Jammu Kashmir All Party Meet: 24/6 की वार्ता सिर्फ फोटो सैशन नहीं है, यह मायनेखेज है
Jammu Kashmir All Party Meet यह पांच अगस्त 2019 के जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन अधिनियम काे लेकर कहा जा सकता है। उनकी यही शैली और यही रवैया 24 जून की बैठक को लेकर सामने आया है क्योंकि उन्होंने जम्मू-कश्मीर के मुख्यधारा के राजनीतिक दलाें को दावत दी है।
श्रीनगर, नवीन नवाज: 24/6 का सभी बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। करें भी क्यों नहीं, लगभग 26 साल बाद केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर में हालात को सामान्य बनाने और राजनीतिक प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए जम्मू-कश्मीर में मुख्यधारा के राजनीतिक दलाें के साथ बातचीत करने जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निवास पर होने वाली यह बैठक इसलिए भी खास है कि यह अनुच्छेद 370 को निरस्त करने, जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठित करने के बाद केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में बदले हालात में हो रही है। जम्मू-कश्मीर के लिए पूर्ण राज्य का दर्जा, विधानसभा चुनाव, परिसीमन, जम्मू-कश्मीर का एक और विभाजन, कश्मीरी पंडितों के पनुन कश्मीर, जितने मुंह उतने ही दावे हो रहे हैं।
बातचीत का कोई एजेंडा स्पष्ट न होने के कारण इस वार्ता से फिलहाल जम्मू-कश्मीर में पैदा राजनीतिक गतिरोध का त्वरित हल की उम्मीद रखना यथार्थ नहीं होगा। फिर भी यह कुछ बड़ा और अच्छा होने की उम्मीद जताती है, क्योंकि यह बैठक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चाैंकाने वाली कार्यशैली का एक हिस्सा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा चौंकाते हुए नजर आए हैं, चाहे वह नाेटबंदी का मामला हो या फिर अचानक ही पाकिस्तान में जहाज से उतरकर पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री मियां नवाज शरीफ से मुलाकात हो। वह कब कौन सा कदम उठाएंगे, इसका स्टीक पूर्वानुमान कठिन रहता है।
यह पांच अगस्त 2019 के जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन अधिनियम काे लेकर कहा जा सकता है। उनकी यही शैली और यही रवैया 24 जून की बैठक को लेकर सामने आया है, क्योंकि उन्होंने जम्मू-कश्मीर के मुख्यधारा के राजनीतिक दलाें को दावत दी है। हालांकि इससे पहले 1996 के बाद से अगर 2016 के अंत तक देखा जाए तो केंद्र सरकार ने हमेशा ही कश्मीर में हालात को सामान्य बनाने के लिए अलगाववादी खेमे के साथ ही संपर्क साधने का प्रयास किया है। कश्मीर कमेटी हो या सर्वदलीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल, सभी का प्रयास अलगाववादियों तक पहुंच बनाने के लिए रहा है।
प्रधानमंत्री ने बातचीत के लिए नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और पीपुल्स कांफ्रेंस के नेताओं के अलावा जम्मू कश्मीर अपनी पार्टी, माकपा, कांग्रेस और प्रदेश भाजपा के नेताओं को बुलाया है। पैंथर्स पार्टी के प्रो भीम सिंह भी हैं। कई लोग यह भी कहेंगे कि बीते दो साल के दौरान केंद्र सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर में किए गए राजनीतिक प्रयोग विफल रहे हैं। नेकां और पीडीपी का कोई दूसरा मजबूत राजनीतिक विकल्प तैयार होता नजर नहीं आ रहा है, जो तैयार हो रहे थे, वे सिर्फ प्रेस वार्तााओं तक सीमित रहे हैं। इसलिए केंद्र सरकार अब एक बार फिर नेकां-पीडीपी के साथ वार्ता कर रहा है। यह किसी हद तक सच हो सकता है, लेकिन यह पूरा सच नहीं है।
