सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध बना रही कला अकादमी
बदलते दौर में कला व संस्कृति को बचाना भी चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। कला, संस्कृति एवं भाषा अकादमी इस दिशा में लगातार कोशिश करता रहा है।
जम्मू,जेएनएन। बदलते दौर में कला व संस्कृति को बचाना भी चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। कला, संस्कृति एवं भाषा अकादमी इस दिशा में लगातार कोशिश करता रहा है। कार्यक्रमों और योजनाओं के जरिये संस्कृति के विकास के काम के प्रयास होते रहे हैं।
लेकिन जून 2014 में जब से डॉ. अरविंद अमन ने जम्मू-कश्मीर कला, संस्कृति एवं भाषा के अतिरिक्त सचिव की जिम्मेदारी संभाली है, अहम कार्य हुए हैं। दरअसल इंटरनेट और सोशल मीडिया के इस दौर में नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति के प्रति जागरूक बनाने के लिए लोक परंपराओं, लोक संगीत में रुचि पैदा करने की दिशा में तेजी से काम हो रहे हैं।
सांस्कृतिक विरासत को संजोने, समृद्ध करने की दिशा में डॉ. अमन से दैनिक जागरण संवाददाता अशोक शर्मा की हुई विस्तृत बातचीत के प्रमुख अंश। कला, भाषा, बोली, संगीत और नृत्य शैली को बचाने के लिए अकादमी क्या कर रही है? जम्मू कश्मीर कला, संस्कृति एवं भाषा अकादमी विलुप्त हो रही कला शैलियों के संरक्षण के लिए प्रयासरत है। लोक मेले हमारी सांस्कृतिक पहचान रहे हैं। लेकिन इन मेलों के प्रति लेागों का रुझान कम होने लगा था। अकादमी ने इन मेलों में नई जान फूंकने का काम किया है।
जहां भी कोई लोक मेला होता है, अकादमी वहां लोक कलाकारों को अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने का मौका देती है। पिछले कुछ वर्ष में 315 पार्टियां सामने आई हैं। करीब 2500 ऐसे कलाकारों को मौका मिला है, जिन्हें कभी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने का मौका ही नहीं मिला। विलुप्त होती किन शैलियों पर विशेष कार्य हुआ? लोक शैली फुमनियां की राज्य में सीमांत क्षेत्र अरनिया में एक मुखतार भक्तियां पार्टी बची थी।
मुझे इसका पता चला तो उन्हें अकादमी में कार्यक्रम करने के लिए आमंत्रित किया। स्वयं को उपेक्षित महसूस कर रहे इन कलाकारों ने कार्यक्रम में भाग लेने से इन्कार कर दिया। मुझे उनकी पीड़ा का अहसास हुआ। उसी समय मैं अकादमी के साथियों के साथ अरनियां पहुंचा। इस शैली से जुडे़ सभी कलाकारों से बात की। उनकी युवा पीढ़ी ने तो साफ कर दिया कि उन्हें संगीत की इस शैली से जुडे़ रहने में भविष्य नहीं दिख रहा। उन्हें समझाया गया। भक्तियां के कलाकारों को हमारी बात समझ आ गई। अब यह पार्टी लगातार कार्यक्रम कर रही है। इन्हें देखकर दूसरे लोग भी प्रभावित हुए हैं। बड़ी बात यह है कि युवा पीढ़ी आगे आई है। इन कलाकारों को दिल्ली में आयोजित कार्यक्रमों में भाग लेने का मौका मिला।
ग्रुप के वरिष्ठ कलाकार का प्रधानमंत्री के साथ फोटो करवाया। अब भक्तियां शैली के कलाकार काफी उत्साहित हैं। गिरधारी लाल डोगरा को नए युवाओं को तैयार करने के लिए कहा गया। बैसाखी फेस्टिवल में इन कलाकारों को मौका दिया गया। भाख के कई ऐसे कलाकारों को मौका मिला है। संगीत के प्रोत्साहन के लिए कोई ठोस प्रयास? संगीत एवं इससे जुडे़ परिवारों के प्रोत्साहन के लिए घराना कार्यक्रम शुरू किया गया है। इसके तहत अभी तक जम्मू के 25 घरानों को सम्मानित किया गया है।
उनके परिवार के सभी सदस्यों को अपनी कला का प्रदर्शन करने का मौका मिला है। जब कार्यक्रम शुरू किया गया था तो लगता था कि यह कार्यक्रम कुछ महीने चलाना मुश्किल होगा। लेकिन जैसे-जैसे कार्यक्रम आगे चला, नई ऊंचाई पकड़ता गया। पिछले 25 महीने से यह कार्यक्रम सफलतापूर्वक चल रहा है। जिस तरह का रिस्पांस मिल रहा है, लगता है कि अभी यह कार्यक्रम लंबे समय तक जारी रहेगा। किसी भी संभाग में इतने ज्यादा परिवारों का संगीत को समर्पित होना अपने आप में एक उपलब्धि है। अकसर शिकायत रहती है कि अकादमी अपनी गतिविधियों का वार्षिक कैलेंडर जारी नहीं करती। अपनी सुविधा अनुसार कार्यक्रम का आयोजन करवाया जाता है ? हर गतिविधि का कैलेंडर संभव नहीं है। लेकिन बहुत सी गतिविधियां जिनके कारण अकादमी की पहचान है, उनकी तिथि निर्धारित कर दी गई है। अकादमी का वार्षिक नाट्योत्सव नवंबर महीने के पहले सोमवार से शुरू हो जाया करेगा। सचिवालय जम्मू में खुलते ही नाट्योत्सव का आगाज होगा। डोगरी मान्यता दिवस पर दो दिवसीय डोगरी कांफ्रेंस होगी। हिंदी पखवाडे़ पर हिंदी कांफ्रेंस।
पंजाबी काफ्रेंस का समय तय कर लिया गया है। लगभग हर गतिविधि को प्राथमिकता दी गई है। साहित्यिक गतिविधियों के बढ़ावे के लिए किस तरह के कार्य हो रहे हैं? हिंदी, पंजाबी, डोगरी शीराजा के सभी अंक समय पर प्रकाशित हो रहे हैं। नियमित कवि गोष्ठी, कहानी गोष्ठियों के अलावा मिली-जुली गोष्ठियों का आयोजन होता रहता है। कई पुस्तक विमोचनों के आयोजन में अकादमी का सहयोग रहता है। युवा प्रतिभाओं को तराशने के कोई विशेष प्रयास? विजेताओं को आगे भी मौके मिलते रहते हैं। हर वर्ष बच्चों की थियेटर, डांस, पेंटिंग वर्कशॉप का आयोजन किया जाता है। अब कोशिश है कि जो बच्चे समर वर्कशॉप में भाग लेते हैं, उनके लिए सर्दी की छुंिट्टयों में भी कुछ दिन की कार्यशाला का आयोजन किया जाए ताकि बच्चों का कला से नाता बना रहे।