Mothers Day 2020 : संघर्ष के दिनों में मां से मिली प्रेरणा : बलवंत ठाकुर
बलवंत ठाकुर का कहना है कि मां का यही विश्वास था। जिसने उन्हें हमेशा कड़ा संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया।
जम्मू, अशोक शर्मा । हर बच्चे की सफलता की कहानी मां की मेहनत से ही लिखी जाती है। चाहत तो हर मां की होती है कि उसके बच्चे का दुनिया में एक नाम हो, इज्जत हो, रुतबा हो। इसी तरह का एक सपना देखने वाली मां थी अश्रु देवी, जिन्होंने अपने बेटे बलवंत ठाकुर के लिए जिला रियासी के दूरदराज क्षेत्र के गांव बक्कल में बैठकर सपना देखा कि बच्चे को किसी मुकाम तक पहुंचाना है। बेटे ने पढ़ लिखकर जब निर्णय लिया कि वह कोई नौकरी नहीं करेगा। अपना जीवन कला संस्कृति को समर्पित कर देगा, तो घर परिवार के लोगों को बहुत बड़ी निराशा हुई कि जीवन भर जिस बच्चे को एक अधिकारी बनने की चाहत से पाला पोसा उसने अचानक सब कुछ छोड़, अपने आप को कला संस्कृति को समर्पित कर इसी क्षेत्र में भविष्य बनाने की सोच ली है, तो उन्हें बहुत निराश हुई। लेकिन मां का विश्वास नहीं डगमगाया और उन्होंने पूरे विश्वास से कहा कि बलवंत जिस क्षेत्र में भी जाएगा राजा बनकर दिखाएगा।
बलवंत ठाकुर का कहना है कि मां का यही विश्वास था। जिसने उन्हें हमेशा कड़ा संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने नाट्य संस्था नटरंग बनाई और उसी के सहारे जम्मू-कश्मीर की लोक संस्कृति को आगे बढ़ाना शुरू किया। संघर्ष के दिनों में जम्मू में उनके लिए मां की प्रेरणा के अलावा कोई सहारा न था। जब भी गांव जाता। पिता जी सहित परिवार के सभी लोग मां को कटाक्ष करते ‘लो आ गया तुम्हारा राजा’। लेकिन मां हमेशा अडिग रहती और कहती ‘राजा तो जरूर बनेगा’। मां के यहीं शब्द सच करने के लिए फिर से नया जोश भर जाता। करीब दो वर्ष पहले ही मां का 95 वर्ष की आयु में स्वर्गवास हो गया। उस समय तक मुझे पद्मश्री सहित कई सम्मान मिल चुके थे। देश विदेश में कई कार्यक्रमों में भाग ले चुका था। सैकड़ों कलाकारों को मंच प्रदान कर चुका था। मां की खुशी उस समय तो देखते ही बनती थी, जब मैं जम्मू-कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी का सचिव बना था। पदभार संभालने के बाद रात को गांव में मां के पास पहुंचा। उन्हें सुनाया कि सरकार ने मुझे सचिव की जिम्मेवारी दी है। मां की खुशी का ठिकाना न था। मुझे याद है, खुशी में मां सौ भी नहीं पाई थी। सुबह पांच बजे जब मैं जम्मू के लिए निकला था तो मां, रोटी तैयार कर मेरा इंतजार कर रही थी। कोई भी खुशी मैं सबसे पहले अपनी मां से ही सांझी किया करता था। मुझे लगता है कि मां से ज्यादा खुशी मनाने वाला दुनिया में कोई हो ही नहीं सकता। इस बार जब दक्षिण अफ्रीका में सांस्कृतिक राजनयिक बना तो अहसास हुआ कि मां के बिना बड़ी से बड़ी खुशी कोई ज्यादा महत्व नहीं रखती। जब भी कोई सफलता मिलती है, सबसे पहले मां ही याद आती है। आई मिस यू मां।