Election 2019: बार्डरवासियों को केवल नेताओं ने वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया
कोई किसानों की आर्थिक दशा सुधारने की बात कर रहा है तो कोई सालाना 72 हजार रूपये देने की बात कर रहा। लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात है।
जीरो लाइन चंदूचक्क, अवधेश चौहान। देश की आजादी के बाद से ही बार्डर पर रहने वाले लोग पाकिस्तानी गोलाबारी का दंश कई दशकों से झेलते आए हैं। कईयों ने अपने करीबियों को जान गंवाते हुए देखा है, ताे कई घर तबाह होकर रह गए हैं। पता नही कब गोलाबारी हो जाए। हल्की सी आहट होती है तो लगता है कि पाकिस्तान ने कहीं गोलाबारी तो नही शुरू कर दी। देश में कोई नेता कश्मीर पर बयान देता है, तो इसका खमियाजा बार्डर के लोगों को गोलाबारी से झेलना पड़ता है। पिछले पांच सालों में गोलाबारी में कोई कमी नहीं आई है।
इलेेक्शन का माहौल है नेतागण जिन्हें पांच सालों में कभी नही देखा लोक लुभावन सपने दिखा कर वोट मांग रहे हैं। कोई किसानों की आर्थिक दशा सुधारने की बात कर रहा है, तो कोई सालाना 72 हजार रूपये देने की बात कर रहा। लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात है। यह कहना है, अंतरर्राष्ट्रीय सीमा पर जीरो लाइन पर बसे गांव चंदू चक्क गांव के अधिकतर निवासियों का कहना है कि इस बार हमारा वोट उसी नेता को हाेगा जो बार्डर एरिया के विकास, किसानों की समस्याएं, क्षेत्र में शिक्षा और हेल्थ सेक्टर में काम करेगा।
यह कहना है, जम्मू की अंतरर्राष्ट्रीय सीमा पर जीरो लाइन पर सटे गांव चंदू चक्क के निवासियों का। जिन्होंने खुल कर और बेबाकी से चुनावी चौपाल सोमवार को अपने विचार रखे। सुरजीत सिंह का कहना है कि पाकिस्तानी गोलाबारी में मरने वाले के आक्षितों को नौकरी देते समय शैक्षिक योग्यता की कोई शर्त न रखी जाए गोली लगने पर मरने वाला तो चला जाता है, लेकिन उसके आक्षित पढ़े नही होते। जिस कारण उन्हें सरकारी नौकरी नही मिल पाती। जिंदगी भर परिवार के सदस्य अपनों को खोने के बाद फायदा नही ले पाते। सबसे ज्यादा बार्डरवासी पांच सालों से बार्डर के रिहायशी इलाकों में हो रही गोलाबारी से परेशान है। इसके लिए सरकार को कूटनीति से काम लेना होगा। कांग्रेस के समय बार्डर दस साल तक शांत रहा।
क्या कहते हैं सीमांतवासीः-
- ‘बार्डर क्षेत्राें में नेटवर्क की सबसे बड़ी समस्या है। सरकार इसे हमेशा नजरअंदाज कर देती है। नेट वर्क न होने सेे अपनों से बाद करना नामुमकिन हो जाता है। अपनी कुशलक्षेम के बारे में अपनों से बात नही हो पाती। गांव के कई युवा बार्डर की सुरक्षा पर तैनात है। गोलाबारी के दौरान वे हम एक दूसरे से कई दिनाें तक कट कर रह जाते है। इससे तो चिट्ठियों का जमाना सही था ’ - कैप्टन बूटा सिंह
- ‘ सीमा पर गोलीबारी सबसे बढ़ी समस्या है सरकार ने गोलाबारी के मृतकों को 5 लाख व नौकरी देने की बात करती है, पर असल में सच्चाई कुछ ओर ही है। गत वर्ष 11 मई को एक ही परिवार के दो लोग मारे गए, लेकिन सरकार की ओर से उनके आक्षितों को कुछ भी नही मिला’। - कृष्ण लाल
- ‘बच्चों की पढाई साल में दो बार गोलाबारी से प्रभावित होती है। गांव के छात्र शहर के बच्चों के साथ शिक्षा एवं प्रतियोगी परिक्षाओं में पिछड़ कर रह जाते है। बार्डर एरिया के लोगों को चुनावों से पहले आरक्षण देने के दावे तो किए लेकिन जमीनी स्तर पर ऐसा कुछ भी नहीं।’ - दीवान चंद
