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Jammu Kashmir: फारूक की अचानक रिहाई ने चौंकाया, उनकी चुप्पी पर सब हैरान

किसी ने यहां नहीं सोचा था कि उन्हें रिहा किया जाएगा। इससे भी ज्यादा हैरानी अनुच्छेद 370 जम्मू कश्मीर पुनर्गठन और आटोनामी जैसे मुद्दों पर उनकी तथाकथित चुप्पी से हुई है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Sat, 14 Mar 2020 12:18 PM (IST)Updated: Sat, 14 Mar 2020 12:18 PM (IST)
Jammu Kashmir: फारूक की अचानक रिहाई ने चौंकाया, उनकी चुप्पी पर सब हैरान
Jammu Kashmir: फारूक की अचानक रिहाई ने चौंकाया, उनकी चुप्पी पर सब हैरान

श्रीनगर, राज्य ब्यूरो : नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री व वर्तमान सांसद डॉ. फारूक अब्दुल्ला से पीएसए हटाकर उनको अचानक रिहा करना हर किसी को चौंका रहा है। यही नहीं रिहाई के बाद फारूक की चुप्पी भी सभी को हैरान कर रही है। हर किसी को उम्मीद थी कि वह रिहा होने के बाद जरूर गरजेंगे। ऐसे में उनके सियासी कदम पर सियासी दलों समेत राजनीतिक विशेषज्ञों की पैनी नजर है। फारूक ऐसे नेता हैं जो कभी भी कोई भी बयान दे सकते हैं। फारूक को पांच अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 को लागू किए जाने के मद्देनजर प्रशासन ने एहतियातन हिरासत में लिया था। इसके बाद सितंबर 2019 में उन पर पीएसए लगाया गया था।

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कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ रशीद राही ने कहा कि डॉ. फारूक अब्दुल्ला की रिहाई अचानक हुई है। किसी ने यहां नहीं सोचा था कि उन्हें रिहा किया जाएगा। इससे भी ज्यादा हैरानी अनुच्छेद 370, जम्मू कश्मीर पुनर्गठन और आटोनामी जैसे मुद्दों पर उनकी तथाकथित चुप्पी से हुई है। सभी यहां उम्मीद कर रहे थे कि वह आज गरजेंगे। आटोनामी, 370 जैसे मुद्दों को हवा देते हुए उन पर सियासत शुरू करने का एलान करेंगे। उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया। सभी को कयास लगाने पर मजबूर कर दिया है। हमें लगता है कि पहले वह हालात का जायजा लेंगे और उसके बाद ही अपने अगले कदम का एलान करेंगे।

कश्मीर मामलों के एक अन्य विशेषज्ञ अहमद अली फैयाज ने कहा कि डॉ. फारूक अब्दुल्ला एक मंङो हुए सियासतदान हैं। वह कश्मीर और कश्मीरी भावनाओं को ही नहीं, बल्कि दिल्ली को भी अच्छी तरह समझते हैं। उनकी रिहाई को आप जम्मू कश्मीर में हालात सामान्य बनाने व राजनीतिक गतिविधियों को बहाल करने की केंद्र सरकार की कोशिशों का हिस्सा बता सकते हैं। फारूक पहले अपने लोगों और नेकां के नेताओं व कार्यकर्ताओं से मुलाकात करेंगे। इसके बाद ही वह तय करेंगे कि आटोनामी जैसे सियासी एजेंडे को आगे लेकर चलना है या इससे बचना है। फैयाज कहते हैं कि जहां तक मैं समझता हूं कि वह 370, आटोनामी जैसे मुद्दों को उठाएंगे जरूर, लेकिन उन पर जोर नहीं देंगे। वह कोशिश करेंगे कि उन्हीं मुद्दों को उठाया जाए जिन्हें प्राप्त किया जा सकता है। इनमें जम्मू कश्मर के लिए पूर्ण राज्य का दर्जा, डोमिसाइल जैसे मुद्दे होंगे। इसके अलावा वह जम्मू कश्मीर में मुस्लिम बहुल इलाकों पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।

