कश्मीर में मिसाल है 120 सदस्यों वाले बाइड गूर का परिवार, तीन पीढ़ी एक साथ बिता रही खुशहाल जिंदगी
परिवार के सदस्यों के लिए एक ही रसोई में खाना बनता है। एक ही दस्तरख्वान (कपड़े की एक शीट जिस पर खाना खाया जाता है) पर बैठ खाया जाता है। ये दूध बेच कर जीविका चलाते हैं।
श्रीनगर, रजिया नूर। लॉकडाउन ने बेशक बिखरे परिवारों को फिर से एक साथ जोड़ा है, लेकिन कश्मीर में कुछ परिवार ऐसे भी हैं जो साथ रहकर दूसरों को संयुक्त परिवार का संदेश दे रहे हैं। श्रीनगर के छत्ताबल में एक परिवार तीन पीढ़ी से आपसी तालमेल के साथ हंसते-खेलते जिंदगी व्यतीत कर रहा है। बाइड गूर (बड़े गवाल्ये) के नाम से मशहूर इस परिवार में 120 सदस्य हैं। झेलम किनारे आबाद छत्ताबल के एक पूरे मुहल्ले में यह परिवार रहता है। एक साथ रहने की रिवायत से इस परिवार ने न केवल स्थानीय बल्कि आसपास के इलाके में अलग छाप छोड़ी है। यह परिवार जिस मुहल्ले में रहता है वह गूर मुहल्ला (गवाल्यों का मुहल्ला) के नाम से मशहूर है।
गूर मुहल्ला का नाम सुनते ही लोग परिवार का उदाहरण देते हैं। परिवार के सदस्यों के लिए एक ही रसोई में खाना बनता है। एक ही दस्तरख्वान (कपड़े की एक शीट जिस पर खाना खाया जाता है) पर बैठ खाया जाता है। ये दूध बेच कर जीविका चलाते हैं। परिवार की युवा पीढ़ी शिक्षित है। कई सरकारी विभागों में उच्च पदों पर तैनात हैं। परिवार के मुखिया 72 वर्षीय मुहम्मद शाबान गोजरी ने कहा, लॉकडाउन ने लोगों को घरों में तो कैद कर दिया है लेकिन इसका फायदा हुआ कि परिवार के लोगों को एक-दूसरे के नजदीक आने का मौका मिला। वरना आजकल घर के सदस्य एक छत के नीचे रहते हुए भी अपने कामों में ही मगन रहते थे। पारिवारिक रिश्ते की मिठास से वंचित रहते थे।
शुक्र है कि लॉकडाउन के बहाने ही सही, यह बिखरे परिवार फिर जुट गए हैं। शाबान ने कहा, हमारे परिवार में पहले से ही संयुक्त परिवार का रिवाज था। मैंने जब आंख खोली तब भी हमारा खानदान बहुत बड़ा था। हम इस बड़े मकान में रहते थे जो अब पुराना हो गया है। मकान के एक तरफ कोठार बना था, जिसमें गाय पाली जाती थी। दूसरी तरफ बड़ा आंगन था जिसमें हम सब बच्चे खेलते थे। शाबान ने कहा मुझे याद है कि मेरी मां खतिज देद दिनभर रसोई में चाचियों के साथ खाना पकाने में व्यस्त रहती थीं।
खाना बनाने की प्लालिंग सुबह होती हैः रोज सुबह तय होता है कि आज खाने में क्या पकना है। तय होते ही मेरी मां समेत परिवार की आठ-दस औरतें खाना पकाने में लग जाती थीं। कुछ घर की सफाई में। मेरी दादी, नानी समेत परिवार की बूढ़ी औरतें बच्चों की देखभाल करती थीं। घर के मर्द दूध दोहने व उसे बेचने के काम में लग जाते थे। घर का कोई मसला होता तो उसे परिवार के सब लोग मिलकर सुलझा लेते। शादियां बड़ों की मर्जी से तय होती। लड़का-लड़की समेत सब उस पर सिर झुका लेते। सब हंसी-खुशी जिंदगी की गाड़ी को खींचते। घर के सदस्यों के बीच कभी-कभी नोकझोंक हो जाती जिससे कुछ समय तक घर का माहौल तनावपूर्ण रहता। फिर परिवार के बुजुर्ग हस्तक्षेप कर माहौल ठीक करा देते। फिर सब कुछ पहले जैसा सामान्य हो जाता। खाना बनाना, घर की सफाई, गाय पालना, दूध सप्लाई करना, हम बच्चों की देखभाल आदि, कितने ढेर सारे काम होते थे लेकिन मेरे परिवार वाले यह सब मिलजुल कर आसानी से निपटा लेते।
शाबान ने कहा, यह सब कुछ एक दूसरे से तालमेल बनाए रखने का ही नतीजा है और आज भी हमारे परिवार में यही रूटीन है। मेरी दो पोतों व एक नाती की शादियां हो गई हैं। मेरी पत्नी बूढ़ी होने के चलते रसोई का काम संभाल नहीं पातीं। लिहाजा अब अपने पोते नातियों के बच्चे संभालती हैं और मैं भी अब अपने मोहल्ले की एक गली में अपनी दुकान पर दूध बेचता हूं। लेकिन लॉकडाउन के चलते हमारी दुकान अक्सर बंद रहती है। शाबान की बहू शाहीन ने कहा, लॉकडाउन के चलते हमारे काम के रूटीन पर तो कोई खास असर नहीं पड़ा अलबत्ता काम जरूर बढ़ गया है। अब हमें सफाई का जरा ज्यादा ही ख्याल रखना पड़ता है।
कभी भी रुकावट नहीं बनती जनरेशन गैपः शाबान के पोते अध्यापक गौहर अहमद गोजरी ने कहा, आजकल ज्यादातर एकल परिवार हैं। मुङो खुशी है कि मैं इस संयुक्त परिवार का हिस्सा हूं। मेरे दोस्त मुङो इसके लिए खूब चिढ़ाते हैं, लेकिन संयुक्त परिवार में रहने का अपना अलग ही मजा है। गौहर ने कहा कि हमारे परिवार में जनरेशन गैप कभी रुकावट नहीं बनी। हमने अपने बड़ों की आदतों को अपनाने की कोशिश की और हमारे बड़े भी हमारी युवा पीढ़ी के तकाजों के साथ सामंजस्य बैठाने की कोशिश करते हैं। हमारे बीच तालमेल बराबर बना हुआ है। गौहर ने कहा, लॉकडाउन के चलते अधिकतर लोग अपने घरों में बैठ शायद तंग आ गए हों लेकिन हमारा यह विशाल परिवार इस दौर को भी आपस में खूब एंज्वाय कर रहा है।