भद्रवाह में लुप्त चश्में होंगे पुनर्जीवित, वास्तुशिल्प व एतिहासिक महत्व के आधार पर पर्यटकों को करेंगे आकर्षित
डीसी ने कहा कि डोडा जिले में कई प्राचीन चश्में और अन्य प्राकृतिक जलस्रोत हैं। अधिकांश चश्में सूख चुके हैं या लुप्त हो चुके हैं।
जम्मू, राज्य ब्यूरो। जम्मू संभाग का भद्रवाह खूबसूरत वादियों, नदी-नालों और चश्मों के लिए जाना जाता रहा है। समय के साथ कई चश्में लुप्त हो गए। संबंधित प्रशासन ने इन्हें फिर पुराने रूप में बहाल करने के लिए अभियान शुरू कर दिया है। केंद्र की योजना जल शक्ति अभियान के तहत जिला प्रशासन ने भद्रवाह में 45 चश्मों को पुनर्जीवित करने के लिए चिन्हित किया है। इनमें अधिकांश पौराणिक व एतिहासिक महत्व के हैं। जिला विकासायुक्त (डीसी) डोडा सागर दत्तात्रेय डायफोडे ने सुंगली, भद्रवाह स्थित प्राचीन चश्मों की बहाली की योजना का शुभारंभ किया। सुंगली में बौद्धकाल का एक चश्मा ड्रैगन माउथ है जो कभी स्थानीय ग्रामीणों के अलावा आसपास के गांवों की प्यास भी बुझाता था।
डीसी ने कहा कि डोडा जिले में कई प्राचीन चश्में और अन्य प्राकृतिक जलस्रोत हैं। अधिकांश चश्में सूख चुके हैं या लुप्त हो चुके हैं। हमनें इनका सर्वे किया है ताकि जल शक्ति अभियान में इन्हें फिर पुनर्जीवित कर बहाल किया जा सके। यह चश्में जब पूरी तरह बहाल होंगे तो न सिर्फ इस क्षेत्र में पेयजल की किल्लत को दूर करेंगे बल्कि अपने वास्तुशिल्प और एतिहासिक महत्व के आधार पर पर्यटकों को आकर्षित करेंगे। भद्रवाह में बहुत से प्राकृतिक चश्में हैं। चिन्हित किए 45 चश्मों मे ड्रैगन माउथ समेत 15 चश्में भद्रवाह कस्बे में हैं। 30 अन्य भद्रवाह के साथ सटे गांवों और बस्तियों में हैं।
ड्रैगन माउथ चश्मा सबसे अहम : ड्रैगन माउथ चश्में को सबसे पहले अपने संसाधनों से साफ करने वाले स्थानीय समाज सेवी धर्मकांत डोगरा ने कहा कि यह पूरी तरह कीचड़ और जंगली झाड़ियों में दब चुका था। यह बहुत अहम चश्मा है। हम बचपन में इसे देखते थे, यहां बहुत से लोग इस पर निर्भर थे। बाद में लोगों ने चश्मे के पानी का इस्तेमाल बंद कर दिया। हालांकि कुछ लोग इस चश्में को धार्मिक मान्यता भी देते हैं। पत्थर से बनी ड्रैगन की मूर्त के मुंह से पानी बाहर आता है इसलिए इस चश्में को हम ड्रैगन माउथ बोलते हैं। यह भद्रवाह और बौद्ध संस्कृति के रिश्तों का संकेत देता है।
चश्मों के पानी पर निर्भर हैं लोग : डीसी सागर ने कहा कि भद्रवाह की 32 फीसद आबादी इन चश्मों पर पेयजल के लिए निर्भर है। अनियोजित शहरीकरण, पेड़ों के कटाव, नान बायोडिग्रेडेबल पदार्थाें के इसतेमाल और प्रदूषण के चलते भद्रवाह में कई चश्में पूरी तरह सूख गए हैं या कहीं गायब हो गए हैं। इन्हें बहाल करने के लिए अब लोग आगे रहे हैं।