रिहा होते ही पिता की मजार पर पहुंचे डाॅ फारूक

अपने ही घर में 221 दिनों तक कैद रहने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री डॉ फारूक अब्दुल्ला शुक्रवार की शाम को अपने घर से बाहर निकले और सीधे अपने पिता स्व. शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के मजार पर पहुंचे। यहां वह करीब 30 मिनट तक रहे। शेख मोहम्मद अब्दुल्ला का मजार हजरतबल दरगाह से कुछ ही दूरी पर नसीम बाग में डल झील के किनारे स्थित है। फारूक चार अगस्त 2019 के बाद शुक्रवार को पहली बार गुपकार स्थित अपने मकान से बाहर निकले। उनके मकान को ही प्रशासन ने सबजेल का दर्जा दे रखा था। फारूक के साथ उनकी पत्नी मौली, बेटी साफिया अब्दुल्ला खान, नाती अदीम व कुछ अन्य करीबी रिश्तेदार भी शेख अब्दुल्ला की मजार पर पहुंचे। काले रंग का कुर्ता, काले रंग का ओवरकोट पहने फारूक ने कराकुली टोपी भी पहन रखी थी। उन्होंने काला चश्मा पहन रखा था। बीते दिनों ही उनकी आंखों की सर्जरी हुई है। फारूक ने अपने पिता की कब्र पर फातेहा अता किया। वह आठ सितंबर 2019 को शेख अब्दुल्ला की बरसी और उसके बाद पांच दिसंबर 2019 को उनकी जयंती पर भी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने कब्र पर नहीं आ पाए थे। कहा जाता है कि इन दोनों मौकों पर प्रशासन से अपने पिता की कब्र पर जाने देने की अनुमति का आग्रह किया, पर अनुमति नहीं मिली।

इन नेताओं ने मोदी-शाह से किया था आग्रह

पांच दिन पूर्व राकंपा अध्यक्ष शरद पवार, तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्षा ममता बनजी, माकपा प्रमुख सीता राम येचुरी समेत विपक्ष के प्रमुख नेताओं ने प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृहमंत्री को एक संयुक्त पत्र लिखकर जम्मू कश्मीर के तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों समेत प्रमुख राजनीतिक नेताओं की रिहाई का आग्रह किया था। जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी नामक एक नए सियासी संगठन के गठन के बाद डॉ. अब्दुल्ला की रिहाई को बड़ी सियासी पहल माना जा रहा है।

पांच अगस्त को लिया था एहतियातन हिरासत में

नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष और तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके व मौजूदा श्रीनगर के सांसद डॉ. फारूक को पांच अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 को लागू करने के मद्देनजर प्रशासन ने एहतियातन हिरासत में लिया था। इसके बाद सितंबर 2019 में उन्हें जन सुरक्षा अधिनियम 1978 के तहत बंदी बना गुपकार स्थित उनके घर में ही कैद किया। उनके घर को उपजेल के तौर पर अधिसूचित किया था। बाद में उनके पीएसए की अवधि को बढ़ाया था। दिसंबर में उन पर पीएसए में जो तीन माह का विस्तार दिया था, वह भी समाप्त हुआ है। उमर-महबूबा की रिहाई की उम्मीद डॉ. फारूक के पुत्र और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के अलावा पीडीपी अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती समेत नौ नेता पीएसए के तहत बंदी हैं। डॉ. अब्दुल्ला की रिहाई के बाद इन नेताओं को पीएसए से मुक्त किए जाने की संभावना प्रबल हो गई है।

