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World AIDS Day 2021: गुमानामी में जिंदगी जीने का मजबूत हो जाते हैं एचआइवी संक्रमित, करीब 15% छोड़ चुके हैं इलाज

World AIDS Day 2021 एड्स कंट्रोल सोसायटी ने हालांकि इन मरीजों को इलाज के लिए प्रेरित करने को इन सेंटरों में काउंलर भी तैनात किए हैं लेकिन बावजूद इसके सामाजिक व आर्थिक कारणों से कई मरीज इलाज नहीं करवाते हैं।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Wed, 01 Dec 2021 08:59 AM (IST)Updated: Wed, 01 Dec 2021 08:59 AM (IST)
World AIDS Day 2021: गुमानामी में जिंदगी जीने का मजबूत हो जाते हैं एचआइवी संक्रमित, करीब 15% छोड़ चुके हैं इलाज
इलाज के लिए आई 27 वर्ष की एक महिला नेे बताया कि उनके पति ट्रक चालक हैं।

जम्मू, रोहित जंडियाल : जम्मू-कश्मीर में एचआइवी संक्रमित लोगों की संख्या हर साल बढ़ रही है। लेकिन बहुत से मरीज ऐसे हैं जो कि अपना पूरा इलाज नहीं करवाते हैं। बीच में ही इलाज छोड़ कर चले जाते हैं। हालांकि ऐसे मरीजों का पता लगाया जाता है लेकिन कइयों के गलत पते होने के कारण पता नहीं लगाया जाता। उनकी जिंदगी गुमनामी में ही बीत जाती है।

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जेएंडके एड्स कंट्रोल सोसायटी के आंकड़ों के अनुसार अभी तक जम्मू-कश्मीर में कुल 5534 लोग एचआइवी से संक्रमित हुए हैं। इनमें से अधिकांश का राजकीय मेडिकल कालेज जम्मू के एंटी रेटरो वायरल सेंटर, शेर-ए-कश्मीर इंस्टीटयूट आफ मेडिकल सांइसेस के एंटी रेटरो वायरल सेंटर और जीएमसी कठुआ के एंटी रेटरो वायरल सेंटर में इलाज चल रहा है। लेकिन कई ऐसे मरीज हैं जो कि अपना नाम का पंजीकरण करवाने के बाद कुछ देर के लिए इलाज तो करवाते हैं लेकिन बाद में सामाजिक व आर्थिक कारणों से इलाज बीच में ही छोड़ देते हें।

आंकड़ों के अनुसार जीएमसी जम्मू के एंटी रेटरो वायरल सेंटर में कुल 4683 एचआइवी संक्रमित मरीजों का पंजीकरण हुआ है। इनमें 2751 पुरुष और 1645 महिलाएं हैं। 773 पुरुष मरीजों और 297 महिला मरीजों का इलाज के दौरान निधन हो गया। 1261 पुरुष और 984 महिला मरीज अभी भी अपना इलाज करवा रही हैं। लेकिन इस सेंटर में 665 मरीज ऐसे हैं जो कि इलाज बीच में ही छोड़ चुके हैं। इनमें 436 महिला मरीज शामिल हैं। इसी तरह शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल सांइसेस के एंटी रेटरो वायरल सेंटर में 627 में से 22 और कठुआ सेंटर में 224 में से चार मरीज इलाज बीच में ही छोड़ गए।

एड्स कंट्रोल सोसायटी ने हालांकि इन मरीजों को इलाज के लिए प्रेरित करने को इन सेंटरों में काउंलर भी तैनात किए हैं लेकिन बावजूद इसके सामाजिक व आर्थिक कारणों से कई मरीज इलाज नहीं करवाते हैं। इन मरीजों के लिए काम कर रहे विहान प्रोजेक्ट के सदस्य उनका पता लगाते हैं। लेकिन कइयों ने पहले से अपने घरों के गलत पते बताए हैं या फिर उन जगहों पर अब न रहकर गुमनामी की जिंदगी बिता रहे हैं। एड्स कंट्रोल सोसायटी के पदाधिकारियों का कहना है कि अभी चलाए जा रहे जागरूकता अभियानों से इलाज बीच में छोड़ने वालों की संख्या बहुत कम है। पहले लोग छोड़ जाते हैं।

लोगों में जागरूकता की कमी : एचआइवी संक्रमण को लेकर लोगों में जागरूकता की कमी है। समाज में अभी भी इन मरीजों को लेकर लोगों की सोच अच्छी नहीं है। संक्रमित होने का कारण चाहे कोई भी क्यों न हो। लोगों के तिरस्कार का सामलना उन्हें करना पड़ता है। एआरटी सेंटर जम्मू में आए कुछ मरीजों ने भी यह माना कि एचआइवी संक्रमण के साथ जिंदगी जीना आसान नहीं होता। इलाज के लिए आई 27 वर्ष की एक महिला नेे बताया कि उनके पति ट्रक चालक हैं। करीब तीन साल पहले उन्हें एचआइवी संक्रमित होने का पता चला था। इसके बाद उसने भी अपनी जांच करवाई तो वे भी संक्रमित आई।

मरीजों को समाज के सकारात्मक रवैये की जरूरत: मनोविज्ञान विभाग में प्रोफेसर चंद्रशेखर का कहना है कि इन मरीजों को समाज के सकारात्मक रवैये की जरूरत है। लोगों को यह समझना चाहिए कि किसी को छुने से एड्स नहीं होता है। अगर उनके साथ अच्छा व्यवहार होगा तो उनमें जीने की ललक भी पैदा होती है।नकारात्मक रवैये के कारण ही यह मरीज समाज से छिप कर रहने का प्रयास करते हैं।

महिलाओं के साथ नहीं होता उचित व्यवहार : बहुत सी एचआइवी संक्रमित महिलाएं हैं जिन्हें शादी के बाद ससुराल वालों के तिरस्कार को सहना पड़ा। एड्स के कारण जब उनके पति की मौत हो गई तो ससुराल वालों ने उन्हें घर से निकाल दिया। जग वह मायके में गई तो उन्होंने भी इन महिलाओं को स्वीकार नहीं किया। ऐसी महिलाओं के लिए अपना भरण-पोषण करना आसान नहीं होता। इन महिलाओं को रोजगार भी नहीं दिया जाता। हालांकि सरकार ने कुछ गैर सरकारी संस्थाओं को प्रोजेक्ट दिए हैं जिनमें इन मरीजों को रोजगार देना अनिवार्य है। मगर इनमें इक्का-दुक्का ही काम कर रहे हैं।


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