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Dogri Manyta Diwas Special: केंद्र में भाजपा और राज्य में राज्यपाल शासन डोगरी भाषा के लिए शुभ, अटल बिहारी वाजपेयी ने दिलाया था सम्मान

जम्मू के करीब आठारह लोगों के एक प्रतिनिधिमंडल को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से आठ मिनट के लिए मिलने का समय दिया गया।बाद में आश्चर्य जताया कि अब तक डोगर को आठवीं अनुसूची में शामिल क्यों नहीं किया गया।उन्हीं की बदौलन डोगरी को उचित सम्मान मिल सका।

By lokesh.mishraEdited By: Published: Wed, 23 Dec 2020 05:00 AM (IST)Updated: Wed, 23 Dec 2020 05:00 AM (IST)
Dogri Manyta Diwas Special: केंद्र में भाजपा और राज्य में राज्यपाल शासन डोगरी भाषा के लिए शुभ, अटल बिहारी वाजपेयी ने दिलाया था सम्मान
22 दिसंबर को डोगरी को आठवीं अनुसूची में शामिल कर लिया गया।

लोकेश चंद्र मिश्र, जम्मू: वर्ष 2003 में अगस्त का महीना था। जम्मू के करीब आठारह लोगों के एक प्रतिनिधिमंडल को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से आठ मिनट के लिए मिलने का समय दिया गया। प्रतिनिधिमंडल में डोगरी साहित्यकारों के अलावा विभिन्न क्षेत्रों के मूर्धन्य लोग शामिल थे। उद्देश्य था डोगरी को आठवीं अनुसूची में शामिल कराने की मांग। प्रतिनिधिमंडल ने जब वापजेयी जी से बातचीत शुरू की और डोगरी की उपेक्षा का मुद्दा उठाना शुरू किया गया तो कब आठ के बदले 40 मिनट बीत गए, पता ही नहीं चला। पहले तो वाजपेयी जी मुस्कुराते हुए नि:शब्द सुनते रहे और अंत में आश्चर्य जताते हुए कहा- डोगरी अब तक आठवीं अनुसूची में शामिल हुई क्यों नहीं? ये तो बहुत पहले होना चाहिए था। आखिरकार उसी साल 22 दिसंबर को डोगरी को आठवीं अनुसूची में शामिल कर लिया गया।

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यह इत्तफाक ही है कि उस समय भी केंद्र में भाजपा की सरकार थी और राज्य में राज्यपाल शासन। आज जब डोगरी को राजभाषा का दर्जा मिला तो केंद्र में भाजपा है और प्रदेश में राज्यपाल शासन। कह सकते हैं कि डोगरी के लिए भाजपा और राज्यपाल शासन शुभ साबित होता है। डोगरी के वरिष्ठ साहित्यकार मोहन सिंह डोगरी मान्यता दिवस पर अपने संघर्ष के दिनों को याद कर भावुक हो गए। दरअसल, डोगरी भाषा के लिए संघर्ष की बुनियाद उस दिन पड़ी थी, जब उन्हें साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिल रहा था।

वर्ष 1992 के फरवरी में वह अकादमी का पुरस्कार लेने जब दिल्ली गए थे तो उसी कार्यक्रम में उन्होंने डोगरी भाषा के सम्मान का मुद्दा उछाल दिया। फिर डोगरी राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खी में आ गई। राष्ट्रीय खबर बन गई। लेकिन डोगरों को बुरा तब लगा जब नेपाली, मणिपुरी और कोंकणी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल कर लिया गया और डोगरी फिर उपेक्षित। उसके बाद मोहन सिंह की अगुवाई में डोगरी संघर्ष मोर्चा बनाया गया और इसमें सभी क्षेत्रों से नामचीन लोगों को शामिल किया गया। पूरा जम्मू संभाग डोगरी के लिए एकजुट हो गया और ऐतिहासिक बंद भी हुआ। डोगरी भाषा के लिए बिना किसी राजनीतिक सहयोग का बंद काफी असरदार रहा था।

वर्षों संघर्ष के बाद जब केंद्र में वाजपेयी जी की सरकार बनी तो 2003 के अगस्त में डोगरी साहित्य की हस्ताक्षर पद्मा सचदेव ने वाजपेयी जी से मुलाकात की सेटिंग की। 18 लोगों का प्रतिनिधिमंडल वापपेयी जी से मिलने पहुंचा। उसमें उस समय केंद्र में मंत्री रहे भाजपा नेता चमन लाल गुप्ता, पुंछ के सांसद, डोगरा सदर सभा के गुलचैन सिंह चाढ़क, बलराज पुरी, मोहन सिंह, ललित मगोत्रा सहित कई हस्तियां शामिल थीं। उसी मुलाकात ने डोगरी को वह सम्मान दिला दिया, जिसका यह हकदार है।

...अचानक खबर मिली और भंगरा करने लगे

प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद प्रतिनिधिमंडी के सदस्यों ने कई बैठकें कीं। एक राय बनी कि गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी से भी क्यों नहीं मिल लिया जाए। हस्ताक्षर ताे उन्हीं का होना हैा। संभवत: 18-19 दिसंबर, 2003 को आडवाणी जी से एक प्रतिनिधिमंडल ने मुलाकात की। उस समय केंद्रीय मंत्री चमन लाल भी वहीं थे। अडवाणी जी ने अगले सेशन में डोगरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने का भरोसा दिया। वहां से निकलने के बाद सभी थोड़ा दुखी थे। एक साल का इंतजार लंबा लग रहा था। 22 दिसंबर को नरसिंह देव जंबाल का फोन आया कि हो गया...। मैंने पूछा क्या हो गया? उन्होंने कहा- डोगरी आठवीं अनुसूची में शामिल हो गई। फिर क्या था हम भंगरा करने लगे।

- डॉ. मोहन सिंह

वाजपेयी जी की मौन से बढ़ रही थी चिंता

प्रधानमंत्री वाजपेयी जी से मुलाकात के दौरान प्रतिनिधिमंडल में शामिल सदस्य एक-एक कर अपनी बात रख रहे थे। हमलोगों ने कहा कि हम प्रधानमंत्री के लिहाज से नहीं, बल्कि एक कवि से मिलने आया हूं। आप डोगरी की उपेक्षा का दु:ख बेहतर समझेंगे। और वे बिल्कुल चुप। सिफ उनके चहरे में मुस्कान तैर रही थी। कुछ बोल ही नहीं थे। इससे हम चिंतित थे कि शायद वह बहुत गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। चुकी उस समय लग रहा था कि अभी डोगरी को सम्मान न मिला तो पता नहीं फिर कब मिलेगा? राज्य की सरकार से कोई उम्मीद नहीं थी सहयोग की। लेकिन अचानक से जब शुभ समाचाार मिला तो हम सब हत्प्रभ रह गए। जाहिर है वाजपेयी जी उसी समय अपना फैसला कर चुके थे।

- डॉ. ललित मगोत्रा


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