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World Radio Day: हजारों दिलों की धड़कन है रेडियो, तभी तो PM मोदी ने "मन की बात" के लिए इसे चुना

World Radio Day लोगों के खत गांव-गांव जा कर कार्यक्रम करना। जिस गांव में भी जाते थे। लोगों में एक खास उत्साह होता था कि रेडियो से लोग उनके गांव आए हैं। हर पात्र के बारे में लोग जानना चाहते थे।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Fri, 12 Feb 2021 03:28 PM (IST)Updated: Fri, 12 Feb 2021 03:31 PM (IST)
World Radio Day: हजारों दिलों की धड़कन है रेडियो, तभी तो PM मोदी ने "मन की बात" के लिए इसे चुना
रेडियो का श्रोता रेडियो से जुड़ी वर्षो पुरानी यादें साझा करते गौरवान्वित महसूस करता है।

जम्मू, अशोक शर्मा: शताब्दी पुराना सामाजिक संपर्क का महत्वपूर्ण स्रोत रेडियो आज भी हजारों दिलों की धड़कन है।सैकड़ो मनोरंजन के साधनों के बीच रेडियो आज भी अपनी अलग विश्वसनियता के साथ श्रोताओं के दिलों पर राज कर रहा है।

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रेडियो ने मनोरंजन के साथ-साथ आपदा राहत और आपातकालीन प्रतिक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कोरोना काल में भी रेडियो की भूमिका सराहनीय रही है। रेडियो की लोकप्रियता, विश्वसनियता और रीच को देखते हुए ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कहने के लिए रेडियो को चुना और पिछले करीब साढे़ छह वर्षो से लगभग महीने मन की बात के माध्यम से करोड़ों श्रोताओं तक पहुंच रहे हैं। रेडियो एक ऐसा साथ हैए जिसके साथ किसी न किसी की कोई न कोई याद जरूर जुड़ी हुई है।

यह रेडियो ही है जिसने हजारों की संख्या में कलाकार तैयार किए। डोगरा कला संस्कृति एवं साहित्य के संरक्षण एवं प्रचार प्रसार के साथ-साथ क्षेत्रीय भाषाओं को भी उनकी पहचान बनाए रखने में विशेष सहयोग दिया।बेशक रेडियो जम्मू की स्थापना पाकिस्तान द्वारा किए गए कबायली हमले के दौरान पाकिस्तान द्वारा जारी भारत विरोधी दुष्प्रचार का जवाब देने के लिए की गई थी लेकिन रेडियो के कलाकारों ने अपनी सुरीली आवाज और प्रतिभा से दुश्मन देश के लोगों का भी ऐसा मन जीता की वर्षो लोग रेडियो-कश्मीर जम्मू को सुनना ही पसंद करते थे।

रेडियो के पात्रों को तो पाकिस्तान से खत आते ही रहे। अपने पसंदीदा कार्यक्रमों को सुनाने के लिए भी फरमाइशें आती रही। जम्मू का शायद ही कोई हो जो अपने आप को रेडियो से जुड़ा हुआ महसूस न करता हो। कुछ लोग बेशक आज रेडियो की प्रासंगिकता पर प्रश्न चिन्ह उठाते हों लेकिन रेडियो का श्रोता रेडियो से जुड़ी वर्षो पुरानी यादें साझा करते गौरवान्वित महसूस करता है।

रेडियो से जुड़ना गौरव की बात: जम्मू रू गीतकार, लेखक, समीक्षक एवं रेडियो के सेवानिवृत्त अधिकारी जेएस परदेसी ने वर्ष 1967 में रेडियो ज्वाइन किया। इस दौरान शायद ही रेडियो का कोई लोकप्रिय कार्यक्रम रहा हो जिसमें उन्होंने अपना योगदान न दिया हो। दस साल सेना की नौकरी करने के बाद उन्होंने रेडियो में नौकरी की। उनके अनुसार उनके जमाने में रेडियो में भी सेना से कम अनुशासन से काम करना संभव नहीं था।अगर अच्छा काम करने पर हजारों लोगाें की वाहवाही मिलती थी तो गलती के लिए फटकार लगाने वाले श्रोताओं की भी कोई कमी नहीं थी। उनका देहाती कार्यक्रम में नंबरदार का किरदार इस कदर स्थापित हो गया कि किसान लोग उन्हें सच का नंबरदार ही समझते थे।परदेसी बताते हैं कि लोकप्रिय कार्यक्रम दरीचे उन्होंने करीब दस वर्ष तक लिखा। इस कार्यक्रम के माध्यम से प्रशासन की कमियों पर व्यंग्य किया जाता था।इस कार्यक्रम में वह अमर सिंह और कृपा राम की भूमिका निभाते थे।रेडियो में उनका यह डबल रोल काफी पंसद किया जाता रहा।परदेसी कहते हैं कि वह खुशकिस्मत हैं कि उन्हें यश शर्माए महमूद अहमद, बोधराज शर्मा, बलदेव चंद, मोहन लाल, कृष्ण दत्त जैसे कलाकारों के साथ काम करने का मौका मिला। आज भी उनकी शख्सियत लाखों श्रोताओं के दिलों पर राज करती हैं। रेडियो में रहते हुए हर दिन कुछ नया करने का मन होता था। जिसके चलते कई फीचर लिखे। कई कार्यक्रमों का संचालन किया। श्रोताओं के बीच जाकर जब कार्यक्रम रिकार्ड किए जाते थे। लोग दिल से रेडियो कलाकारों से मिलना पसंद करते थे।

