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Kashmir Lockdown: यह महामारी अपनों के बिछड़ने पर हमें चार आंसू बहाने की इजाजत भी नहीं दे रही

सरकार की ओर से भी एक जगह भीड़ इकट्ठा न करने के निर्देश जारी किए गए हैं। फातिमा खातून नामक वृद्ध महिला ने कहा कि मैंर्ने जिंदगी में कभी ऐसा मंजर नही देखा।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Sat, 04 Apr 2020 09:57 AM (IST)Updated: Sat, 04 Apr 2020 09:57 AM (IST)
Kashmir Lockdown: यह महामारी अपनों के बिछड़ने पर हमें चार आंसू बहाने की इजाजत भी नहीं दे रही
Kashmir Lockdown: यह महामारी अपनों के बिछड़ने पर हमें चार आंसू बहाने की इजाजत भी नहीं दे रही

रजिया नूर, श्रीनगर। कोरोना संक्रमण रोकने के लिए किए गए लॉकडाउन ने कश्मीरियों की सामाजिक जिंदगी में भी बदलाव ला दिया है। संक्रमण के डर से कश्मीर में लोग अपनों से दूर रहने लगे हैं। हजारों शादियां स्थगित कर दी गई हैं, शोक सभाएं तक भी नहीं हो रहीं। जहां तक की जनाजों पर भी चंद लोग ही शामिल हो रहे हैं। इन दिनों अखबारों, केबल नेवटवर्क व निजी रेडियो चैनल में सूचनाएं खूब आ रही हैं।

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कश्मीर में मार्च में सैकड़ों शादी समारोह रद कर दिए गए थे। अप्रैल में भी यही हालत है। आगे की तारीखों के समारोह भी स्थगित किए जा रहे हैं। इसकी जानकारी प्रतिदिन अखबारों, रेडियो और स्थानीय चैनलों में दी जा रही है। शोक सभाएं तक नहीं हो रही हैं। किसी मृतक के घर शोक जताने के लिए आने वाले लोगों को मना किया जा रहा है। इससे पहले वादी में जब भी हालात तनावपूर्ण होते थे तो भी शोक सभाएं होती थी। पाबंदियों या कर्फ्यू के बीच भी हजारों लोग मृतक के जनाजे या फातेह में शामिल होते थे, लेकिन लॉकडाउन के बीच शोक सभाएं तक नहीं होने से हर कोर्ई चिंतित हो उठा है। लोग न तो अपनों की मौत पर मातम कर पा रहे हैं और न दिवंगत के अंतिम दीदार कर रहे हैं। सरकार की ओर से भी एक जगह भीड़ इकट्ठा न करने के निर्देश जारी किए गए हैं। फातिमा खातून नामक वृद्ध महिला ने कहा कि मैंर्ने जिंदगी में कभी ऐसा मंजर नही देखा।

संक्रमण का खतरा सता रहा: कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ आसिफ कुरैशी ने कहा कि कोरोना के कारण अखबारों में सूचनाओं के विज्ञापन बढ़ गए हैं। विवाह समारोह अगर किसी ने स्थगित नहीं किया तो रिश्तेदार भी नहीं पहुंच रहे। 15 दिनों में यहां अखबारों व सोशल मीडिया पर कई लोग घर में हुई मौतों की सूचना देते हुए अपील कर रहे हैं कि कोई नहीं आए। सभी को संक्रमण का खतरा सता रहा है।

लोग परिस्थितियों में जीना सीख लेते: वरिष्ठ पत्रकार अहमद अली ने कहा कि कश्मीर में लोग परिस्थितियों के मुताबिक जीना सीख लेते हैं। मेर्री जिंदगी का यह पहला अनुभव है, जब लोग किसी प्रियजन की मौत पर अपने रिश्तेदारों से शोक जताने के लिए घर न आने की अपील कर रहे हों। गत दिनों पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला के छोटे बहनोई डॉ. अली मुहम्मद मट््टू का देहांत हुआ था। उन्होंने लोगों से अपील की थी कि कोई शोक जताने के लिए न घर पर और न कब्रिस्तान में जमा हों।

एक बीमारी ने समाज को बदल दिया: बड़गाम के मुहम्मद इस्माइल राथर ने कहा कि प्रशासन ने लॉकडाउन हमारी सुरक्षा के लिए किया है। दुख है कि यह महामारी अपनों के बिछड़ने पर हमें चार आंसू बहाने की इजाजत नहीं दे पा रही है। एक बीमारी ने समाज को बदल दिया है। बेमिना की आसिफर मजीद वानी ने कहा कि मेरे चाचा का परिवार श्रीनगर के लाल बाजार में रहते हैं। दो दिन पहले देर शाम उनकी मौत हो गई। हम लोग पहुंच नहीं पाए। चाचा को रात के अंधेरे में दफनाया गया था। परिवार को हिदायत दी थी कि भीड़ जमा नहीं हो।


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