Jammu Kashmir: 35 वर्ष चले भ्रष्टाचार के मामले में सभी आरोपित सबूतों के अभव में बरी
भ्रष्टाचार के 35 वर्ष चले मामले में सुबूतों के अभाव सभी आरोपितों को स्पेशल जज एंटी क्रप्शन कश्मीर आरएन वातल ने बरी कर दिया।
जेएनएफ, जम्मू : 35 वर्ष तक चले भ्रष्टाचार के मामले में सभी आरोपितों को स्पेशल जज एंटी क्रप्शन कश्मीर आरएन वातल ने सुबूतों के अभाव में बरी कर दिया। इस मामले में डिस्ट्रिक इंडस्ट्रियल सेंटर (डीआइसी) श्रीनगर के तत्कालीन मैनेजर गुलाम मुहम्मद सोफी, तत्कालीन जनरल मैनेजर मुहम्मद मुजफ्फर हमदानी, सीए अशोक कौल, डीआइसी के प्रोमोशन ऑफिसर महमूद मकबूल हाकिम, एसएसआइ यूनिट बेस्ट ट्रंक के मालिक गुलाम मोहम्मद बेग, इरशाद स्टील बटमालू के मालिक बशीर अहमद बेग, न्यू रोज ट्रक इंडस्ट्रीज श्रीनगर के मालिक मुहम्मद शेख बेग, इरशाद एंटरप्राइजेज चंदपोरा के मालिक इरशाद अहमद अहंगर और एंपायर सेफ कंपनी के मालिक भूपेंद्र सिंह आरोपित थे। इस मामले में आरोपित जिनमें डीआइसी श्रीनगर के तत्कालीन जनरल मैनेजर मुहम्मद मुजफ्फर हमदानी, सीए अशोक कौल, भूपेंद्र सिंह की मौत हो चुकी है।
फर्जी दस्तावेजों पर फर्जीवाड़ा : यह मामला वर्ष 1985 में सामने आया था जब विजिलेंस आर्गेनाइजेशन ने 15 लाख की फर्जी सेंट्रल सेल्स टैक्स (सीएसटी) रिफंड किए जाने की शिकायत पर कार्रवाई की थी। विजिलेंस को शिकायत मिली थी कि वर्ष 1981 में सीएसटी के 15 लाख का रिफंड आरोपितों ने फर्जी दस्तावेजों के आधार लिया है। इस मामले की जब प्रारंभिक जांच की तो पता चला कि यूनिटों को डीआइसी श्रीनगर की ओर से 44 लाख का सीएसटी रिफंड किया जो फर्जी दस्तावेजों के आधार पर जारी किया गया। दरअसल केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर में छोटे उद्योगों को लाभ देने के लिए सेंट्रल सेल्स टैक्स में छूट दी गई थी।
आरोप था कि गुलाम मुहम्मद बेग, इरशाद अहमद ने अपने कुछ करीबी रिश्तेदारों के नाम से पांच छोटे उद्योग स्थापित किए जो स्टील ट्रंक बनाने के नाम पर शुरू किए गए। इसके लिए उन्होंने राज्य से बाहर से कच्चा माल लिए जाने का दावा पेश किया। उसके लिए उन्होंने फर्जी दस्तावेज बनाए। फर्जी दस्तावेजों के आधार पर उन्होंने 40 लाख 90 हजार रुपये का अवैध तरीके से लाभ प्राप्त किया। जांच में यह भी सामने आया कि इस मामले में यह भी सामने आया कि सीए अशोक कौल ने इन यूनिटों के नाम पर फर्जी सर्टिफिकेट भी वर्ष 1984 तक जारी किए। सीए अशोक कौल का देहांत हो चुका है।
विजिलेंस के अनुसार सारे क्लेम बिना खरीद और वेरिफिकेशन सर्टिफिकेट के जारी हुए, जिसमें नियमों को दरकिनार किया था। इतना ही नहीं जिन तीन ट्रांसपोर्ट कंपनियों से राज्य से बाहर से कच्चा माल मंगवाने का दावा किया गया था, वे तीनों कंपनियां कहीं थी ही नहीं। जिन 23 यूनिटों ने कच्चा माल खरीदा था उनमें 14 सेल्स टैक्स के साथ पंजीकृत भी नहीं थीं और गैर पंजीकृत कंपनियां फार्म सी का लाभ नहीं ले सकती थीं।
जांच एजेंसी आरोप तय नहीं कर पाई : मामले की सुनवाई करते हुए एंटी क्रप्शन जज श्रीनगर आरएन वातल ने कहा कि जांच एजेंसी आरोपितों पर आरोप तय नहीं कर पाई है। आरोपितों को संदेह का लाभ देते हुए बरी किया जा रहा है। सभी को बरी किया जाता है। अगर आरोपितों का कुछ भी जब्त किया है तो उसे मुक्त किया जाए। वहीं कोर्ट ने कहा कि इस मामले में जांच अधिकारी जांच सही तरीके से नहीं कर पाया।