रेडियो प्रसारण से कोई समझौता नहीं: सेवानिवृत्त डिप्टी डायरेक्टर जनरल आकाशवाणी पदमश्री डा. जितेंद्र ऊधमपुरी, जिनकी डोगरी, हिन्दी, उर्दू, पंजाबी में 40 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं, का कहना है कि जीवन में रेडियो कार्यक्रमों की गुणवत्ता से कभी समझौता नहीं किया। रेडियो एनाउंसरों के कई आडिशन करवाए। कभी भी उच्चारण को लेकर समझौता नहीं किया। एनाउंसर रेडियो की रीढ़ की हड्डी होते हैं। अगर एनाउंसर कमजोर होगा तो कार्यक्रम की रोचकता भी प्रभावित होती है। वह बताते हैं कि वह एजुकेशन ब्राडकास्टिंग हेड भी रहे। इस दौरान करीब 250 फीचर लिखे एवं प्रस्तुत किए। वर्ष 1976 में रेडियो ज्वाइन किया था। तब से आज तक शायद ही कोई दिन रहा होगा जब रेडियो न सुना हो।नौकरी के दौरान तो कम से कम ऐसा कभी नहीं हुआ। रेडियो में उनके टाइम में कमजोर प्रसारण के लिए कोई जगह नहीं होती थी। रेडियो में काम करने वाले हर अधिकारी को श्रोताओं के सामने हर दिन अपनी छवि बनाए रखने की चुनौती तो होती ही थी सुबह की मीटिंग में अपने साथियों का सामना करने में भी डर लगता था।रेडियो का हर प्रोडयूसर बेहतर से बेहतर कार्यक्रम श्रोताओं तक पहुंचाना चाहता है।

गुड्डी किरदार से मिली खास पहचान: आकाशवाणी जम्मू से सेवानिवृत्त चीफ एनाउंसर रीटा युसूफ रीटा युसूफ ने कहा कि रेडियो से उन्हें विशेष पहचान के साथ-साथ देश के लाखों श्रोताओं का प्यार मिला। पड़ोसी देश पाकिस्तान पर रेडियो से प्रसारित होने वाले पंजाबी कार्यक्रम से जोरदार कटाक्ष किए। प्रेम और भाई चारे का संदेश दिया। इस कार्यक्रम में मुझे गुड्डी का चरित्र निभाते हुए खास लोकप्रियता मिली। हंसते हुए कहती हैं कि इस दौरान उधेड़ उम्र में भी रिश्ते आते रहे। श्रोता गुड्डी को युवती ही समझते रहे। आज भी श्रोताओं को बताना पड़ता है कि मैं परदादी हूं। रेडियो से प्रसारित नकारा कार्यक्रम से लेकर कई कार्यक्रमों में भाग लेने का मौका मिला लेकिन पंजाबी कार्यक्रम की लोकप्रियता आज भी गौरवांवित करती है। रेडियो में हर दिन सीखने को मिला। उस समय के सीनियर अपने जूनियर को सिखाने में विश्वास करते थे। शायद इसी कारण वर्षो रेडियो की लोकप्रियता बनी रही।हर दिन कई खत्त आते थे। इन पत्रों में हमारी खूब प्रशंसा तो होती थी। अगर कोई प्रसारण कमजोर गया होता, तो खिंचाई करने वाले भी कोई कसर नहीं छोड़ते थे। खुशी होती है कि हम लोगों ने रेडियो का स्वर्णिम युग देखा है। रेडियो से जुडे हर व्यक्ति की कमिटमेंट होती थी। हर कर्मचारी की चाहत होती थी कि उसका कार्यक्रम टॉप पर हो।अच्छी प्रतिस्पर्धा का दौर देखा है।लोकप्रय कार्यक्रमों का लोगों को बेसब्री से इंतजार हुआ करता था। जो श्रोता अपना पसंददीदा कार्यक्रम नहीं सुन पाता था उसके फिर से प्रसारण की मांगे होती रहती थी। आज भी लोग हमारी कई प्रस्तुतियों का रेफ्रेंस देते हैं।अच्छा लगता है। आज रेडियो की जगह लेने वाले कई साधन आ गए हैं लेकिन जो विश्वसनियता रेडियो की है। किसी और की नहीं।

