Doda House Cracks: डोडा में जोशीमठ जैसे हालात नहीं, सही तरीके से निर्माण न होने से आई दरारें
डोडा जिले के ठाठरी क्षेत्र में मकानों व दुकानों में दरारें आने के मामले में जम्मू विश्वविद्यालय की टीम ने प्रारंभिक रिपोर्ट तैयार कर ली है। टीम शनिवार को फिर से डोडा के ठाठरी के नई बस्ती इलाके का दौरा करेगी। फिर से निरीक्षण होगा।
जम्मू, जागरण डिजिटल डेस्क। डोडा जिले के ठाठरी क्षेत्र में मकानों व दुकानों में दरारें आने के मामले में जम्मू विश्वविद्यालय की टीम ने प्रारंभिक रिपोर्ट तैयार कर ली है। शुरुआती जांच में यह पाया गया है कि इस क्षेत्र में जमीन धंस (सिंक) नहीं रही है। जोशीमठ जैसे हालात नहीं है। प्रारंभिक जांच के अनुसार क्षेत्र में ढांचागत निर्माण कार्य की प्रणाली को सही तरीके से अपनाया नहीं गया है। नालियों की व्यवस्था सही नहीं है। पानी भी नीचे जा रहा है। अगर क्षेत्र में जमीन धंस रही होती तो दरारें आसपास के क्षेत्रों तक पहुंचती या फिर बढ़ जाती।
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क्षेत्र में उपजे हालात को भूस्खलन के तरह की प्रक्रिया कहा जा सकता है। टीम शनिवार को फिर से डोडा के ठाठरी के नई बस्ती इलाके का दौरा करेगी। फिर से निरीक्षण होगा। इसके बाद और भी तमाम पहलुओं पर बारीकी से अध्ययन करने के बाद अंतिम रिपोर्ट तैयार की जाएगी। ठाठरी की नई बस्ते में गत दिनों मकानों व दुकानों में दरारें आने के बाद लोगों में भय है। प्रशासन ने मामले की गंभीरता को देखते हुए लोगों को सुरक्षित जगहों पर शिफ्ट किया है।
शोधकर्ताओं ने की नमूनों की जांच
घरों में आई दरारों का कारण जानने के लिए जम्मू विश्वविद्यालय के प्रो. जीएम भट्ट और प्रो. युद्धवीर सिंह की टीम ने शोधकर्ताओं के साथ ठाठरी का दौरा कर मिट्टी के नमूने लिए थे। हालांकि, यह टीम प्रदेश सरकार की तरफ से नहीं भेजी गई थी, बल्कि जम्मू विश्वविद्यालय के बायोलॉजी विभाग के विशेषज्ञों ने समाज के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारी के तहत घटनास्थल का दौरा कर निरीक्षण किया।प्रो. युद्धवीर सिंह ने कहा कि ठाठरी क्षेत्र में जमीन धंस नहीं रही है। यह बात काफी हद तक साफ हो चुकी है। वहां पर नालियों का सिस्टम काफी कमजोर है।
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विकास कार्य नहीं है दरार पड़ने का कारण
दरारें जैसे पहली थी, अभी वैसी ही हैं। उनमें वृद्धि नहीं हुई है। यह सौ मीटर से कम का क्षेत्र हैं जहां पर दरारें आई हैं। सड़कों का विस्तार या इसे चौड़ा करने का भी इससे कोई लेना-देना फिलहाल नजर नहीं आता है। इसे स्थानीय स्तर पर भूस्खलन के तरह की प्रक्रिया कहा जा सकता है। दरारों के लिए भूकंप व बिजली परियोजनाओं का भी लेना-देना नहीं हैं। जम्मू विश्वविद्यालय की टीम की प्रारंभिक रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया है कि चूंकि भूकंप के लिहाज से पूरा जम्मू कश्मीर संवेदनशील है। इसके बावजूद ठाठरी में उपजे हालात के लिए भूकंप का लेना-देना नहीं है। डोडा में पनबिजली परियोजनाओं का भी इस मामले से लेना-देना नहीं है।