पढ़ाई की उम्र में जिंदगी दांव पर रख रेलवे ट्रैक पर कचरे में जूझती मासूम जिंदगी
बच्चे जिंदगी दांव पर लगा कर रेलवे स्टेशन से गुजरने वाली रेलगाड़ियों में चढ़कर बोगियों के अंदर कूड़ा बीनते हैं।
जम्मू, दिनेश महाजन। जम्मू शहर में प्रवासी श्रमिकों के बच्चे शिक्षा के मौलिक अधिकार से अनभिज्ञ हैं। सुबह जब अन्य बच्चे किताबों से भरा बैग कंधे पर उठा कर स्कूल रवाना होते हैं, तो उस वक्त जम्मू रेलवे स्टेशन के आसपास की मराठा बस्ती, बिहारी बस्ती, रोहिंग्या बस्ती के बच्चे कंधे पर कचरे बोरियां उठाकर स्टेशन का रूख करते हैं। इन बोरियों में वे कूड़ा बीनते हैं। उसे कबाड़ में बेच कर अपना और अपने परिवार का पेट भरने में सहयोग देते हैं। बच्चे जिंदगी दांव पर लगा कर रेलवे स्टेशन से गुजरने वाली रेलगाड़ियों में चढ़कर बोगियों के अंदर कूड़ा बीनते हैं।
आठ से पंद्रह वर्ष के बच्चे रेलगाड़ियों में यात्रियों द्वारा छोड़ी गई खाली पानी की बोतलों को उठाते हैं। इसके अलावा प्लेटफार्म और अधिकारियों के कार्यालयों के बाहर पड़े कबाड़ को उठाकर ले जाते हैं। कूड़ा बीनने वाले बच्चों की संख्या काफी है, इसलिए आपस में प्रतिस्पर्धा रहती है। जो बच्चा रेलगाड़ी में पहले चढ़ गया वह अधिक खाली बोतलें इकट्ठा कर लेते हैं। प्रतिस्पर्धा के कारण बच्चे प्लेटफार्म पर रेलगाड़ी के रुकने का इंतजार नहीं करते बल्कि स्टेशन के आउटर में पहुंचते ही रेलगाड़ी में चढ़ जाते हैं। इस कारण बच्चे कई बार हादसे का शिकार हो जाते हैं।
जो कमाया, करते हैं घरवालों के सुपूर्द : रेलवे स्टेशन पर कूड़ा बीनने वाला चौदह वर्षीय बच्चा बताता है उसका परिवार मराठा बस्ती में रहता है। पिता को शराब की लत है। घर में खर्चे के लिए मां को कुछ नहीं देते। इस कारण मां उसे कूड़ा बीन कर बेचने के लिए रेलवे स्टेशन में भेजती है। बच्चा बताता है कि रोजाना वह कूड़ा बेचकर 40 से 50 रुपये कमा लेता है। एक प्लास्टिक की खाली बोतल के 50 पैसे मिलते हैं। दिन में जो भी कमाता दूं मां को थमा देता हूँ।
रेलवे स्टेशन पर बच्चों के साथ हुए हादसे
- 2011- जून माह में कूड़ा बीनते रेलगाड़ी से कट कर 10 वर्षीय बच्चे की मौत हो गई।
- 2014- अप्रैल माह में रेलवे स्टेशन में 12 वर्षीय बच्चे का रेलगाड़ी के नीचे आकर पांव कटा।
- 2017- मई माह में स्टेशन के आउटर में चलती रेलगाड़ी से गिर कर किशोर घायल हो गया।
बच्चों को जागरूक कर रहे है
- जम्मू रेलवे स्टेशन से कई बार इन बच्चों को बाहर निकाला है, लेकिन मौका मिलते ही ये स्टेशन के भीतर घुस आते हैं। बच्चों को अब पर्चे बांट कर जागरूक किया जा रहा है कि वह बिना इजाजत रेलवे स्टेशन परिसर में ना आए। - मुंशी राम, पोस्ट कमांडेंट, रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स
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