को भी रोजगार नहीं मिल पाया। इस कारपोरेशन को बाद में सरकार ने बंद ही कर दिया। अब राज्यपाल प्रशासन ओवरसीज इंप्लायमेंट कारपोरेशन को फिर से शुरू करने पर विचार कर रहा है। प्रशासन का मानना है कि यह युवाओं को रोजगार दिलाने में अहम हो सकती है। कौशल प्राप्त युवाओं की विदेशों में बहुत मांग होती है। कारपोरेशन से युवाओं को रोजगार दिया जा सकता है।
निजी क्षेत्र के लबए बनाई नीति
राज्य प्रशासन ने बाहर से यहां पर निवेश करने वालों को कई लाभ देने की भी घोषणा की है। कुछ सप्ताह पहले ही स्वास्थ्य के क्षेत्र में मेडिकल कालेज, अस्पताल, नर्सिंग कालेज खोलने वालों को सब्सिडी देने की घोषणा की है। प्रशासन का कहना है कि इससे भी यहां पर रोजगार के अवसर बढ़ेंगे परंतु अभी तक किसी भी निजी क्षेत्र के बड़े ग्रुप ने यहां पर अस्पताल खोलने के लिए रूचि नहीं दिखाई है। गौरतलब है कि राज्य में 91 प्रतिशत लोग सरकारी अस्पतालों पर निर्भर हैं।
धारा 370 समस्या की जड़
जम्मू-कश्मीर में धारा 370 होने के कारण बेरोजगारों की संख्या अधिक है। यहां पर बाहर से कोई भी उद्योगपति निवेश नहीं करना चाहता है। यही कारण है कि अभी तक राज्य में न के बराबर ही उद्योग हैं। इससे युवाओं को रोजगार के अवसर भी हासिल नहीं होते हैं। धारा 370 हटने से यहां पर लोग निवेष करेंगे और राज्य के हालात में भी सुधार होगा।
एडवोके अंकुर शर्मा।