जम्मू-कश्मीर में चुनौतियों से भरी होगी नए राज्यपाल सत्यपाल मलिक की राह
जम्मू कश्मीर में नए राज्यपाल सत्यपाल मलिक के लिए राज्य में चुनौतियां उनकी राजनीतिक सूझबूझ के लिए लिटमस टेस्ट साबित होंगी।
श्रीनगर, नवीन नवाज। जब्रवान की पहाड़ियों के बीच डल झील किनारे स्थित राजभवन में 51 साल बाद कोई सियासतदां सत्यपाल मलिक बतौर राज्यपाल जम्मू-कश्मीर में प्रथम नागरिक के तौर पर जिम्मेदारी संभालेंगे। बिहार के निर्वतमान राज्यपाल को मंगलवार की शाम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राज्य के निर्वतमान राज्यपाल एनएन वोहरा का उत्तराधिकारी नियुक्त किया है। नए राज्यपाल के लिए राज्य में चुनौतियां उनकी राजनीतिक सूझबूझ के लिए लिटमस टेस्ट साबित होंगी।
नए राज्यपाल की चुनौतियां
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में पैदा हुए सत्यपाल मलिक को लेकर राजनीतिक, सामाजिक व सामरिक रूप से संवेदनशील जम्मू कश्मीर में राजभवन में टिके रहना आसान नहीं होगा। वह ऐसे समय में राज्यपाल पद संभालने जा रहे हैं, जब राज्यपाल शासन लागू होने के साथ धारा 35ए के मुद्दे पर पूरी रियासत दो ध्रुवों में बंटी नजर आ रही है। धारा 35ए के मुद्दे पर शायद अदालत उनकी खेवनहार बन जाएं, लेकिन राज्य में जारी सियासी उथल-पुथल से निपटना उन पर ही निर्भर करेगा। अलगाववादियों की गतिविधियों पर लगाम लगाना, पर्दे के पीछे अलगाववादी खेमे से संपर्क बनाकर उसे कश्मीर में शांति बहाली व कश्मीर समस्या के समाधान के लिए बातचीत की मेज पर बैठने के लिए राजी करना भी बड़ी चुनौती है।
सामने है निकाय चुनाव
इसी तरह निकाय और पंचायत चुनावों को शांतिपूर्ण संपन्न कराना और ज्यादा से ज्यादा मतदान को यकीनी बनाना और उम्मीदवारों को आतंकी खतरे से बचाना भी उनकी जिम्मेदारी होगी। वह यह चुनाव कराएंगे या इन्हें हालात का हवाला देकर टालेंगे, इस पर भी सभी की निगाहें रहेंगी। वह राज्य की मौजूदा निलंबित विधानसभा को निलंबित रखेंगे या उसे भंग कर नए विधानसभा चुनाव कराने की नेशनल कांफ्रेंस, कांग्रेस की उम्मीदों को पूरा करेंगे या निलंबित विधानसभा को फिर से बहाल कर गठबंधन सरकार के गठन के लिए किसी दल को मौका देंगे। वह राज्य के पुराने कांग्रेसी नेताओं को भी अच्छी तरह जानते हैं, क्योंकि 1980 के दशक के अंत में जब वीपी सिंह ने कांग्रेस से बगावत की थी तो उस समय मुफ्ती मोहम्मद सईद के साथ सत्यपाल मलिक ने भी कांग्रेस से नाता तोड़ा था।
नेताओं से बेहतर संबंध
वह नेकां प्रमुख डॉ. फारूक अब्दुल्ला से भी अच्छे संबंध रखते हैं। छात्र जीवन से सियासत में सक्रिय रहे सत्यपाल मलिक के लिए आतंकवाद पर काबू पाना और आतंकी संगठनों में युवाओं की बढ़ती संख्या पर रोक लगाते हुए उन्हें मुख्यधारा से जोड़ना आसान नहीं होगा। उन्हें अपने पूर्ववर्ती राज्यपाल एनएन वोहरा के शुरू किए गए कार्यो को आगे बढ़ाने के साथ सभी सुरक्षा एजेंसियों के बीच समन्वय भी कायम करना है। आतंकियों को मुख्यधारा में शामिल करना व घुसपैठ पर रोक लगाना भी बड़ी चुनौती रहेगी। कश्मीर विश्वविद्यालय समेत अन्य संस्थानों में राष्ट्रविरोधी तत्वों की बढ़ती आहट को समाप्त करना भी उनकी जिम्मेदारी होगी। राज्य में सियासी हथियार बन चुकी नौकरशाही को राजनीति से मुक्त करना, जनता के प्रति जवाबदेह बनाना और उसके कामकाज में पारदर्शिता लाना भी उनके लिए कड़ा इम्तिहान होगा।
बेमानी नहीं हैं मलिक से उम्मीदें
सत्यपाल मलिक से राज्य के लोगों की उम्मीदें बेमानी नहीं हैं, क्योंकि इनसे पहले जो भी राज्यपाल बना है वह नौकरशाह रहा था या फिर सैन्य या खुफिया अधिकारी। वह पहले सियासी नेता हैं, जो जम्मू कश्मीर में राज्यपाल बने हैं। डॉ. कर्ण सिंह को भी सियासी पृष्ठभूमि का ही कहा जाएगा, लेकिन पहले वह सदर-ए-रियासत थे और जब यह सदर ए रियासत का पद समाप्त किया गया तो उन्हें राज्यपाल बनाया गया था।
