माइनस 25 डिग्री पर भी अडिग वतन और पर्यावरण के ये प्रहरी, सिचाचिन में भी सेना का स्वच्छता अभियान जारी
सियाचिन में दुश्मन के मंसूबों को नाकाम बनाने के लिए सेना वर्ष 1984 से डेरा डाले बैठी है। सेना की रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने से वहां पर खासा कचरा भी पैदा होता है।
जम्मू, विवेक सिंह। विश्व के सबसे ऊंचे युद्धस्थल सियाचिन ग्लेशियर में खून जमा देने वाली ठंड है। हिमस्खलन का खतरा भी सिर पर मंडराता है। बीते दिनों ही सेना के आठ जवान इसमें फंस शहीद हो गए। बावजूद इसके जवानों का समर्पण देखते बन रहा है। वतन और पर्यावरण के ये प्रहरी हर चुनौती को मात देते देखे जा सकते हैैं।
सियाचिन ग्लेशियर में परतापुर इलाके से ऊपर स्थित बेस कैंप में इस समय तापमान शून्य से करीब 25 डिग्री नीचे है। वहीं ग्लेशियर के ऊपरी इलाकों में तापमान शून्य से 45 डिग्री कम है। जनवरी में तापमान शून्य से 60 डिग्री नीचे तक गिर जाता है।
चालाक दुश्मन, बेरहम मौसम और लगातार बढ़ रहा कचरा सियाचिन में गंभीर चुनौतियां पैदा कर रहा है। इन सबके बीच, सर्दियों में सियाचिन में हिमस्खलन का खतरा सबसे बड़ी चुनौती है। सेना ने बीते दिनों क्षेत्र में हुए दो बड़े हिमस्खलन में आठ सैनिक और दो पोर्टर खोए हैं।
सियाचिन में दुश्मन के मंसूबों को नाकाम बनाने के लिए सेना वर्ष 1984 से डेरा डाले बैठी है। सेना की रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने से वहां पर खासा कचरा भी पैदा होता है। पहले इससे निपटने के लिए कुछ खास नहीं होता था। दो वर्ष से कचरा हटाने की मुहिम तेज हो गई है। सियाचिन स्वच्छता अभियान 10 हजार फीट उंचाई से लेकर 22 हजार फीट ऊंचाई पर स्थित बाना पोस्ट तक जारी है। जवानों को निर्देश हैं कि वे पेट्रोलिंग से वापसी के दौरान अपने साथ 10 से 12 किलोग्राम तक कचरा भी समेट लाएं। सियाचिन के आधार शिविर तक पहुंचाने के दो साधन हैं। या तो हेलीकॉप्टर में या फिर कंधों पर उठाकर। इस मुहिम के तहत सेना की उत्तरी कमान की 14 कोर अब तक करीब 150 टन कचरा सियाचिन से हटा चुकी है। लक्ष्य है कि सेना हर साल सियाचिन से 100 टन से अधिक कचरे को हटाकर पर्यावरण संरक्षण करेगी।
अनुमान के अनुसार वर्ष 1984 से अब तक सियाचिन में आठ हजार टन कचरा एकत्र हुआ है। सियाचिन की अत्याधिक ठंड में कचरा खत्म नहीं होता है। जनवरी 2018 से यहां पर्यावरण संरक्षण की मुहिम तेज हुई है। स्थानीय लोगों की सहायता से लेकर कचरे को नोबरा के निकट एकत्र किया जाता है। बाद में कचरे को सेना तीन मशीनों से खत्म करती है। नष्ट कचरे को नोबरा के गांवों में लोग खाद के रूप में खेती में इस्तेमाल करते हैं। गैर जैविक कचरे को इन्सेनेटर मशीन से राख में तब्दील कर दिया जाता है। वहीं धातु कचरे का अलग निपटान किया जाता है।
- सेना के जवान चुनौतीपूर्ण हालात में देश सेवा करने के साथ सियाचिन ग्लेशियर को साफ रखने को भी कटिबद्ध हैं। सेना सिचायिन स्वच्छता अभियान के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण के बारे में जवानों को प्रशिक्षित कर इस मुहिम को तेजी दे रही है। सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। टनों कचरे को हटाना संभव हुआ है। -लेफ्टिनेंट कर्नल अभिनव नवनीत, पीआरओ डिफेंस, उत्तरी कमान