डल झील हमारे लिए जिंदगी है जिस दिन यह खत्म उस दिन कश्मीर और हम भी खत्म हो जाएंगे
डल झील की लहरों को देखते हुए कहा, लोगों के लिए यह झील है, लेकिन हमारे लिए जिंदगी। जिस दिन यह खत्म हो गई, उस दिन समझो कश्मीर और हम लोग भी खत्म हो जाएंगे।
श्रीनगर, नवीन नवाज। अपने हाउसबोट के बाहर बैठे तारिक अहमद पटलू ने डल झील की लहरों को देखते हुए कहा, लोगों के लिए यह झील है, लेकिन हमारे लिए जिंदगी। जिस दिन यह खत्म हो गई, उस दिन समझो कश्मीर और हम लोग भी खत्म हो जाएंगे।
आज यह बीमार है, इसके लिए हम लोग ही जिम्मेदार हैं। बाहर से लोग आएंगे, घूमेंगे और चले जाएंगे, लेकिन इसे स्वच्छ बनाना हमारी ही जिम्मेदारी है। यही सीख मैं यहां रहने वालों और आने वाली पीढ़ी को देने का प्रयास कर रहा हूं। मुझे अच्छा लगता है कि जब लोग अपने बच्चों को मेरे साथ डल की सफाई के लिए भेजते हैं।
डल झील में बने हाउसबोट में पैदा हुए तारिक ने कहा कि मैं जब छोटा था तो इस झील में नहाता था। झील के गैर आबादी वाले हिस्से में पानी पीने लायक था, लेकिन आज झील के पानी को हाथ लगाते हुए डर लगता है। यह बेहद गंदी हो चुकी है। इसे साफ बनाना ही मेरा मिशन है।
झील साफ रहे इसके लिए मैं बच्चों को समझाता हूं, ताकि जब वह बड़े हों तो उनके दिलो दिमाग पर झील की अहमियत का असर रहे। तारिक ने कहा कि मैं किसी गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) का सदस्य नहीं हूं, लेकिन झील के विकास और संरक्षण के लिए काम करने वाली प्रत्येक संस्था के लिए बतौर वालंटियर काम करता हूं।
एक विदेशी ने दिखाई राह :
तारिक ने बताया कि जब मैं छोटा था, यहां एक विदेशी पर्यटक आया था। उसने झील की हालत देखी और फिर उसने इसकी सफाई शुरू की। उसने होप नामक संस्था भी बनाई। उसने यहां झील में रहने वाले लोगों को अपने मिशन में जोड़ा था। वह खुद भी हमारे साथ झील में उगी काई निकालता था, झील में गिरे कचरे को उठाता था। बाद में उसकी मौत हो गई।
उसके साथ रहते हुए मुझे अहसास हुआ था कि झील सिर्फ हमारा घर नहीं, हमारी जिंदगी भी है। उसके बाद मैंने यहां खुद विभिन्न हाउसबोट में जाकर उनमें रहने वालों को झील में कचरा फेंकने से होने वाले नुकसान के बारे में बताना शुरू कर दिया। मैं खुद हाऊसबोट वाला हूं। इसलिए सभी मेरी बात सुनते हैं। मैं खुद किश्ती लेकर कचरा उठाने के लिए जाल लेता और झील के विभिन्न हिस्सों में घूमता हूं। मेरे साथ मेरे कई दोस्त भी साथ आते हैं।
मिशन में बच्चों का अहम योगदान : तारिक ने बताया कि एक दिन मैंने देखा कि शिकारे में सैर के लिए बैठे बच्चे बड़े चाव से मल्लाह से उसका चप्पू लेकर झील में चला रहे थे। मैंने किश्ती ली और उन बच्चों के शिकारे के पास पहुंच गया। मैंने वहां पानी में तैर रही प्लास्टिक की बोतलों को उठाना शुरू कर दिया।
यह देखकर कुछ बच्चों ने भी मुझसे मेरा नेट मांगा और बोतले जमा करने लगे। बड़ों के बजाए बच्चे चीजें जल्दी समझते हैं। इसलिए मैंने अपनी बेटी को पहले झील की सफाई के बारे में समझाया। वह मेरे साथ अक्सर झील में सफाई के लिए जाती है। उसे देखकर यहां अन्य लोगों ने भी अपने बच्चों को मेरे साथ भेजना शुरू कर दिया। मैंने स्कूलों में जाकर छात्रों को जागरूक करना शुरू किया।
उन्हें झील की सफाई के लिए आमंत्रित किया। झील के आस-पास बच्चों की रैलियों का आयोजन किया और आज करीब 200 से ज्यादा स्कूली छात्र नियमित अंतराल पर बारी बारी यहां आते हैं और झील की सफाई में सहयोग करते हैं। इस मिशन में बच्चों का अहम योगदान है।