- ‘बंकरों पर लाखों रूपये खर्च करने के बाद इसका लाभ नही मिल रहा। अधिकतर बंकर आधे अधूरे हैं, किसी पर माउंटी नही तो, कही पर पानी भरा है। बेहतर होगा कि बंकरों के बजाए उन लोगों के मकानों को पक्का बना दिया जाए। जिससे गरीब छत मिल जाए और स्वयं को सुरक्षित महसूस करे ’- सुरेंद्र पाॅल सिंह
- ‘गोलाबारी में हुए नुकसान का मुआवजा नही मिलता। सरकारी दफतरों के चक्कर काट काट कर थक जाते हैं, आैपचारिकताएं पूरी नही होती। उपर से नेता लोग अधिकारियों से कह देते है कि यह दूसरी पार्टी से ताल्लुक रखता है। जिससे बनता काम भी बिगड़ जाता है। लोगो की समस्याओं को सुना जाए।’ - राकेश नागरा
- ‘चुनाव जीतने के बाद गांववासियों की सुध लेने के लिए कोई नही आता। गांव में बिजली पानी की समस्या सिर चढ़ कर बोल रही है। गर्मियों में बिजली की समस्या से लोगो को दो चार हाेना पड़ता है। बिजली की क्वालिटी इतनी खराब होती है कि इलैक्ट्रानिक गेजेट्स नही चलते। दिन में दस घंटों की बिजली की अघोषित कटौती सबसे बड़ी समस्या है। जिसका सामाधान होना जरूरी है।’ - गुरमीत सिंह
- ‘वोट हम उसी पार्टी को देगें जो लाेगों की बुनियादी समस्याओं को समझे और उसके समाधान के लिए आगे आए। जो नेता केवल वोट मांगने में विश्वास रखते हैंं, उन्हें दरकिनार किया जाएगा।’ - अजीत सिंह
- ‘बार्डर एरिया में नहरों का पानी सबसे बड़ी समस्या है। नहरों की सफाई सही ढंग से नही हो पाती, जिससे अंतिम छोड यानि कि बार्डर पर रह रहे किसानों को नहरी पानी नही मिल पाता’ - नंबरदार रतन लाल
- ‘ गांव में बेरोजगारी की सबसे बड़ी समस्या है। लोगों को रोजगार के साधन नही मिल पाए है। बार्डर वासियों के लिए अलग से सेना व सुरक्षा बलों में भर्ती के लिए योजना बनाई जाए।’ - सुरेंद्र सिंह
- ‘किसानों के लिए क्रेडिट कार्ड योजना तो है। लेकिन बैंकों ने जो शर्त और नियम रखे हैं, उसे पूरा करते करते किसान थक जाते है। क्रेडिट कार्ड योजना का लाभ चंद किसानों को ही मिल रहा है। इसके लिए रखे गईं शर्तें और नियमों का सरलीकरण जरूरी है।’ - रशपाल कुमार
- ‘सीमा पर रहने वाले लाेग जो अक्सर गोलाबारी की जद में आते हैं, उन्हें सुरक्षित स्थानों पर 5 मरले का प्लाट दिया जाए। सरकार ने बेशक दावे तो बहुत किए लेकिन जमीनी स्तर पर हकीकत कुछ ओर है।’ - नीरज चौधरी
- ‘जब तक किसानों की समस्याओं को नही सुना जाएगा तब तक कोई भी प्रदेश या देश तरक्की नही कर सकता। किसानों की समस्याएं के प्रति सरकार ने कुछ नही किया।’ - कर्ण सिंह
- ‘धान और गेंहू की पैदावार में अब मुनाफा कम नुकसान ज्यादा है। एक हैक्टियर में 35 हजार रूपये खाद बीज का खर्चा अाता है, लेकिन उसके माफिक पैसे नही मिल पाते।’ - शाम लाल
- ‘गेंहू का समर्थन मूल्य तो मिलता है, मगर गेहूं खरीद केंद्र समय पर नही खुल पाते। प्रशासनिक अधिकारी बैठकों में ही समय गंवा देते हैं।’ - जोगेंद्र लाल
- ‘पंप सेटों से खेतीबाड़ी करने वाले किसानों को बिजली के भारी बिल अदा करने पड़ते हैं। महज दाे माह के लिए किसान पंप सेट चलाता है, लेकिन उनसे साल भर का किराया वसूला जाता है।’ - गुरदीप सिंह
- ‘किसान क्रेडिट कार्ड पर अग्रिम प्रिमियम की राशि काटना ठीक नही। बाद में मुआवजा मिले न मिले लेकिन सरकार जबरन फसल बीमा कर देती है। जो किसानों को नागवार है।’ - दर्शन लाल