रविवार को कर सकते हैं चंदन षष्ठी व्रत का माेख, भगवान बलराम की जयंती के रूप में मनाया जाता है यह दिन
यह दिन भगवान बलराम की जयंती के रूप में मनाया जाता है। भगवान बलराम को शेषनाग के अवतार के रूप में पूजा जाता है।
जम्मू, जागरण संवाददाता : चन्दन षष्ठी व्रत हर वर्ष भाद्रपद कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाता है। इस वर्ष यह व्रत 9 अगस्त रविवार को है। इसे हल षष्ठी, ललही छठ, बलदेव छठ, रंधन छठ, हलछठ, हरछठ व्रत, चंदन छठ, तिनछठी, तिन्नी छठ के नाम से भी जाना जाता है।
जम्मू कश्मीर में चन्दन षष्ठी का व्रत विशेष महत्व रखता है इस व्रत को विवाहित, अविवाहित महिलाएं कर सकती हैं। इस दिन महिलाएं पूरा दिन व्रत रखकर विशेष रूप से सूर्य एवं चंद्रमा की पूजा, कथा कर के अथवा सुनकर रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देकर भोजन करती है। इस वर्ष चन्दन षष्ठी व्रत का उद्यापन, मोख भी कर सकते हैं। कहा जाता है कि अगर व्रती ने चन्दन षष्ठी व्रत का उद्यापन किया है तो वह फिर किसी भी व्रत का उद्यापन कर सकती है। सबसे पहले इस व्रत का उद्यापन करना होता है एवं मासिक धर्म की अवधि में स्त्रियों द्वारा स्पर्श, अस्पर्श, भक्ष्य, अभक्ष्य इत्यादि दोषों के परिहार के लिए इस व्रत का उद्यापन किया जाता है।
चन्दन षष्ठी व्रत के विषय में श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत रोहित शास्त्री ज्योतिषाचार्य ने बताया कि यह दिन भगवान बलराम की जयंती के रूप में मनाया जाता है। भगवान बलराम को शेषनाग के अवतार के रूप में पूजा जाता है। जो क्षीर सागर में भगवान विष्णु के हमेशा साथ रहने वाली शैया के रूप में जाने जाते हैं। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भगवान बलराम का प्रधान शस्त्र हल और मूसल हैं। इसी कारण उन्हें लधर भी कहा जाता है। इस व्रत में हल से जुते हुए अनाज व सब्जियों का सेवन नहीं किया जाता है। कुछ राज्यों में हलषष्ठी व्रत महिलाएं अपने संतान की दीर्घायु और स्वास्थ्य के लिए करती हैं। इस दिन हलषष्ठी माता की पूजा की जाती है।