Kashmir Situation: खुदा को याद किया और जिंदगी देने वाले फरिश्ते फौज की वर्दी में हमारे पास पहुंच गए
हमें सेना की आरआर के एक शीविर का ध्यान आया। हमने वहीं पर संपर्क किया। कैंप से सेना के जवानों का एक दल और डाक्टर मौके पर पहुंचे। उन्होंने हमारी पूरी मदद की।
श्रीनगर, नवीन नवाज। जवान और अवाम-अमन है मुकाम। साहब यह सिर्फ कोरा नारा नहीं हैं, यह हकीकत है। अगर नहीं होती तो आज आपको यहां मेरी बहन की गोद में किलकारियां लेता उसका बेटा देखने को नहीं मिलता। अगर फौज के लाेग नहीं आते तो आज हमारे घर में जश्न नहीं मातम का माहौल हाेता। उपजिला अस्पताल सोगाम में उपचाराधीन तस्लीमा के पास खड़े उसके भाई ने यह बात कही। उसने कहा कि दो दिन पहले रास्ता पूरी तरह बंद हो चुका था, सिर्फ बर्फ ही बर्फ नजर आ रही थी। हम सभी डर गए थे, ऐसे में खुदा को याद किया और जिंदगी देने वाले फरिश्ते फौज की वर्दी में हमारे पास पहुंच गए।
सोगाम उत्तरी कश्मीर में जिला कुपवाड़ा में एलओसी के साथ सटा हुआ है। इस इलाके में खूृब हिमपात होता है और सोगाम के आस-पास के कईगांवों का तहसील और ब्लाक मुख्यालय से संपर्क कट चुका है। सिर्फ सोगाम में ही नहीं जम्मू प्रांत में जवाहर सुरंग के पास बनिहाल के ऊपरी इलाके में स्थित उखराल में भी सेना के जवानों ने बर्फ में फंसी पड़ी दो गर्भवति महिलाओं को अस्पताल पहुंचा न सिर्फ उनकी जिंदगी बचाई,बल्कि उनकी गोद में दो नए फूल भी खिलखिला रहे हैं।
तस्लीमा के भाई ने कहा कि वीरवार को मौसम बिगड़ चुका था। हम तस्लीमा को लेकर अस्पताल की तरफ जा रहे थे। भारी बर्फवारी शुरु हो चुकी थी, रास्ता बंद हो गया और अंधेरा भी हो गया था। हम बर्फ में फंस गए थे। हमें लग रहा था कि अब हम जिंदा नहीं रह सकेंगे। किसी तरह हमने निकटवर्ती सैन्य शीविर में संपर्क किया और कुछ ही देर में सेना के जवान एक डाक्टर के साथ हमारे पास आ पहुंचे। उन्होंने मेरी बहन को मौके पर प्राथमिक उपचार दिया और उसके बाद उन्होंने स्ट्रेचर पर मेरी बहन को उठाया और करीब तीन किलोमीटर तक वह अपने कंधों स्ट्रेचर लिए बर्फ में पैदल चले।फिर उन्होंने अपनी एबंलेंस के जरिए मेरी बहन को यहां उपजिला अस्पताल सोगाम पहुंचाया। अगर वह नहीं होते तो माैत का फरिश्ता आ जा जाता।
इधर, जवाहर सुरंग के दाएं तरफ बनिहाल जिला अस्पताल में अपनी नवजात भांजे को गोद में उठाकर घूम रहे फैयाज नामक युवक ने कहा कि जिंदगी और मौत के बीच जंग क्या होती है, उस समय इंसान क्या सोचता है, यह मैंने महसूस कर लिया है। हमारा गांव उखराल जिले के सबसे दुर्गम और पिछड़े इलाकों में एक है। वीरवार की दोपहर को अचानक मेरी बहन की प्रसव पीड़ा बड़ गई। हम उसे वहां स्थानीय अस्पताल में ले गए। वहां एक और गर्भवति महिला का इलाज चल रहा था।डाक्टरों ने कहा कि आप्रेशन करना पड़ेगा, इसलिए आपको बनिहाल जाना है, अन्यथा मां-बच्चा दोनों की जिंदगी खतरे में रहेगी। हम क्या करते, वहां से निकल पड़े। मेरी बहन और वह दूसरी महिला, दोनों को स्वास्थ्य विभाग की एबंलेंस में लेकर निकले। कुछ रिश्तेदार भी साथ हो लिए।
उसने कहा कि मौसम तो पहले ही खराब था, हिमपात शुरु हो गया। एंबुलेंंस फंस गई। हम उस समय नाचलना पुल पर थे। बहुत परेशान थे, एंबुलेंस में मेरी बहन और दूसरी औरत दोनों की तबीयत बिगड़ी हुई थी, उनके साथ आयी नर्स भी घबरा चुकी थी। उसी समय हमें सेना की आरआर के एक शीविर का ध्यान आया। हमने वहीं पर संपर्क किया। कैंप से सेना के जवानों का एक दल और डाक्टर मौके पर पहुंचे। उन्होंने हमारी पूरी मदद की। उन्होंने अपनी एंबलुेंस के जरिए दोनों महिलाओं को यहां बनिहाल अस्पताल पहुंचाया। सेना का डाक्टर पूरे रास्ते साथ रहा और जब तक दोनों महिलाओं का प्रसव नही हुआ,सेना का डाक्टर यहां अस्पताल मेंहमारे साथ रहे। हमारे घर में यह खुशी तो फौज की देन है।
फौज व स्थानीय लोगों के रिश्तों के बारे में पूछे जाने पर उसने कहा कि हमारा इलाका कभी जिहादियों की पनाहगाह था, अगर आज वहां जिहादी नहीं हैं,क्यांकि फौज है । फौज और आम लोगों के रिश्ते बहुत मजबूत हैं। जिहादियों ने जहां हमारे स्कूल और अस्पताल जलाए, वहीं फौज ने हमारे लिए स्कूल और अस्पताल बनवाए हैं, आप्रेशन सदभावना के जरिए वह सिर्फ हम इंसानों के लिए ही नहीं हमारे माल मवेशी के लिए भी चिकित्सा शीविर लगाते हैं। हमारे बच्चों को स्कूल पहुंचा रहे हैं। मैं ज्यादा क्या कहूं, सुबूत तो यह नवजात भी है।