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Jammu Kashmir: आज से शुरू हुआ दीयों का मोख, भीष्मपंचक-भीष्म पितामह ने इस व्रत को किया था

उनका उपदेश सुनकर श्रीकृष्ण एवं अन्य सन्तुष्ट हुए और बोले पितामह! आपने शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक पांच दिनों में जो धर्ममय उपदेश दिया है उससे मुझे बडी प्रसन्नता हुई है। मैं इसकी स्मृति में आपके नाम पर भीष्म पंचक व्रत स्थापित करता हूं ।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Wed, 25 Nov 2020 10:58 AM (IST)Updated: Wed, 25 Nov 2020 11:05 AM (IST)
Jammu Kashmir: आज से शुरू हुआ दीयों का मोख, भीष्मपंचक-भीष्म पितामह ने इस व्रत को किया था
गलत काम करने से आपके शरीर पर ही नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम होते है।

जम्मू, जागरण संवाददाता : सनातन धर्म में विशेष महत्व रखने वाले भीष्म पंचक आज बुधवार से शुरू हो गए हैं। धर्मग्रंथों में कार्तिक माह में भीष्म पंचक व्रत का विशेष महत्त्व कहा गया है। यह व्रत कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी से शुरू होता है तथा कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है। भीष्म पंचक को ‘पंच भीखू’ के नाम से भी जाना जाता है। भीष्म पितामह ने इस व्रत को किया था। इसलिए यह भीष्म पंचक, नाम से प्रसिद्ध हुआ। भीष्म पंचक व्रत का उद्यापान होता है। डुग्गर प्रदेश में इसको दीयों का मोख कहते हैं। इस वर्ष 25 नवंबर बुधवार को भीष्मपंचक शुरू होंगे और 29 नवंबर रविवार को समाप्त होंगे।पांच दिनों तक लगातार घी का दीपक जलता रहना चाहिए।

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महंत रोहित शास्त्री ज्योतिषाचार्य ने बताया कि भीष्म पंचक के दिनों में किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। ब्रम्चार्य का पालन करना चाहिए। इन दिनों में शराब आदि नशे से भी दूर रहना चाहिए। व्रत रखने वालों को इस व्रत के दौरान दाढ़ी-मूंछ और बाल नाखून नहीं काटने चाहिए। व्रत करने वालों को पूजा के दौरान बेल्ट, चप्पल-जूते या फिर चमड़े की बनी चीजें नहीं पहननी चाहिए। काले रंग के कपड़े पहनने से बचना चाहिए। किसी का दिल दुखाना सबसे बड़ी हिंसा मानी जाती है। गलत काम करने से आपके शरीर पर ही नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम होते है।

भीष्म पंचक कथा अनुसार महाभारत का युद्ध समाप्त होने पर जिस समय भीष्म पितामह सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा मे शरशैया पर शयन कर रहे थे।तब भगवान श्रीकृष्ण पांचों पांडवों को साथ लेकर उनके पास गये थे। ठीक अवसर मानकर युधिष्ठर ने भीष्म पितामह से उपदेश देने का आग्रह किया। भीष्म पितामह ने पांच दिनों तक राज धर्म, वर्णधर्म मोक्षधर्म आदि पर उपदेश दिया था। उनका उपदेश सुनकर श्रीकृष्ण एवं अन्य सन्तुष्ट हुए और बोले, पितामह! आपने शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक पांच दिनों में जो धर्ममय उपदेश दिया है उससे मुझे बडी प्रसन्नता हुई है। मैं इसकी स्मृति में आपके नाम पर भीष्म पंचक व्रत स्थापित करता हूं । जो लोग इसे करेंगे वे जीवन भर विविध सुख भोगकर अन्त में मोक्ष प्राप्त करेंगे।


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