Shervali ने कबालियों को गुमराह कर उन्हें श्रीनगर पहुंचने से रोका था, कश्मीर के हीरो को सेना ने दी श्रद्धांजलि
मकबूल शेरवानी को श्रद्घांजलि देने के कार्यक्रम का आयोजन सेना की 19 इन्फैंटरी डिवीजन की 79 माउंटेन ब्रिगेड की 46 राष्ट्रीय राइफल्स की आेर से किया गया। कश्मीर के हीरो द्वारा पाकिस्तान के कश्मीर पर कब्जे करने के मंसूबों को नाकाम बनाने के लिए दिखाई वीरता को याद किया गया।
जम्मू, राज्य ब्यूरो : जम्मू कश्मीर में स्थायी शांति कायम करने के लिए कुर्बानियां दे रही सेना ने रविवार को कश्मीर के हीरो मकबूल शेरवानी को उनके 75वें शहीदी दिवस पर श्रद्धासुमन अर्पित किए। भारत माता के जयकारों के बीच सेना ने स्थानीय निवासियों के साथ बारामुला में शहीद के स्मारक पर उन्हें सलामी दी। मकबूल शेरवानी को श्रद्घांजलि देने के कार्यक्रम का आयोजन सेना की 19 इन्फैंटरी डिवीजन की 79 माउंटेन ब्रिगेड की 46 राष्ट्रीय राइफल्स की आेर से किया गया। इस मौके पर कश्मीर के हीरो द्वारा पाकिस्तान के कश्मीर पर कब्जे करने के मंसूबों को नाकाम बनाने के लिए दिखाई गई वीरता को याद किया गया। इस कार्यक्रम में शहीद के परिजनों के साथ क्षेत्र के कई निवासी भी मौजूद थे।
इस मौके पर शेरवानी की असाधारण वीरता को याद करते हुए वक्ताओं ने बताया कि बिना मिलिट्री ट्रैनिंग के शेरवानी ने अन्य स्वयंसेविओं के साथ श्रीनगर की ओर बढ़ रहे कबायलियों को रोकने के लिए सड़क पर बाधाएं खड़ी करने के साथ पुलों को तबाह कर दिया था। उन्नीस वर्षीय शेरवानी की बहादुरी के कारण गुमराह हुए कबायलियों को बहुत वक्त बर्बाद हुआ। शेरवानी व उनके साथियों ने कबालियों को को 27 अक्टूबर 1947 को भारतीय सेना के श्रीनगर पहुंचने तक रोके रखा। शेरवानी बहुत बड़े देशभक्त थे। जब कबायलियों को अंदाजा हुआ कि शेरवानी ने उन्हें गुमराह किया तो उन्होंने बर्बरता की सारी हदें पार कर दी।
कबायलियों ने उन्हें यातनाएं देने के बाद उन्हें लकड़ी की बल्लियाें पर शरीर में कील घुसाकर टांग दिया था। देश की खातिर जान देने वाले मकबूल शेरवानी को बल्लियों पर टांगने के बाद उनके शरीर पर 14 गोलियां दागी गई थी। ऐसे में वह किसी परमवीर से कम नही थे। सात नवंबर को शहादत पाने वाले शेरवानी के पार्थिव शरीर को वहां पहुंची भारतीय सेना ने बल्लियां से उतारा था। अपनी शहादत से शेरवानी ने कश्मीर के लोगों में दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब देने की अलख जगाई थी। ऐसे में शेरवानी को श्रद्घांजलि देते हुए सेना के अधिकारियों, जवानों के साथ लोगों ने यह विश्वास जताया कि नई पीढ़ियां अपने उस शहीद को हमेशा याद रखेंगी कि देश के लिए कुर्बान हो गया।
शेरवानी ने कबालियों को श्रीनगर एयरपोर्ट नहीं पहुंचने दिया : कबालियों की पूरी कोशिश थी कि वे श्रीनगर एयरपोर्ट को अपने कब्जे में ले लें। अगर ऐसा होता तो श्रीनगर में भारतीय वायुसेना के विमानों का उतरना मुश्किल हो जाता। ऐसे हालात में मकबूल शेरवानी ने बारामुला में कबायलियों को गुमराह कर उन्हें वहीं उलझाए रखा। कबालियों को लगातार गलत सूचना देकर उन्हें बारामूला में ही रोके रखा गया। अगर कबालयी भारतीय सेना के आने से पहले श्रीनगर में एयरपोर्ट पर कब्जा करते तो उनका पलड़ा भारी हो जाता। इस बहादुरी के लिए सेना 27 अक्टूबर को इन्फैंटरी दिवस पर हर साल मकबूल शेरवानी को श्रद्धांजलि देती है।
शेरवानी ने कबायलियों को किया था गुमराह : कबायली 22 अक्टूबर को कश्मीर के बारामुला पहुंच चुके थे और श्रीनगर की ओर कूच करने की तैयारी में थे। इस समय सूझबूझ का परिचय देते हुए शेरवानी और उनके कुछ साथियों ने साइकिल पर घूम-घूम कर कबायलियों को गुमराह किया कि श्रीनगर में भारतीय सेना आ गई है। वहां जाने का मतलब मौत है।
कबायली चार दिन तक रुके रहे, लेकिन 27 अक्टूबर को भारतीय सेना के आते ही उन्हें अंदाजा हो गया कि एक युवा उन्हें मूर्ख बना गया।
ऐसे में शेरवानी को पकड़ लिया गया और उनसे कहा गया कि अगर वह भारतीय सेना, जम्मू-कश्मीर मिलिशिया की मौजूदगी की खुफिया जानकारी दें तो बख्श दिया जाएगा। न मानने पर उनके शरीर में कील लगाकर सूली पर टांगने के बाद उन्हें नवंबर के पहले सप्ताह में गोलियां मारकर शहीद कर दिया गया। आठ नवंबर को सेना ने बारामुला वापस ले लिया व सूली पर टंगे शेरवानी का पार्थिव शरीर लोगों को मिला।