केंद्र सरकार ने यूं ही वार्ता का एलान नहीं किया है, इसके लिए उसने पूरा ग्राउंड वर्क किया है, यह तय है अन्यथा वह नेकां, पीडीपी, पीपुल्स कांफ्रेंस को दावत न देती। वर्ष 2014 में बेशक भाजपा ने जम्मू-कश्मीर में पीडीपी संग सरकार बनाई, लेकिन केंद्र सरकार विशेषकर भाजपा कश्मीर मुद्दे पर नेकां, पीडीपी व इन जैसे अन्य दलों को समस्या का समाधान नहीं समस्या का कारण मानती आयी हैं।
यही कारण है कि बीते दो साल के दौरान केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर की सियासत में इन दलों को पूरी तरह हाशिए पर धकेलते हुए आम लोगों के सामने पूरी तरह बेनकाब करने का प्रयास किया। मजबूरी में इन दलों के पास अनुच्छेद 370, पांच अगस्त 2019 से पूर्व की संवैधानिक स्थिति की बहाली के एजेंडे पर डटे रहने के सिवाय कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा। यह अब इनकेे गले की फांस बन चुका है। इसकी पुष्टि नेकां और पीडीपी में प्रस्तावित वार्ता को लेकर बनी अनिर्णय की स्थिति भी स्पष्ट करती है, जिससे बचने के लिए उन्होंने अपना फैसला पीएजीडी की बैैठक पर टाल दिया। यह पीएजीडी कोई और नहीं इन दलों का साझा मंच पीपुल्स एलांयस फार गुपकार डिक्लेरेशन है, जिसकी आज दोपहर को बैठक होने जा रही है।
नेकां, पीडीपी और पीपुल्स कांफ्रेंस अब वार्ता के जाल में पूरी तरह फंस चुकी हैं। केंद्र द्वारा एजेंडे को सार्वजनिक किए बिना वह कौन सी रणनीति बनाएंगी, उनके लिए यह मुश्किल है। वह यह अच्छी तरह जानते हैं कि अनुच्छेद 370 और जम्मू कश्मीर में पांच अगस्त 2019 से पहले की संवैधानिक स्थिति की बहाली की मांग कर वह सिर्फ कुछ हद तक जम्मू कश्मीर के एक वर्ग विशेष में खुद को पाक दामन बता सकते हैं, लेकिन कुछ हासिल नहीं कर पाएंगे। अगर बैठक में शामिल नहीं होते तो जम्मू-कश्मीर के लोगों के बीच रही सही साख भी समाप्त हो जाएगी।
बैठक में उनकी अनुपस्थिति उन्हें कश्मीर में अमन व सामान्य स्थिति की बहाली की दिशा में रुकावट साबित करेगी, जिससे वे बचना चाहेंगे। इसलिए वह मिलकर आगे बढ़ेंगे या फिर अपने पुराने नारों को पूरी तरह दरकिनार करते हुए सच को गले लगाते हुए एकला चलो की नीति पर केंद्र के साथ बातचीत की प्रक्रिया में शामिल होंगे। एेसे हालात में वह केंद्र से कश्मीर में विश्वास बहाली के कुछ नए कदम उठाने, राजनीतिक कैदियों की रिहाई की मांग कर सकते हैं। विधानसभा के जल्द गठन और स्टेटहुड की मांग कर सकते हैं, ज्यादा कुछ नहीं और इस पर सभी सहमत होगे। असहमति 370 की पुनर्बहाली पर ही होगी।
जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में हाेने जा रही इस वार्ता के एजेंडे और परिणाम को लेकर कयास लगाने के बजाय बेहतर यही होगा कि इसकी सफलता की कामना की जाए, क्योंकि केंद्र ने अकारण ही इसका एलान नहीं किया है। यह बैठक सिर्फ केंद्र की छवि को चमकाने के लिए नहीं है बल्कि जम्मू-कश्मीर समस्या के स्थायी समाधान, शांति व स्थिरता के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर में एक मजबूत लोकतांत्रिक, पारदर्शी, निष्पक्ष व्यवस्था का दरवाजा है।