Jammu Culture: लोक गीत शैली रितड़ियां के सरंक्षण को आगे आया नटरंग
Jammu Culture कलाकार चंद्र शेखर ने स्वागत भाषण में रसल ¨सह एवं साथियों को परंपरा के सरंक्षण का सिपाही बताया। उन्होंने कहा कि लोक परंपराएं हमारी जड़ें हैं और एक समाज इन पारंपरिक जड़ों के बिना प्रगति नहीं कर सकता है।
जागरण संवाददाता, जम्मू : लुप्त होती लोकगीत पारंपरिक शैली रितड़ियां के संरक्षण के उद्देश्य से नटरंग स्डूडियो में मंगलवार को रितडि़यां कार्यक्रम का आयोजन किया। उपस्थित कला प्रेमियों के लिए अपनी तरह का यह पहला कार्यक्रम था। दर्शकों ने इसका पूरा लुत्फ उठाया।
कार्यक्रम में रसाल चंद एवं साथियों की इस प्रस्तुति को पसंद किया गया। इस मौके पर मुख्य अतिथि एसएसपी ट्रैफिक शिव कुमार शर्मा ने प्रतिभागियों को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया और डोगरों की इस परंपरा को दिखाने में नटरंग के प्रयास की सराहना की। इस अनूठी सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का परिचय देते हुए नटरंग के निर्देशक बलवंत ठाकुर ने दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग से दर्शकों को संबोधित करते हुए कहा कि नटरंग ने डुग्गर की लुप्त होती सांस्कृतिक परंपराओं को संरक्षित करने और उसको बढ़ावा देने के उद्देश्य से इस कार्यक्रम का आयोजन किया है।
उन्होंने कहा कि इस गायन शैली की परंपरा की जडे़ प्राचीन काल से हैं। रितड़ियां प्रचीन कथा गायन की परंपरा है। यह कथा शैली उस समय से है, जब हमारे पास ज्ञान को आगे बढ़ाने के स्रोत कम थे। हमारी संस्कृति के ये संरक्षक ऐसी कलात्मक परंपराओं के माध्यम से सदियों पुरानी ज्ञान को पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाते रहे। इस शैली के माध्यम से लोगों को ऋतुदान, कथा गायकों ने दिनों और महीनों के महत्व के बारे में लोगों को शिक्षित किया। वास्तव में वे युवा पीढ़ी को दिनों और महीनों के नामों को याद कराते थे।
दिलचस्प रूप से हर दिन और महीने समुदाय के जीवन में एक अलग महत्व रखते हैं और प्रत्येक दिन से संबंधित अनुष्ठानों के बारे में जनता को जागरूक किया जाता है। इंटरनेट के जमाने में हर कोई सभी जानकारियां जेब में रखने के दावे करता है। पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अतीत की चीजों का मूल्य और सम्मान करना हमारी बड़ी जिम्मेदारी है। बलवंत ठाकुर ने सभी से हमारी समृद्ध विरासत और संस्कृति के संरक्षण में सहयोग देने की अपील की।
लोक परंपराएं हमारी जड़ें हैं, इसके बिना प्रगति संभव नहीं : कलाकार चंद्र शेखर ने स्वागत भाषण में रसल ¨सह एवं साथियों को परंपरा के सरंक्षण का सिपाही बताया। उन्होंने कहा कि लोक परंपराएं हमारी जड़ें हैं और एक समाज इन पारंपरिक जड़ों के बिना प्रगति नहीं कर सकता है। रामनगर के उनके पिता और दादा रसल चंद इन कथा परंपराओं को गाते थे। उन्होंने इन पारंपरिक गायन परंपरा को मंच प्रदान करने के लिए नटरंग को धन्यवाद दिया। इस परंपरा को लोकप्रिय बनाने के लिए प्रदेश के अन्य हिस्सों में भी इस तरह की गतिविधियों का आयोजन कराने का वादा किया। कार्यक्रम का संयोजन मोहम्मद यशसीन ने किया।