सियासतदां को राज्यपाल बनाने की हो रही थी मांग
सत्यपाल मलिक को जम्मू कश्मीर का राज्यपाल बनाए जाने का फैसला केंद्र सरकार ने सियासी समीकरणों को ध्यान में रखते हुए लिया है। राज्य में भाजपा के स्थानीय कैडर को छोड़ पीडीपी, कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस, माकपा समेत मुख्यधारा के जो भी राजनीतिक दल हैं, सभी चाहते थे कि नया राज्यपाल किसी सियासी पृष्ठभूमि का होना चाहिए। सियासत में रहने वाला व्यक्ति स्थानीय सियासत के विभिन्न पहलुओं को अच्छी तरह समझ सकता है। अलगाववादी खेमा और अलगाववादियों के प्रति सहानुभूति रखने वाले तत्व भी किसी सियासी नेता को ही राज्यपाल देखना चाहते थे।
यह लोग अक्सर दावा करते थे कि नई दिल्ली जानबूझकर किसी पुराने नौकरशाह, सैन्य अधिकारी या खुफिया अधिकारी को यहां का राज्यपाल बनाती है ताकि वह रिमोट के जरिए अपनी नीतियों को जारी रखते हुए निर्वाचित सरकारों पर निगाह रख सके। मलिक की नियुक्ति से साफ हो जाती है कि केंद्र सरकार अब जम्मू कश्मीर को नौकरशाहों और सुरक्षा विशेषज्ञों के सहारे छोड़ने को तैयार नहीं है।
सामान्य किसान परिवार से आते हैं सत्यपाल मलिक
जम्मू कश्मीर के 13वें राज्यपाल सत्यपाल मलिक (72) उत्तर प्रदेश के जिला बागपत के अंतर्गत हिसवाड़ा गांव के एक सामान्य किसान परिवार में पैदा हुए थे। उनका बचपन काफी दिक्कतों में बीता। जब वह महज तीन साल के थे तो उनके पिता बुध सिंह का देहांत हो गया। उनकी मां जुगनी देवी ने तमाम चुनौतियों से जूझते हुए उन्हें पाला। उन्होंने अपने पड़ोस के गांव ढिकोली से इंटर तक की पढ़ाई की और बीएससी व एलएलबी की पढ़ाई मेरठ यूनिवर्सिटी से की। वह छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय रहे।
उन्होंने ही मेरठ कॉलेज में छात्रसंघ की नींव डालने के अलावा उसके चुनाव की नियमावली भी तैयार की। उन्होंने दो बार चुनाव की नियमावली बनाई और दो बार मेरठ कॉलेज छात्र संघ के अध्यक्ष भी रहे। वह 1980 से 1984 और 1986 से 1989 तक राज्यसभा सांसद और 1989 से 1990 तक लोकसभा सांसद रहे। वह 1974 से 1977 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य भी रहे। वह 21 अप्रैल, 1990 से 10 नवंबर, 1990 तक केंद्रीय पर्यटन एवं संसदीय राज्यमंत्री भी रह चुके हैं। वह विभिन्न संसदीय समितियों के सदस्य भी रहे। वह मूल रूप से समाजवादी विचारधारा के नेता रहे हैं। वह लोकदल में भी रहे हैं।
वह चौधरी चरण सिंह के बेहद भरोसेमंद साथियों में एक रहे और आपातकाल में जेल में भी रहे, लेकिन बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए थे। कांग्रेस के बाद वह समाजवादी पार्टी और अजित सिंह के राष्ट्रीय लोकदल में भी रहे और बाद में भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा ने उन्हें पहले उत्तर प्रदेश का उपाध्यक्ष और उसके बाद किसान प्रकोष्ठ का अध्यक्ष बनाया। इसके बाद उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया और वर्ष 2017 में उन्हें बिहार का राज्यपाल बनाया गया था।
खास बातें
-सत्यपाल मलिक अपने छात्र जीवन में पड़ोसी की साइकिल पर स्कूल जाते थे।
-राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. मुफ्ती मोहम्मद सईद को 1989 के लोकसभा चुनावों में मुजफ्फरनगर से चुनाव लड़वाने वाले सत्यपाल मलिक ही थे।
-विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में जब जार्ज फर्नांडिस कश्मीर मामलों के प्रभारी थे तो सत्यपाल मलिक भी उनके करीबी थे।