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अब डल में नहीं जाएगा मल-मूत्र, इस प्रणाली को अपनाएगी सरकार

बायो डाइजेस्टर के तहत मल सड़ने के बाद केवल नाइट्रोजन गैस और पानी ही शेष बचते हैं, जिसके बाद पानी को री-साइकिल कर शौचालयों में इस्तेमाल किया जा सकता है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Mon, 15 Oct 2018 01:26 PM (IST)Updated: Mon, 15 Oct 2018 01:26 PM (IST)
अब डल में नहीं जाएगा मल-मूत्र, इस प्रणाली को अपनाएगी सरकार
अब डल में नहीं जाएगा मल-मूत्र, इस प्रणाली को अपनाएगी सरकार

जम्मू, जेएनएन। कश्मीर की विश्व प्रसिद्ध डल झील अब दूषित नहीं रहेगी। हाउस बोर्ड से हर रोज निकलने वाले मल-मूत्र को झील में जाने से रोकने के लिये जम्मू-कश्मीर सरकार बायो डाइजेस्टर (जैविक-शौचालय) बनाने जा रही है। पहले चरण में यह शौचालय कुछ हाउसबोट में ही बनाए जाएंगे परंतु प्रयोग सफल होने पर इसे सभी हाउसबोट में बनाया जाएगा। इस शौचालय को विशेष रखरखाव और किसी भी सीवेज सिस्टम की आवश्यकता नहीं है।

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सरकार ने यह कदम उच्च न्यायालय की फटकार के बाद उठाया है। न्यायालय ने आदेश पर लेक्स एंड वाटर डेवलपमेंट अथारिटी (लावडा) ने हाउसबोट में बायो डाइजेस्टर लगाने की प्रक्रिया शुरू की है। डिप्टी कमिश्नर श्रीनगर डॉ सैयद अाबीद रशीद शाह, जो लावडा के उपाध्यक्ष भी हैं, ने शनिवार को भारत के विभिन्न राज्यों से आए निर्माताओं और आपूर्तिकर्ताओं के साथ बैठक बुलाई जिसमें हाउसबोट में बायो-डाइजेस्टर लगाने पर चर्चा की। उन्होंने प्रशिक्षण के तौर पर कुछ हाउसबोट में बायो डाइजेस्टर स्थापित करने के लिए कहा ताकि उसकी सफलता के बारे में हाउसबोट मालिकों को पता चले और वह इस प्रणाली को अपनाएं। शाह ने कहा कि कश्मीर में एेसी जलवायु स्थितियों मौजूद हैं जिसके तहत यह बायो डाइजेस्टर यहां सफल हो सकते हैं।

क्या है बायो-डाइजेस्टर

ये खास किस्म के गन्ध-रहित शौचालय होते हैं जो पर्यावरण के लिये भी सुरक्षित हैं। यह शौचालय ऐसे सूक्ष्म कीटाणुओं को सक्रिय करते हैं जो मल इत्यादि को सड़ने में मदद करते हैं। इस प्रक्रिया के तहत मल सड़ने के बाद केवल नाइट्रोजन गैस और पानी ही शेष बचते हैं, जिसके बाद पानी को री-साइकिल कर शौचालयों में इस्तेमाल किया जा सकता है। पर्यटन की संख्या बढ़ जाने पर यहां इस्तेमाल किये जाने वाले सार्वजनिक शौचालयों के चलते डल झील में मल इकट्ठा होने से पर्यावरण दूषित हो रहा है। इस प्रयास के बाद डील झील में मौजूद सभी हाउसबोट में बने शौचालयों को बायो-डाइजेस्टर में बदल दिया जाएगा। इसके अलावा पर्यटाकें के लिए झील के आसपास सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए भी इस तरह के शौचालय बनाए जाएंगे।

डल की सफाई पर 16 सालों में खर्च हुए 759 करोड़

विश्व प्रसिद्ध डल झील की सफाई व उसके संरक्षण पर केंद्र सरकार 16 सालों में 759 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है। विकास के नाम डल झील पर पानी की तरह राशि खर्च करने के बाद भी स्थिति जस की तस है। झील की खूबसूरती पर ग्रहण अब भी लगा हुआ है। केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय झील संरक्षण परियोजना और प्रधानमंत्री विकास पैकेज के तहत डल झील के विकास और संरक्षण के लिए एकमुश्त राशि उपलब्ध कराई है। यही नहीं शहरी विकास योजना में भी डल झील को शामिल किया गया। लेकिन डल झील की सफाई का काम पूरा नहीं हो सका। डिप्टी कमिश्नर श्रीनगर डॉ सैयद अाबीद रशीद शाह का कहना है कि बायो डाइजेस्टर झील की स्वच्छता को बनाए रखने में काफी कारगर साबित होगा। डल श्रीनगर की पहचान है और इसे संरक्षित रखने के लिये सरकार हर संभव प्रयास कर रही है। 


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