भालू के हमले में आंखों की रोशनी गंवा चुके मंजूर को सीआरपीएफ ने दी नई जिंदगी
जम्मू कश्मीर में भालू के हमले में आंखों की रोशनी गंवा चुके मंजूर अहमद मीर को सीआरपीएफ ने नई जिंदगी दी।
श्रीनगर, [नवीन नवाज]। मेरे लिए सीआरपीएफ एक फोर्स नहीं बल्कि खुदा की ओर से भेजी गई फरिश्ता है। रोहमा, रफियाबाद (बारामुला) में अपने घर के आंगन में बैठे मंजूर अहमद मीर ने कहा, भालू के हमले के बाद पिछले पांच साल से मेरी जिंदगी जहन्नुम बन चुकी थी। ऐसा लगने लगा था कि ताउम्र दूसरों के सहारे जीना पड़ेगा, भीख मांगनी पड़ेगी। लेकिन एक दिन मेरे एक दोस्त ने कहा कि मैं सीआरपीएफ से मदद मांगू। मैंने बाजार में सीआरपीएफ के बंकर पर लिखा फोन नंबर लिया और वाकई उसके बाद मेरी जिंदगी बदल गई।
मंजूर अहमद मीर वही युवक है, जिसकी आंखों की रोशनी सीआरपीएफ की मदद से बची है। चंडीगढ़ स्थित पीजीआइ में उसकी आंखों का उपचार सीआरपीएफ ने ही कराया है। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी गत दिनों मंजूर मीर के बारे में ट्वीट कर सीआरपीएफ की मददगार योजना को सराहा है।
उत्तरी कश्मीर के जिला बारामुला के अंतर्गत रफियाबाद के रोहामा के रहने वाले मंजूर अहमद ने बताया कि करीब पांच साल पहले मैं अपने खेत की तरफ जा रहा था कि रास्ते में अचानक भालू ने हमला कर दिया। मैंने भालू का मुकाबला किया और मदद के लिए शोर मचाया। गांव के लोग मेरी मदद के लिए आए। भालू मुझे लहूलुहान कर जंगल में भाग गया। मैं करीब चार माह तक अस्पताल में रहा। बच तो गया, लेकिन जिंदगी मौत से बदतर हो गई। चेहरा पूरी तरह बिगड़ गया। एक आंख की रोशनी चली गई। बीते छह माह के दौरान दूसरी आंख जो बच गई थी वह भी बंद होने लगी थी। बड़ी मुश्किल से गुजारा कर रहा था।
डॉक्टरों से मिला तो उन्होंने कहा कि सर्जरी के लिए बाहर जाना पड़ेगा। लाखों रुपये खर्च होंगे। कोई मदद नहीं कर रहा था। एक दिन एक दोस्त ने बताया कि सीआरपीएफ से मदद मांगो। उसने ही सीआरपीएफ के एक बंकर से नंबर नोट किया और फिर मैंने डरते-डरते 14411 नंबर पर फोन किया। उन्होंने मेरा पूरा ब्योरा लिया। सीआरपीएफ वाले मेरे घर तक पहुंच गए। उन्होंने न सिर्फ मेरी आंख बचाने में मदद की, बल्कि अब मेरे लिए रोजगार का भी प्रयास कर रहे हैं।
एक साल में ढाई लाख से ज्यादा लोग मांग चुके मदद
मददगार योजना के लिए तैनात सीआरपीएफ टीम का नेतृत्व कर रहे असिस्टेंट कमांडेंट गुल जुनैद खान ने कहा कि बीते एक साल के दौरान करीब ढाई लाख से ज्यादा लोग हमसे संपर्क कर चुके हैं। गत जुलाई को मददगार की हेल्पलाइन पर किश्तवाड़ के रहने वाले अनिल सिंह ने कैंसर से पीड़ित अपनी बहन के लिए रक्तदान का आग्रह किया था। सीआरपीएफ के जवानों ने रक्तदान कर महिला की जान बचाई। हंदवाड़ा के एक श्रमिक की दोनों किडनियां फेल हैं। मददगार के जरिए ही सीआरपीएफ द्वारा उसे प्रति माह दस हजार रुपये की मदद की जा रही है। मंजूर मीर ने भी हमसे फोन पर ही संपर्क किया था। हमने उसके इलाके में तैनात सीआरपीएफ की वाहिनी को सूचित किया। वहां स्थित सीआरपीएफ की 92वीं वाहिनी के कमांडेट दीपक ने तुरंत संज्ञान लिया।
उन्होंने मंजूर का पता लगाया, स्थानीय डॉक्टरों को दिखाया और उसके बाद जब पता चला कि उसका इलाज कश्मीर में नहीं हो पाएगा, उसे हमने चंडीगढ़ भेजा। उसका सारा खर्च सीआरपीएफ ने ही उठाया है। उन्होंने बताया कि 16 जून, 2017 से 30 सितंबर, 2018 तक हमें मदगार पर 2,63,938 फोन आए हैं। इनमें से 3043 फोन पर कार्रवाई जरूरी थी और इनमें 2610 मामले पर कार्रवाई की गई। संबंधित लोग पूरी तरह हमारे प्रयास से संतुष्ट हैं। शेष 433 मामले प्रक्रिया में हैं। ई-मेल के जरिए भी सात लोगों ने संपर्क किया है और उनकी समस्याओं को भी हल किया गया है।
सड़क छाप मजनुओं के खिलाफ लड़कियों ने मांगी मदद
करीब 80 लड़कियों ने मददगार पर फोन कर सड़क छाप मजनुओं की शिकायत की है। इन सभी मामलों में स्थानीय पुलिस की मदद से आरोपितों को पकड़ा गया और उन्हें काउंसलिंग दी गई। कुछ मामलों में कानूनी कार्रवाई भी की गई। कश्मीर से बाहर पढ़ रहे छात्र भी हमारी मदद ले रहे हैं। आइजी सीआरपीएफ रवि दीप साही ने कहा कि जम्मू कश्मीर में हमारी 67 वाहिनियां हैं और राज्य के हर हिस्से में हमारे जवान तैनात हैं। मददगार के जरिए स्थानीय लोगों के साथ हमारा संवाद और समन्वय लगातार बढ़ रहा है।
जानें, क्या है मददगार
कश्मीर में आतंकियों और पत्थरबाजों से निपट रही सीआरपीएफ ने स्थानीय लोगों के साथ संवाद के विभिन्न कार्यक्रमों के दौरान उनकी समस्याओं का संज्ञान लेने के बाद 16 जून, 2017 को मददगार हेल्पलाइन सेवा की शुरुआत की। मददगार पर फोन कर आम लोग प्रशासनिक मसलों से लेकर अपनी रोजमर्रा की समस्याओं के निदान में मदद प्राप्त कर रहे हैं।