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कश्मीर में हिंसक प्रदर्शनों में 60 प्रतिशत कमी, 10 प्रतिशत भी नहीं हुआ पैलेट स्टाॅक का इस्तेमाल

पैलेट जब भी दागें तो जमीन से दो से ढाई फुट की ऊंचाई पर ही दागे किसी भी सूरत में प्रदर्शनकारियों की टांगों से ऊपर इन्हें नहीं दागा जाए।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Sat, 11 May 2019 01:06 PM (IST)Updated: Sat, 11 May 2019 01:06 PM (IST)
कश्मीर में हिंसक प्रदर्शनों में 60 प्रतिशत कमी, 10 प्रतिशत भी नहीं हुआ पैलेट स्टाॅक का इस्तेमाल
कश्मीर में हिंसक प्रदर्शनों में 60 प्रतिशत कमी, 10 प्रतिशत भी नहीं हुआ पैलेट स्टाॅक का इस्तेमाल

राज्य ब्यूरो, श्रीनगर: पिछले साल के मुकाबले इस साल वादी में हिंसक प्रदर्शनों में 60 प्रतिशत की कमी आई है, जिसकी वजह से सुरक्षाबलों की तरफ से पैलेट गन का इस्तेमाल भी कम किया गया है। इस साल अब तक उपलब्ध पैलेट स्टॉक का 10 प्रतिशत भी इस्तेमाल नहीं किया जा सका है। हालांकि इसकी वजह मानवाधिकारों के कथित झंडाबरदारों और विभिन्न राजनीतिक दलों की तरफ से पैलेट गन के मुद्दे पर मचाया जाने वाला सियासी शोर कदापि नहीं है। इसके बजाय पैलेट गन के इस्तेमाल में कमी के पीछे कानून व्यवस्था की स्थिति से निपटने के लिए सुरक्षाबलों द्वारा अपनाए जाने वाले स्टैंडर्ड आपरेशनल प्रोसीजर (एसओपी) में बदलाव के अलावा हिंसक प्रदर्शनों में कमी जिम्मेदार हैं।

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कश्मीर घाटी में वर्ष 2010 में हुए हिंसक प्रदर्शनों के दौरान सुरक्षाबलों की तथाकथित फायरिंग में 116 लोगों की मौत के बाद राज्य सरकार ने कम घातक हथियारों पैलेट गन, मिर्ची बम, रबर बुलेट इत्यादि के विकल्प को अपनाया था। लेकिन वर्ष 2016 में वादी में हिंसक प्रदर्शनकारियों पर काबू पाने के दौरान सुरक्षाबलों द्वारा पैलेट दागे जाने से कई लोगों की मौत हुई, कइयों की आंखों में पैलेट लगे और उनकी आंखों की रोशनी चली गई। अलगाववादियों, मानवाधिकारों के कथित झंडाबरदारों ने इसे एक बड़ा मुद्दा बनाया। कश्मीर के विभिन्न राजनीतिक दलों ने भी पैलेट गन के इस्तेमाल पर रोक लगाने की मांग शुरू कर दी।

हिंसक प्रदर्शनकारियों को खदेड़ने के लिए कम हुआ पैलेट का इस्तेमाल

कश्मीर घाटी में आतंकरोधी अभियानों से लेकर हिंसक प्रदर्शनकारियों से निपटने में अग्रणी भूमिका निभा रही सीआरपीएफ के आईजी रविदीप सिंह साही के मुताबिक, पैलेट गन के इस्तेमाल को लेकर सबसे ज्यादा निशाना हमारे जवानों पर साधा गया है, लेकिन इस साल हमने बहुत ही कम जगहों पर हिंसक प्रदर्शनकारियों को खदेड़ने के लिए पैलेट का इस्तेमाल किया है।

