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बच्चों संग बिताए लॉकडाउन ने बदला व्यवहार

जागरण संवाददाता जम्मू लॉकडाउन का समय हर किसी के लिए नए अनुभव लेकर आया है। खासकर यह वक्त बचों के जीवन में कुछ खास रहा है। लॉकडाउन से उनके जीवन में ढेरों बदलाव आए हैं। दौड़ धूप भरी दिनचर्या में बचे कभी मां के प्यार से तो कभी पापा के प्यार से वंचित रह जाते थे। दादा-दादी के साथ भी मनचाहा समय नहीं बीता पाते थे। नाना-नानी से बात किए भी

By JagranEdited By: Published: Thu, 04 Jun 2020 12:18 AM (IST)Updated: Thu, 04 Jun 2020 12:18 AM (IST)
बच्चों संग बिताए लॉकडाउन ने बदला व्यवहार
बच्चों संग बिताए लॉकडाउन ने बदला व्यवहार

जागरण संवाददाता, जम्मू : लॉकडाउन का समय हर किसी के लिए नए अनुभव लेकर आया है। खासकर यह वक्त बच्चों के जीवन में कुछ खास रहा है। लॉकडाउन से उनके जीवन में ढेरों बदलाव आए हैं। दौड़ धूप भरी दिनचर्या में बच्चे कभी मां के प्यार से तो कभी पापा के प्यार से वंचित रह जाते थे। दादा-दादी के साथ भी मनचाहा समय नहीं बीता पाते थे। नाना-नानी से बात किए भी कई-कई दिन गुजर जाते थे। कभी स्कूल जाने की दौड़ तो कभी ट्यूशन समय पर पहुंचने के लिए दौड़। कभी ट्यूशन के टीचर का काम तो कभी स्कूल का होमवर्कका प्रेशर। ऐसे में कभी पापा के पास समय नहीं तो कभी मम्मी किसी काम में व्यस्त। एक घर में रहते हुए भी एक दूसरे से इतनी दूरी कि बात-बात पर गुस्सा आता था। बुजुर्गो को बच्चों में संस्कारों की कमी महसूस होती थी। धैर्य, संयम की कमी खलती थी। माता-पिता में बच्चों के व्यवहार को लेकर एक डर बना रहता था। लेकिन यहां दो माह में बच्चों ने सबसे अधिक हिम्मत का परिचय दिया है। हर किसी को भरपूर समय मिला है। जिसका हर किसी ने पूरा लाभ उठाया। बच्चों में जिन संस्कारों की कमी महसूस होती थी उन पर बुजुर्गो ने पूरा काम किया। बच्चों ने इस दौरान दूरदर्शन से प्रसारित रामायण, महाभारत, चाणक्य, कृष्णा जैसे धारावाहिक देखे। जिसके बाद वह इन धारावाहिकों से मिले ज्ञान से इस कदर संतुष्ट हैं कि अपने दूसरे साथियों के साथ भी अपने देवी-देवताओं की बात करते दिखते हैं। वहीं, डिजिटल युग में घर बैठे-बैठे पढ़ने का एक खास अनुभव हुआ। घ्º बैठे भी बच्चे अपने अध्यापकों से जुड़े हुए हैं। उन्हें हर तरफ सकारात्मक घटनाक्रम होता दिख रहा है।

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बच्चों को सिखाया डांस

शक्ति नगर की ईशा दुबे ने बताया कि उनके बच्चों को डांस का बड़ा शौक था। वह चाहते थे कि डांस सीखें। ऐसे में लॉकडाउन के चलते मैंने उन्हें पूरा समय दिया और जितना मुझे आता था। उन्हें सीखा दिया है। वहीं दादू-दादी को भी लगता था कि बच्चे उनके पास बैठते नहीं हैं। इस दौरान बच्चों ने अधिकतर समय दादू-दादी के साथ बिताया। इसका लाभ यह हुआ कि बच्चों ने रामायण, महाभारत धारावाहिक देखे और दादू-दादी ने भी उन्हें कई कहानियां सुनाई। आज दादू-दादी द्वारा सिखाई चीजें बच्चों के संस्कार का हिस्सा बन गई हैं। मां ने बना दिया चित्रकार

बख्शी नगर की रहने वाली कमाक्षी ने बताया कि अक्सर जब बच्चे जब अच्छी-अच्छी कलाकृतियां बनाते थे तो मन होता था कि मैं भी कुछ अच्छा बनाऊ, लेकिन मुझे आता ही नहीं था। इस कारण मुझे कई बार गुस्सा भी आता था। अब लॉकडाउन के चलते मम्मा ने मेरी प्रतिभा को निखारने के लिए काफी समय दिया है। अब पेंटिग तो अच्छी कर ही लेती हूं। हैंडराइटिग में भी सुधार हुआ है। घर वालों के साथ बिताया हर दिन मेरी यादों का हिस्सा बन गया है। लॉकडाउन के दौरान घर में ऐसी-ऐसी चीजें तैयार की गई, जो कभी होटल में भी नहीं खाई थी।

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मां-पापा ने दिया पूरा समय

न्यू प्लाट की रहने वाली गायत्री और अदिति ने बताया कि लॉकडाउन हमारे लिए सबसे अच्छी छुट्टियां थी। मां पापा के पास भी खूब टाइम था। मां कभी पेंटिग सिखाती तो कभी कभी डांस। फिर खाने को भी हम जो कहते वहीं तैयार हो जाता। दादी के साथ भी खूब बातें की। ऐसा लग रहा था जैसे हम जो चाह रही हैं वहीं हो रहा है। इतनी मस्ती में पढ़ने का भी अपना ही मजा था। मैडम मोबाइल पर ही पढ़ाती और हम थोड़ी देर में ही काम खत्म कर फिर से मौज मस्ती करने लगती। पहले तो कई बार गुस्सा आता था कि हर वक्त हमें मशीन की तरह काम करने के लिए कहा जाता है लेकिन पिछले दो महीने में ऐसा कुछ नहीं। मजा आ गया।

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