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Kashmiri Saffron: ई-ऑक्शन पोर्टल ने बदली विश्व विख्यात कश्मीरी केसर उगाने वाले किसानों की तकदीर

Kashmiri Saffron ई-ऑक्शन के कारण जहां हम पूरे हिंदोस्तान में अब अपना केसर बेचने में समर्थ हैं वहीं जीआई टैगिंग ने गुणवत्ता पर उठने वाले सवाल पर भी लगाम लगा दी है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Mon, 31 Aug 2020 03:51 PM (IST)Updated: Mon, 31 Aug 2020 05:23 PM (IST)
Kashmiri Saffron: ई-ऑक्शन पोर्टल ने बदली विश्व विख्यात कश्मीरी केसर उगाने वाले किसानों की तकदीर
Kashmiri Saffron: ई-ऑक्शन पोर्टल ने बदली विश्व विख्यात कश्मीरी केसर उगाने वाले किसानों की तकदीर

श्रीनगर, नवीन नवाज। अपनी सुगंध-स्वाद औेर रंग के लिए विश्व विख्यात कश्मीरी केसर उगाने वाले किसानों के अच्छे दिन आ चुके हैं। बाजार, सरकार और मौसम सब मेहरबान हैं। यही कारण है कि पैन इंडिया ई-ऑक्शन पोर्टल पर 100 से ज्यादा किसान और विक्रेता अपना पंजीकरण करा चुके हैं। यही नहीं 72 किसान ई-पोर्टल का इस्तेमाल करने, अपने सामान की ग्रेडिंग और जीआई टैगिंग के बारे में प्रशिक्षण भी प्राप्त कर चुके हैं। गुस्सु, पांपोर में बनाए गए स्पाइस पार्क के प्रशासक अब्दुल रशीद अलेई ने कहा कि मैं तो सरकारी आदमी हूं, सब अच्छा ही कहूंगा, लेेकिन बीते एक सप्ताह में मैंने जो यहां किसानों में उत्साह देखा है, दुआ करता हूं कि वह हमेशा बना रहे। यह उत्साह तकदीर बदलने की उम्मीद से है।

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आमतौर पर कश्मीरी केसर का भाव 1 लाख 60 हजार रुपये से 3 लाख रुपये प्रति किलोग्राम के बीच रहता है। दुनियाभर में करीब 300 टन केसर की पैदावार होती है। ईरान में पूरे विश्व में पैदा हाेने वाले केसर का 90 प्रतिशत पैदा होता है।

जावेद अहमद नामक एक केसर व्यापारी ने कहा कि मैं सिर्फ सऊदी अरब में ही केसर का निर्यात करता हूंं। वहां हमारे कुछ स्थायी ग्राहक हैं, नए ग्राहक केसर की गुणवत्ता को लेकर 10 सवाल करते हैं। अब उनके सवालों का जवाब देने की जरुरत नहीं रही है। ई-ऑक्शन के कारण जहां हम पूरे हिंदोस्तान में अब अपना केसर बेचने में समर्थ हैं, वहीं जीआई टैगिंग ने गुणवत्ता पर उठने वाले सवाल पर भी लगाम लगा दी है। 

ऑल जेएंडके सैफरॉन ग्रोअर्ज डेवलेपमेंट मार्केटिंग एसोसिएशन से जुड़े अब्दुल मजीद वानी ने कहा कि पिछला साल पैदावार के लिहाज से ज्यादा अच्छा नहीं रहा है, लेेकिन जो संकेत अब मिल रहे हैं, वह अच्छे दिनों की आमद के हैं। केसर मिशन का असर नजर आने लगा है, स्पाइस पार्क पूरी तरह क्रियाशील हो रहा है। जीआई मार्क मिला है और अब यहां पूरे हिंदोस्तान में माल बेचने के लिए ई पोर्टल शुरु हुआ है। इसी सप्ताह बारिश भी हुई है। यह बारिश यहां हमारे केसर के खेतों के लिए बहुत जरुरी थी।

कश्मीर में केसर का इतिहास दो हजार साल से भी ज्यादा पुराना है। 500 ईसा पूर्व चीन के महान चिकित्सक वॉन जेन ने कश्मीर को केसर का घर बताया था। दक्षिण कश्मीर के पुलवामा, पांपोर और सेंट्रल कश्मीर के बडगाम व श्रीनगर में भी केसर की पैदावार होती है। दुनियाभर में करीब 300 टन केसर पैदा होता है। वहीं भारत में करीब 17 टन केसर पैदा होता है। वह जम्मू-कश्मीर में ही। ईरान दुनिया का 90 प्रतिशत केसर पैदा करता है। स्वीडन, स्पेन, इटली, फ्रांस और ग्रीस में भी केसर खूब होता है।

