रद हो सकती हैं खादी ग्रामोद्योग बोर्ड में हुर्इ नियुक्तियां, महबूबा के ममेरे भार्इ का भी है नाम
नियुक्तियों को राज्यपाल प्रशासन रद करने पर गंभीरता से विचार कर रहा है। इन नियुक्तियों के रद होने से उपलब्ध रिक्त पदों को भरने का जिम्मा अधीनस्थ भर्ती बोर्ड को सौंपा जाएगा।
जम्मू, राज्य ब्यूरो : खादी ग्रामोद्योग बोर्ड (केवीआइबी) में बीते दो वर्षो में कथित तौर पर चोर दरवाजे से हुई नियुक्तियों को राज्यपाल प्रशासन रद करने पर गंभीरता से विचार कर रहा है। इन नियुक्तियों के रद होने से उपलब्ध रिक्त पदों को भरने का जिम्मा अधीनस्थ भर्ती बोर्ड को सौंपा जाएगा।
इसी साल की शुरुआत में केवीआइबी में नियुक्तियों को लेकर उस समय बवाल मच गया था, जब एग्जीक्यूटिव और कानून अधिकारियों से लेकर अर्दली की चयन सूची जारी होने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के एक ममेरे भाई समेत दो रिश्तेदारों के अलावा बोर्ड के उपाध्यक्ष पीरजादा मंसूर हुसैन के रिश्तेदार और कुछ अन्य प्रभावशाली लोगों के बच्चों के नाम पाए गए। इनमें से कुछ की शैक्षिक योग्यता भी संदेहास्पद थी। मामले को तूल पकड़ते देख तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफती के मामा सरताज मदनी के पुत्र ने नौकरी ज्वाइन नहीं करने का एलान कर दिया, लेकिन विवाद ठंडा नहीं हुआ और जांच की मांग जोर पकड़ गई। केवीआइबी में घोटाले का आरोप लगाते हुए विभिन्न संगठनों ने पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार में वर्ष 2015 के बाद से बोर्ड में हुई नियुक्तियों की जांच की मांग की।
हालात को देखते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री ने विवादों के घेरे में आई चयन सूची पर रोक लगाते हुए प्रमुख गृह सचिव आरके गोयल के नेतृत्व में 19 मार्च 2018 को तीन सदस्यीय जांच समिति गठित करने का आदेश दिया था। समिति के अन्य दो सदस्यों में स्वास्थ्य विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव डॉ. पवन कोतवाल और फारूक अहमद शाह को नामजद किया गया। हालांकि जांच समिति को अपना काम करने और पूरी रिपोर्ट दाखिल करने के लिए एक माह का समय दिया गया, लेकिन समिति ने वादी के तत्कालीन हालात के मद्देनजर कई बार अपनी जांच पूरी न होने का हवाला देते हुए विस्तार मांगा।
मुख्य सचिव को सौंपी रिपोर्ट
प्रशासनिक अधिकारियों के मुताबिक जांच समिति ने करीब 10 दिन पहले ही अपनी रिपोर्ट महाप्रशासनिक विभाग के माध्यम से राज्य के मुख्य सचिव बीवीआर सुब्रहमण्यम को सौंपी है। मुख्य सचिव ने गत सप्ताह ही यह रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपी है। उन्होंने बताया कि इस रिपोर्ट पर अंतिम फैसला लेने के अधिकार राज्यपाल के पास है। वह चाहें तो इसे स्वीकारें या नकारें, लेकिन राज्यपाल के अब तक के रवैये को देखते हुए कहा जा रहा है कि वह इस रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए कार्रवाई करेंगे। उन्होंने बताया कि जांच रिपोर्ट में बताया गया है कि खाली पदों का विज्ञापन 2014 में जारी किया गया था। कई अभ्यर्थियों ने आवेदन भी किया था। लिखित परीक्षा भी हो गई और परिणाम आना बाकी रह गया था, लेकिन बोर्ड के तत्कालीन उपाध्यक्ष पीरजादा मंसूर हुसैन ने चयन परीक्षा के परिणाम को रोकते हुए वर्ष 2016 में बिना अधिकार, नियमों की अनदेखी कर अपने लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए संबंधित पदों पर चयन के लिए नए मानदंड तय कर दिए। पहले आयोजित परीक्षा के आधार पर इसमें अनुभव को कोई अहमियत नहीं दी गई। 40 अंक अकादमिक योग्यता, 30 अंक लिखित परीक्षा व साक्षात्कार के लिए तय किए गए। इसके बाद वर्ष 2017 में नए तरीके से चयन परीक्षा शुरू हुई। अगस्त 2017 में दोबारा परीक्षा आयोजित की गई और जनवरी 2018 में मौखिक परीक्षा हुई, लेकिन जब परिणाम आया तो हंगामा मच गया।