यह रिश्ता इलाज का नहीं, अपनेपन का है: स्किम्स में भर्ती बच्चे के लिए माता-पिता की भूमिका निभा रहे डॉक्टर
अस्पताल के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डा. फारूक अहमद जान ने कहा कि इस घातक बीमारी से पीडि़त बड़ी उम्र के लोग भी बदहवास हो जाते हैं। यह तो बच्चा है।
श्रीनगर, रजिया नूर। कोरोना वायरस से पीडि़त दस वर्षीय एक बच्चे के लिए डॉक्टर उसके माता-पिता जैसे बन गए हैं। बच्चे की जिद के सामने परेशान होने के बजाय डॉक्टरों की इस टीम ने उसे ऐसे दुलारा कि वह अब उनका ही दुलारा हो गया। मरीज और डॉक्टरों के बीच का अपनेपन का यह रिश्ता आइसोलेशन वार्ड में भर्ती अन्य मरीजों को भी सुखद अहसास करा रहा है।
श्रीनगर के शेर ए कश्मीर आयुर्विज्ञान संस्थान सौरा अस्पताल में भर्ती एक दस साल के बच्चे के लिए डॉक्टर तो उसके माता-पिता जैसे बन गए हैं। डॉक्टरों ने उसे संभालने के लिए उसके हर तरह के नखरे सहे हैं। श्रीनगर के रथपोरा ईदगाह इलाके का रहने वाला यह बच्चा तब्लीगी जमात से संबंधित एक व्यक्ति के संपर्क में आया था। यह व्यक्ति कोरोना से पीडि़त है। आइसोलेशन वार्ड की मेडिकल टीम के अनुसार पीडि़त बच्चे को संभालना उनके लिए एक न केवल कठिन परीक्षा, बल्कि एक अलग तरह का अनुभव भी है। बच्चे का उपचार के साथ उसे दुलारना भी पड़ रहा है ताकि उसे माता पिता की कमी न खले।
बच्चे का उपचार कर रहे एक डाक्टर ने कहा, पहले उसे संभालना बहुत मुश्किल था। शुरुआत के चार दिनों तक चीखता चिल्लाता रहा। इससे उसका सही से इलाज करने में काफी दिक्कत आई। इधर, बच्चे के अभिभावक भी रुकना चाहते थे। आइसोलेशन वार्ड में ऐसा मुमकिन नहीं था। बच्चे को इलाज के साथ उसकी लगातार काउंसिलिंग भी करनी पड़ रही है।
बार-बार मां के पास जाने की जिद: डॉक्टर के अनुसार अपनी बीमारी को लेकर बच्चा काफी डरा हुआ था। शुरुआत के तीन-चार दिन वह लगातार अपने घर मां के पास जाने की जिद करता रहा। वार्ड से निकलने की कोशिश करता था। हमने उसे समझाया कि उसको अच्छे इलाज के लिए यहां रखा गया है। समझाया कि अगर वह वार्ड से बाहर जाने की कोशिश नहीं करेगा, दवाइयां समय पर खाएगा, हमारी सारी बातें मानेगा तो वह जल्दी ठीक हो जाएगा। इसके बाद उसे घर भेज देंगे। काफी समझाने के बाद अब वह मान गया है। अब हिदायतों पर अमल करता है। आइसोलेशन वार्ड में भर्ती अन्य मरीजों से बात करने लगा है। मोबाइल पर गेम खेलकर भी वक्त गुजार रहा है।
दो दिन बाद दूसरा टेस्ट किया जाएगा: अस्पताल के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डा. फारूक अहमद जान ने कहा कि इस घातक बीमारी से पीडि़त बड़ी उम्र के लोग भी बदहवास हो जाते हैं। यह तो बच्चा है। इस बच्चे को हैंडल करना हमारी टीम के लिए किसी चैलैंज से कम नहीं है। शुरू में दिक्कत हुई, लेकिन अब सब ठीक है। बच्चा रिकवर हो रहा है, लेकिन अभी उसके 14 दिन पूरे नहीं हुए हैं। दो दिन में उसका दूसरा टेस्ट किया जाएगा। टेस्ट रिपोर्ट यदि निगेटिव आई तो भी उसे अगले 14 दिनों तक आइसोलेशन में रखा जाएगा। इस बीच उसके टेस्ट रिपीट किए जाएंगे।