वर्ष 2017 के अंतिम दिनों में पैलेट गन का इस्तेमाल कम हो गया था

वर्ष 2016 और वर्ष 2017 के हालात से अगर तुलना करें तो हम कह सकते हैं कि इस साल अभी तक पैलेट नहीं चलाए गए हैं। वर्ष 2017 के अंतिम दिनों में पैलेट गन के इस्तेमाल में कमी आना शुरू हुई थी। राज्य पुलिस में एसएसपी रैंक के एक अधिकारी और सीआरपीएफ के एक डीआईजी रैंक के अधिकारी ने अपना नाम न छापे जाने की शर्त पर बताया कि वर्ष 2016 में पैलेट का जो भी स्टॉक था, वह साल खत्म होने से पहले खत्म हुआ था। वर्ष 2017 में कानून व्यवस्था की स्थिति से निपटने के लिए अपनाए जाने वाले एसओपी में सुधार के चलते, पैलेट भी कम इस्तेमाल हुए और कुल भंडार का सिर्फ 70 प्रतिशत ही इस्तेमाल हुआ और बीते साल मात्र 55 प्रतिशत ही पैलेट इस्तेमाल करने पड़े।

अंतिम विकल्प होने पर ही पैलेट का इस्तेमाल कर रहे जवान

आईजी सीआरपीएफ ने बताया कि कानून व्यवस्था की स्थिति से निपटने के लिए वे अपने अधिकारियों व जवानों की ट्रेनिंग में लगातार बदलते परिवेश के मुताबिक सुधार ला रहे हैं। उन्हें सिखाया जाता है कि वह पैलेट का इस्तेमाल अत्याधिक आवश्यकता होने पर सिर्फ अंतिम विकल्प की स्थिति में ही करें, अन्यथा नहीं। इसके अलावा उन्हें बताया गया है कि वह पैलेट जब भी दागें तो जमीन से दो से ढाई फुट की ऊंचाई पर ही दागे, किसी भी सूरत में प्रदर्शनकारियों की टांगों से ऊपर इन्हें नहीं दागा जाए।

वर्ष 2018 में पिछले सालों की तुलना में हिंसक प्रदर्शन कम हुए

आईजीपी कश्मीर एसपी पानि के मुताबिक, वर्ष 2018 की गर्मियों के बाद से वादी में प्रदर्शनकारियों पर पैलेट के इस्तेमाल में बहुत कमी आई है। किसी भी जगह तैनात सुरक्षाकर्मी अपने स्तर पर ही यथासंभव इसके इस्तेमाल से बचने को प्राथमिकता देते हैं। आइजी सीआरपीएफ ने बताया कि पैलेट गन के इस्तेमाल में कमी का कारण घाटी में हिंसक प्रदर्शनों की संख्या और उनकी तीव्रता में कमी के साथ भी जोड़ सकते हैं। वर्ष 2018 में वर्ष 2016 और वर्ष 2017 की तुलना में हिंसक प्रदर्शन कम हुए हैं। इस साल भी मई के पहले सप्ताह तक वादी में हिंसक प्रदर्शनों की संख्या नाममात्र ही रही है।

अभी तक 10 प्रतिशत भी खर्च नहीं हुए पैलेट

इस साल जो पैलेट सुरक्षाबलों को उपलब्ध कराए गए हैं, उनका 10 प्रतिशत भी अभी तक खर्च नहीं हुआ है, जो संतोषजनक है। अगर हालात ऐसे ही रहे तो पैलेट का इस्तेमाल शायद ही कहीं करना पड़े। इस साल पैलेट गन के इस्तेमाल से कश्मीर में अभी तक सिर्फ हंदवाड़ा में ही सातवीं कक्षा के एक छात्र उवैस मुश्ताक की मौत हुई है और अन्यत्र तीन दर्जन लोग पैलेट लगने से जख्मी हुए हैं। बीते साल पैलेट से जख्मी होने वालों की तादाद 725 थी, जबकि वर्ष 2016 में 2000 से ज्यादा लोगों को पैलेट से चोट पहुंची थी, जिनमें से करीब 110 की आंखों में पैलेट लगे थे।

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