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Jammu Kashmir: केंद्र शासित प्रदेश में जगी डोगरा विरासत के संरक्षण की उम्मीदें, बनाई जाएगी नीति

जीर्णोद्धार के लिए मिलने वाले बजट की शर्त यही थी कि 75 प्रतिशत पैसा केंद्र सरकार जबकि 25 प्रतिशत राज्य सरकार देगी। राज्य सरकार अपना योगदान देने में अक्सर विफल रही।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Tue, 19 Nov 2019 11:22 AM (IST)Updated: Tue, 19 Nov 2019 11:22 AM (IST)
Jammu Kashmir: केंद्र शासित प्रदेश में जगी डोगरा विरासत के संरक्षण की उम्मीदें, बनाई जाएगी नीति
Jammu Kashmir: केंद्र शासित प्रदेश में जगी डोगरा विरासत के संरक्षण की उम्मीदें, बनाई जाएगी नीति

जम्मू, अशोक शर्मा। जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद मध्यकालीन विशाल मुबारक मंडी से लेकर डुग्गर प्रदेश के कोने-कोने में बिखरी अमूल्य सांस्कृतिक विरासत को सहेजने के लिए नीति बन सकती है। लंबे समय से जम्मू-कश्मीर में विरासत के संरक्षण के लिए नीति बनाए जाने की मांग होती रही है। जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बन जाने के बाद मुबारक मंडी को भारतीय पुरातत्व विभाग के हवाले किया जा सकता है।

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डोगरा शौर्य, कला व संस्कृति को उकेरती विरासत सरकारी तंत्र की उपेक्षा के चलते अपना अस्तित्व खो रही है। मुबारक मंडी के जीर्णोद्धार का कार्य शुरू हुए 13 वर्ष हो गए हैं। अभी तक मात्र हाई कोर्ट कांप्लेक्स का जीर्णोद्धार ही हो सका है। गोल घर, चाढ़की महल, तोषाखाना आदि महलों में अभी तक जीर्णोद्धार का कार्य शुरू भी नहीं हो पाया है। अमर सिंह पैलेस के जीर्णोद्धार का कार्य अभी जारी है। इस जीर्णोद्धार कार्य के विलंब के पीछे जम्मू-कश्मीर की पूर्ववर्ती सरकारें जिम्मेदार रही हैं। जीर्णोद्धार के लिए मिलने वाले बजट की शर्त यही थी कि 75 प्रतिशत पैसा केंद्र सरकार, जबकि 25 प्रतिशत राज्य सरकार देगी। राज्य सरकार अपना योगदान देने में अक्सर विफल रही। इस कारण कई बार काम बंद हुआ। एएसआइ के पास जब तक पैसा जमा न हो, वह आगे काम नहीं करते।

डुग्गर विरासत की पहचान है मुबारक मंडी: डोगरा विरासत की पहचान मुबारक मंडी के महल बेहतरीन शिल्पकारी की मिसाल हैं। डुग्गर मंच के अध्यक्ष मोहन सिंह के अनुसार महलों का वास्तु अत्यलंकृत यूरोपीय, मुगल और राजस्थानी शैली से लिया गया है जो विभिन्न संस्कृतियों के अनूठे संगम को पेश करता है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि प्राचीनतम ढांचे का निर्माण वर्ष 1800 की शुरू में हुआ था। यह महल डोगरा राजवंश के शासकों का शाही निवास था। तवी नदी के तट पर इस महल से नदी का प्रभावशाली नजारा दिखता है। महल प्रांगण के चारों ओर यह परिसर कई निर्माण समूहों का एक सम्मिश्रण है। डोगरा शासकों के वारिसों ने इन इमारतों की संख्या में बढ़ोतरी की है। माना जाता है कि यह महल 1925 तक डोगरा शासकों का मुख्य केंद्र हुआ करता था। महल के गलियारों में शाही कार्यक्रम और समारोहों का आयोजन किया जाता था।

समय बीतने के साथ परिसर पूरी तरह शाही सचिवालय बन गया था। इसमें उच्च न्यायालय, लोकसेवा आयोग, फुड एंड सप्लाई, युवा सेवा एवं खेल विभाग सहित दूसरे कई विभाग शामिल थे। कार्यालय शिफ्ट करवा कर यहां जीर्णोद्धार कार्य शुरू हुए 13 वर्ष के करीब हो चुके हैं लेकिन अभी हाई कोर्ट काम्पलेक्स का कार्य ही पूरा हो सका है।

स्मारकों का ठीक से संरक्षण नहीं

जम्मू हेरिटेज सोसायटी के अध्यक्ष केके शकिर ने बताया कि शहर के चार मुख्य गेट महेशी गेट, डैनिस गेट, गुम्मट गेट, जोगी गेट थे। अब इनमें से मात्र गुम्मट गेट ही सुरक्षित है। इस गेट को आज तक ऐतिहासिक स्मारक घोषित नहीं किया गया है। इससे छेडख़ानी जारी है। राज्य सरकार ने श्रीनगर में 51, जम्मू में 29 और कारगिल में दो ऐतिहासिक स्मारक घोषित किए हुए हैं। हालत यह है कि जिन स्थलों को ऐतिहासिक स्मारक घोषित किया गया है, उनका भी तरीके से संरक्षण नहीं हो रहा। बहुत से स्थल ऐसे हैं, जिन्हें ऐतिहासिक स्मारक घोषित किया जा सकता है, लेकिन इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया जा रहा। निदेशक पुरातत्व, अभिलेखागार एवं डोगरा संग्रहालय मनीर-उल-इस्लाम ने कहा कि केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद अभी तय नहीं हो पाया है कि विरासत को लेकर क्या नीति रहेगी। हां दूसरे केंद्र शासित प्रदेशों में विरासत को लेकर काफी गंभीरता है। पहले जीर्णोद्धार को लेकर अधिकतर चीजें राज्य सरकार पर ही निर्भर करती थीं, लेकिन शिल्पकारी की मिसाल मुबारक मंडी के विरासत का संरक्षण गंभीरता से संभव है।

अपना बजट न होना परेशानी : सहायक निदेशक

पुरातत्व अभिलेखगार एवं संग्रहालय के सहायक निदेशक शेरिंग तोषी का कहना है कि कभी किसी विरासत के संरक्षण के लिए विशेष बजट नहीं रखा गया। विभाग अगर किसी इमारत का संरक्षण करना भी चाहता था तो उसके लिए पैसा ही उपलब्ध नहीं हो पाता है। जब तक विरासत के सरंक्षण के लिए अलग से बजट नहीं आएगा, संरक्षण संभव नहीं है। विभाग कई धरोहरों को राज्य संरक्षित घोषित करने में दिलचस्पी रखता है। लेकिन धरोहरों के रखरखाव के लिए पर्याप्त बजट नहीं मिल पाता। धरोहरों के संरक्षण के लिए काफी धन की आवश्यकता होती है। इसके लिए अलग से बजट होना चाहिए। अब केंद्र शासित प्रदेश होने के बाद उम्मीद है कि पुरातत्व विभाग को अधिक बजट मिलेगा।


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