एक किलो प्रति हेक्टेयर से नीचे चला गया था उत्पादन: घाटी में 260 गांवों के करीब 22 हजार परिवार केसर की खेती से जुड़े हैं। करीब 40 साल पहले तक वादी में 5707 हेक्टेयर जमीन पर केसर की खेती होती थी, जो वर्ष 2010 में सिमटकर 3715 हेक्टयेर रह गई थी। इसी दौरान उत्पादन भी प्रति हेक्टयर 3.13 किलोग्राम से घटकर 1.88 किलोग्राम रह गया। अनियोजित शहरीकरण, सिंचाई का अभाव और आतंकवाद ने कश्मीर में केसर की खेती को नुकसान पहुंचाया। वादी में इसकी खेती ज्यादातर बारिश के पानी पर निर्भर करती रही है। इसके अलावा खेतों में उभरती बस्तियां और सीमेंट के कारखानों से निकलने वाले धुएं और धूल ने भी केसर की क्यारियों को खाना शुरु कर दिया था। स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कई बार केसर के किसानों को प्रति हेक्टयेर एक किलो से भी कम केसर मिला।

केसर मिशन: लगातार घटते उत्पादन और सिमटते खेतों के बीच गायब होती केसर की महक को फिर से जिंदा करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री डाॅ मनमोहन सिंह ने राष्ट्रीय केसर मिशन शुरु किया था। वर्ष 2010-2011 में भारत सरकार द्वारा 411 करोड़ रुपये की परियोजना को मंजूरी दी गई थी, जिसके तहत 3,715 हेक्टेयर केसर की क्यारियों के जीणोद्धार का प्रस्ताव था। मिशन के तहत पंपोर के दुस्स में इंडिया इंटरनेशनल केसर ट्रेड सेंटर (केसर पार्क) नाम से एक व्यापार केंद्र बनाया गया है। इस केंद्र पर, किसानों को फसल की कटाई चुनाई के बाद के काम के लिए उच्च तकनीक की सुविधाएं मिलेंगी। इसमें केसर को सूखाने, छांटने, पैकिंग, वर्गीकरण और गुणवत्ता परीक्षण इत्यादि की सुविधायें होंगी। इसके अलावा यह केंद्र केसर की ई-नीलामी के माध्यम से केसर के विपणन की सुविधा भी दे रहा है। केसर मिशन के तहत 2,500 हेक्टेयर क्षेत्र में केसर की क्यारियों कायाकल्प किया गया है और चालू सत्र में इसकी जोरदार पैदा होने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि एनएमएस से पहले के वर्षों में जम्मू और कश्मीर में केसर का उत्पादन औसतन 3.13 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से घटकर 1.88 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रह गया था।

400 करोड़ की है परियोजना: दुस्सु, पांपाेर में बनाए किए अंतरराष्ट्रीय स्तर के मसाला पार्क के प्रशासक बशीर अहमद अलेई ने कहाकि राष्ट्रीय मिशन केसर 400 करोड़ ऱपये की परियोजनाहै और इसके जरिए ही कई उजड़ चुके केसर के खेत फिर से बहाल हुए हैं। करीब 400 करोड़ रुपये की इस परियोजना का एक बड़ा हिस्सा खर्च किया गया है। किसानों के लिए ड्रिप इरिगेशन, बोरवेल की सुविधा बहाल की गई है। दुस्सु में केसर की ग्रेडिंग, उसे सुखाने, उसकी पैकिंग मार्केटिंग की पूरी सुविधा बहाल की है। ई-मार्केिटंग और जीआई प्रमाण की सुविधा भी हम दे रहे हैं। हमने कश्मीर में केसर उत्पादकों और देश भर के खरीदारों को ‘सैफरन आक्शन इंडिया डॉट कॉम’ पर खुद को व्यापारी के रूप में पंजीकृत करने के लिए कहा है। उन्होंने कहा कि इससे परेशानी मुक्त ई-ट्रेडिंग सुनिश्चित होगी। हम पैन-इंडिया ई-ऑक्शन पोर्टल के माध्यम से जीआई-टैग (विशिष्ट भौगोलिक पहचान) वाले कश्मीर केसर के व्यापार को प्रोत्साहित करने का प्रयास कर रहे हैं। बीते एक सप्ताह सेजारी इस प्रक्रिया क तहत अब 100 से ज्यादा लोग पंजीकृत हो चुके हैं।


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