World Cycle Day: चलती का नाम है साइकिल...फिटनेस और पर्यावरण संरक्षण के लिए 'बाइसाइकिल फॉर चेंज' अभियान
लोग भूल जाते हैं उनके वाहनों से निकलने वाला धुआं प्रकृति को कितना नुकसान पहुंचा रहा है। उन्होंने अपनी पत्नी से यह बात की और अगले ही दिन उन्हें पत्नी से साइकिल उपहार में मिल गई।
जम्मू, विकास अबरोल। लॉकडाउन में जब सब थम गया, साइकिल का पहिया लगातार दौड़ता रहा। यह संदेश देते हुए कि जीवन चलते जाने का नाम है। बस अपनी जिम्मेवारी को समझते हुए। साइकिल फिटनेस और पर्यावरण संरक्षण का मिलकर संदेश देती है। साइकिल की अहमियत को समझते हुए ही पर्यावरणविद सुनील शर्मा ‘बाइसाइकिल फॉर चेंज’ ग्रुप बनाकर युवाओं को साइकिल के लाभ के प्रति जागरूक कर रहे हैं। उनके ग्रुप में इस समय प्रदेश से तीन दर्जन से अधिक युवा जुड़ चुके हैं। वह हर रोज अपने छह वर्षीय बेटे परीक्षित शर्मा के साथ 20 किलोमीटर साइकिल चलाते हैं।
कठुआ के चड़वाल निवासी सुनील ने बताया कि साइकिल कब उनका जुनून बन गई उन्हें स्वयं पता ही नहीं चला। वह अपने आवास से कार्यालय भी प्रतिदिन साइकिल से ही जाते हैं। उन्हें प्रकृति से काफी प्रेम रहा है और पर्यावरण संरक्षण पर देश-विदेश में आयोजित कई कार्यक्रमों में भी भाग ले चुके हैं। उनका कहना है कि पर्यावरण संरक्षण पर बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं लेकिन पालन कितने लोग करते हैं। लोग भूल जाते हैं उनके वाहनों से निकलने वाला धुआं प्रकृति को कितना नुकसान पहुंचा रहा है। एक दिन उन्होंने अपनी पत्नी से यह बात की और अगले ही दिन उन्हें पत्नी से साइकिल उपहार में मिल गई। अब साइकिल उनका जुनून बन चुकी है।
कोरोना काल में साइकिल बनी गरीबों के लिए मसीहाः कोरोना कॉल में साइकिल बाहरी श्रमिकों व गरीबों के लिए मसीहा बन गई है। ऑलम यह है कि बाहरी राज्यों के श्रमिक अब अपने साइकिल से फल और सब्जी बेचकर अपना गुजर बसर कर रहे हैं। गांधीनगर-सतवारी मार्ग पर काफी तादाद में बाहरी श्रमिक साइकिल पर फल-सब्जी बेचते हुए आराम से दिख जाते हैं। बिहार के सिवान के रहने वाले श्रमिक हीरालाल ने बताया कि इस समय काम धंधा पूरी तरह से बंद हो गया है। उनके पास पुरानी साइकिल थी तो उन्होंने इसके माध्यम से फल और सब्जी बेचना शुरू कर दी है। हर रोज 200 से 300 के करीब बचत होती है।
अंतरराष्ट्रीय पदक विजेता बिलाल बोले, प्रदेश में साइक्लिंग ट्रैक बनाने की जरूरत: जकार्ता में गत वर्ष आयोजित एशियन जूनियर साइक्लिंग प्रतियोगिता में भाग लेकर प्रदेश और देश के लिए रजत और कांस्य पदक जीतने वाले कश्मीर के बिलाल अहमद डार का सपना है कि वह एक दिन देश के लिए ओलंपिक में पदक जीते। बड़गाम जिले के रहने वाले बिलाल ने कहा कि भले ही प्रदेश में साइक्लिंग ट्रैक नहीं है लेकिन बावजूद इसके खिलाड़ी अपनी प्रतिभा के दम पर देश-विदेश में नाम रोशन कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि वह डल झील के पास स्थित बुल्वोर्ड रोड पर अभ्यास करते हैं। उनका मानना है कि साइकिल चलाने से अच्छा कोई भी व्यायाम नहीं है। इसको चलाने से पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है और अब तो धीरे-धीरे सभी में साइकिल चलाने का शौक बढ़ता जा रहा है।
बेहतर एक्सरसाइज भी है साइक्लिंगः डॉ. नदीम जान का कहना है कि स्वस्थ रहने के लिए साइकिल चलाना बेहतरीन माध्यम है। इससे वजन को कंट्रोल में रखा जा सकता है और कई बीमारियों से रोकथाम की जा सकती है।
साइकिल ट्रैक बनाने की कर चुके अपील: सुनील शर्मा का मानना है कि सड़कों पर बढ़ते वाहनों की संख्या को मद्देनजर रखते हुए साइकिल सवारों की सुरक्षा सवरेपरि होनी चाहिए। देशभर में सैकड़ों की तादाद में साइकिल ग्रुप हैं लेकिन अभी तक साइकिल ट्रैक नहीं हैं। फिलहाल अभी कर्नाटक और असम की सरकारें साइकिल सवारों के लिए अलग से पॉथवे बनाने का काम शुरू कर चुकी हैं। जम्मू कश्मीर में भी इस तरह के पॉथवे बनाने चाहिए।