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कैंसर को जीतने के जज्बे ने मरीजों को दिखाई राह

फोटो सहित कैंसर सरवाइवर दिवस पर कैंसर विजेताओं और डॉक्टरों के सहयोग बना समूह बन गया परिवार साथ मिलकर मनाते हैं त्योहार

By JagranEdited By: Published: Sun, 07 Jun 2020 10:08 AM (IST)Updated: Sun, 07 Jun 2020 10:08 AM (IST)
कैंसर को जीतने के जज्बे ने मरीजों को दिखाई राह
कैंसर को जीतने के जज्बे ने मरीजों को दिखाई राह

रोहित जंडियाल, जम्मू

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कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसका नाम सुनकर लोग हिम्मत हारने लगते हैं, लेकिन बहुत से मरीज ऐसे भी हैं जो कि इस बीमारी को मात देने में सफल रहते हैं। आधुनिक तकनीकों, जीने की ललक और परिजनों के सहयोग से ऐसे जीवट लोगों की जिंदगी में फिर से बहार आ गई है। ये अब दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बन गए हैं। वह अब अपनी जिंदगी की कहानियां दूसरे के साथ साझा करते हैं।

इन कैंसर विजेताओं ने कुछ डॉक्टरों के सहयोग से एक समूह भी बनाया है। यह समूह अब परिवार बना गया है, जहां पर वे मिलजुल कर त्योहार मनाते हैं और इलाज करा रहे अन्य मरीजों को इस लड़ाई से जीतने की हिम्मत देते हैं। इस समूह को कर्क विजयान समूह नाम दिया गया ह। इसे कैंसर विशेषज्ञ डॉ. दीपक अबरोल ने अन्य डॉक्टरों के सहयोग से बनाया है। इस समूह में शामिल होने के लिए कोई पंजीकरण की व्यवस्था तो नहीं है, लेकिन अगर कोई भी मरीज जो ठीक हो चुका है या फिर इलाज करा रहा है, वह जुड़ सकता है। इसमें कई महिला मरीज भी शामिल हैं। इनमें से कई मरीज ऐसे हैं जो कि दस वर्षो से बिल्कुल ठीक हैं और खुशहाल जिदगी जी रहे हैं। इन मरीजों का कहना है कि कैंसर से लड़ाई लड़ने के लिए अपनों का साथ होना बहुत जरूरी है। जब हम अन्य मरीजों को अपनी दास्तां सुनाते हैं तो उनमें भी इस बीमारी से लड़ने का जज्बा पैदा होता है।

डॉ. दीपक अबरोल का कहना है कि बहुत से मरीज इलाज बीच में ही छोड़कर चले जाते थे। उन्हें लगा कि अगर कोई कैंसर विजेता अपने बारे में अन्य मरीजों को जानकारी देगा तो उसमें भी हिम्मत बंधेगी। उसे लगेगा कि इस रोग से ठीक हुआ जा सकता है। बस इसमें अन्य डॉक्टरों ने भी सहयोग किया। आज स्थिति यह है कि हर त्योहार में यह मरीज एक साथ आते हैं। उनका एक अलग परिवार बन गया है। इसी समूह से जुड़े कैंसर विशेषज्ञ डॉ. राहुल गुप्ता का कहना है कि डॉक्टर का मरीज को किसी बीमारी के प्रति संदेश देना उतना प्रभावी नहीं होता है जितना कि एक बीमारी को मात देने वाले मरीज के कहने का होता है। इन मरीजों की अपील बहुत असर करती है।

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लड़ाई लड़ने में काम आई प्रेरणा

जम्मू की एक मरीज राधिक रानी का कहना है कि इस समूह में शामिल सदस्यों की सलाह बहुत काम आई। आज भी याद है कि जब साल 2009 में सर्दी में अचानक कमजोरी महसूस होना शुरू हुई। अपने पति को जब यह बात सुनाई। डॉक्टर ने अल्ट्रासाउंड और कुछ खून के टेस्ट करवाने को कहा। अल्ट्रासाउंड में स्पलीन अर्थात तिल्ली बढ़ी हुई थी। टीएलसी काउंट बढ़ा था। मेरे एक परिचित ने मुझसे किसी कैंसर विशेषज्ञ से बात करने को कहा। वहां टेस्ट करवाए तो ब्लड कैंसर की पुष्टि हुई। यह जानकर तो मैं पूरी तरह से टूट गई। मैंने सुना था कि ब्लड कैंसर से मरीज मर जाता है। मगर डॉक्टर ने आश्वासन दिया कि वह बिल्कुल ठीक हो जाएगी अगर उसके कुछ टेस्ट सही आए। इसके बाद जिदगी भर सिर्फ एक ही टेबलेट खानी पड़ेगी। टेस्ट ठीक आए और आज दस साल से सिर्फ एक ही टेबलेट खा रही हूं।

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हर साल छह से सात हजार नए केस

राज्य में कैंसर के हर साल छह से सात हजार मरीज आते हैं। इनमें जम्मू संभाग में ढाई से तीन हजार और कश्मीर में चार हजार से पांच हजार के करीब मरीज आते हैं। पहले मात्र बीस प्रतिशत मरीज ही बच पाते थे लेकिन अब लोगों में जागरूकता आई है। पहली और दूसरी स्टेज पर आने वाले मरीज भी अस्पतालों में इलाज के लिए पहुंच रहे हैं। डॉ. दीपक का कहना है कि अब कैंसर से ठीक होने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। आधुनिक सुविधाएं और जागरूकता इसमें अहम भूमिका निभा रही हैं।


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