सही दिशा में सही कदम: नेकां

नेशनल कांफ्रेंस ने डॉ. फारूक अब्दुल्ला की रिहाई का स्वागत करते हुए राज्य प्रशासन से उमर अब्दुल्ला समेत अन्य राजनीतिक नेताओं को भी रिहा करने की मांग की है। नेकां ने कहा कि फारूक की रिहाई जम्मू कश्मीर में एक न्यायसंगत और जनता का प्रतिनिधित्व करने वाली राजनीतिक प्रक्रिया की बहाली की दिशा में एक बड़ा कदम है। नेकां उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला व अन्य नेताओं को जल्द रिहा कर प्रशासन इस प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ा सकता है। हम सरकार से अन्य नेताओं की जल्द रिहाई का आग्रह करते हैं।

कश्मीर की उपेक्षा का उठा सकते हैं मुद्दा : फैयाज

फैयाज का मानना है कि फारूक अब्दुल्ला उपराज्यपाल के सलाहकारों में कश्मीर की उपेक्षा, जम्मू कश्मीर के बैंक के निदेशक मंडल में कश्मीर के प्रतिनिधियों की गैर मौजूदगी जैसे मुद्दों को उछालेंगे और अपना खोया जनाधार प्राप्त करने का प्रयास करेंगे। फिलहाल, हमें अगले कुछ दिनों तक इंतजार करना होगा। वैसे भी फारूक किसी भी समय कोई भी बयान दे सकते हैं, कोई भी सियासी कदम उठा सकते हैं। वह कोशिश करेंगे कि अलगाववाद और आतंकवाद को शह देने वाले किसी मुद्दे को न छेड़ा जाए।

सभी नेताओं की रिहाई का सही समय: इल्तिजा

पीडीपी की अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती ने पांच अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम को लागू किए जाने के मद्देनजर हिरासत में लिए गए सभी नेताओं की रिहाई की मांग की है। इल्तिजा ने अपनी मां के ट्वीटर हैंडल पर लिखा है, अब समय गया है कि सभी बंदियों को जिनमें जम्मू कश्मीर से बाहर की जेलों में बंद सैकड़ों की तादाद मे नौजवान भी हैं, तत्काल रिहा किया जाए। बहुत हो चुका, अब यह सब बंद होना चाहिए।

लोकतंत्र की मजबूती के लिए नेताओं की रिहाई जरूरी: अंसारी

पीपुल्स कांफ्रेंस के महासचिव और पूर्व मंत्री इमरान रजा अंसारी ने डॉ. फारूक अब्दुल्ला की रिहाई का स्वागत करते हुए कहा कि हम अपने नेता सज्जाद गनी लोन व अन्य नेताओं की रिहाई का भी आग्रह करते हैं। सज्जाद लोन को एमएलए हॉस्टल से रिहा करने के बाद घर में नजरबंद किया गया है। अंसारी ने पीपुल्स कांफ्रेंस के कुछ नेताओं व कार्यकर्ताओं पर पीएसए की पुष्टि करते हुए कहा कि पीएसए के तहत बंदी बनाए गए हमारे सभी साथियों को भी रिहा किया जाए। जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए सभी राजनीतिक नेताओं की रिहाई जरूरी है।

अन्य राजनीतिक नेताओं को भी रिहा किया जाए : तारीगामी

मार्क्‍सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी के महासचिव मोहम्मद यूसुफ तारीगामी ने डॉ. फारूक अब्दुल्ला की रिहाई का स्वागत करते हुए इसे गलतियों को सुधारने की दिशा में पहलकदमी करार दिया है। तारीगामी ने कहा कि यह देर से लिया गया एक स्वागयोग्य फैसला है। हिरासत में लिए गए अन्य राजनीतिक नेताओं, कार्यकर्ताओं व सिविल सोसाइटी के सदस्यों को भी जल्द रिहा किया जाना चाहिए। जम्मू कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया की बहाली के लिए एक साजगार माहौल पर जोर देते हुए तारीगामी ने कहा कि यह सभी राजनीतिक नेताओं व कार्यकताओं की रिहाई से ही तैयार होगा। जम्मू कश्मीर में इस समय कोई राजनीतिक हलचल नहीं है, इसलिए लोकतंत्र निलंबन की अवस्था में है।


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