रेडियो के हर कार्यक्रम का अपना श्रोता: रेडियो से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी रवि मगोत्रा ने कहा कि रेडियो के हर कार्यक्रम का अपना श्रोता है। रेडियो आज भी एक ऐसा माध्यम है, जो हर वर्ग को ध्यान में रखकर प्रसारण करता है। हां आज खतों का स्थान ई-मेल और मोबाइल ने ले लिया है लेकिन श्रोताओं की कमी नहीं है। वह वर्ष 2012 से 2014 तक कार्यक्रम हेड भी रहे। जिस तरह के कार्यक्रम सुनने की श्रोताओं की मांग आती रहती है। उसी तरह के कार्यक्रम प्रसारित होते रहे हैं। रेडियो में बदलाव जरूर हुए हैं। रेडियो की चुनौतियां तो बड़ी हैं लेकिन लोकप्रियता बरकरार है। आज भी है रेडियो से जुड़े हुए हैं। रेडियो कभी गुणवत्ता से समझौता नहीं करता।उनका कार्यक्रम आपका खत और फरमाइश काफी लोकप्रिय रहा। कार्यक्रम संजीवनी भी उन्हीं के समय में शुरू किया गया था। इस कार्यक्रम से कई डाक्टरों के सुझाव दुनियां तक पहुंचाए जाते हैं। बच्चों के कार्यक्रम का संचालन करने का भी अपना खास मजा होता था। रेडियो को आजकल के सोशल मीडिया से नहीं जोड़ा जा सकता। इसका अपना एक मयार है। सरकारी माध्यम होने के नाते भी कुछ जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं। कार्यक्रम का प्रसारण हर वर्ग को ध्यान में रखकर किया जाता है। प्राइवेट चैनलों में तो पूरा दिन फिल्मी गीत सुना कर भी लोग लोकप्रियता जुटा रहे हैं लेकिन रेडियो का कोई मुकाबला नहीं।

नाटकों के प्रसारण का रहता था इंतजार: सेवानिवृत्त डिप्टी डायरेक्टर जनरल रेडियो, दूरदर्शन जम्मू डा. केसी दुबे रेडियो से जुड़ी यादें सांझा करते हुए कहते हैं कि उनके जमाने में रेडियो का खास क्रेज था। लोग अपने पसंदीदा कार्यक्रमों के प्रसारण का बेसब्री से इंतजार किया करते थे ।रेडियो से प्रसारित नाटकों के तो लोग दिवाने थे।वह रेडियो में ड्रामा इंचार्ज भी रहे। उनका कहना है कि नौकरी के दौरान कई स्टेशनों पर काम करने का मौका मिला। हर जगह रेडियो का श्रोता अपने आप को रेडियो का हिस्सा मानता है।हमने तो भी दौर देखा है जब लोग रेडियो को ठीक उसी तरह अपने साथ रखा करते थेए जैसे आज मोबाइल को रखते हैं। जानकारी और मनाेरंजन का मुख्य स्रोत ही रेडियो हुआ करता था। हिमाचल में रहते हुए श्रोताओं का विश्वास देखते ही बनता था। लोगों को लगता था जैसे रेडियो से कोई सूचना प्रसारित न हुई हो तो वह सूचना ही नहीं।लोगों के दिलों में रेडियो पात्रों के लिए विशेष स्थान हुआ करता था।लोग रेडियो कलाकारों को उसी तरह मिलना पसंद करते थेए जैसे आज वाॅलीबुड के कलाकारों से मिलना चाहते हैं। रेडियो में बिताया हर दिन मेरे जीवन का यादगार दिन है। रेडियो से जुड़ी कई यादें हैं। जिन्हें जीवन भर अपने साथ रखने की चाहत है। बस यही चाहता हूं कि रेडियो का मयार कम न हो।बेशक श्रोता कम भी हो जाएं लेकिन गुणवत्ता से समझौता नहीं होना चाहिए।जो भी लोग रेडियो से जुडे़ हैं जीन भर रेडियो से निराश न हो। इसके लिए रेडियो से जुडे़ लोगों को मेहनत करने से भी पीछे नहीं हटना चाहिए।

किसानों के लिए कार्यक्रम का रहता था: रेडियो पुंछ से सेवानिवृत्त डायरेक्टर रेडियो जीएल भगत ने बताया कि किसानों के लिए कार्यक्रम की शुरूआत उन्हीं के टाइम में हुई थी। विशेषज्ञों की टीम कृषि विभाग से रेडियो में शिफ्ट हुई थी। रेडियो से प्रसारित होने वाले देहाती कार्यक्रम देश सुहामा, जो आजकल किसान वाणी के नाम से प्रसारित होता है। बहुत लोक प्रिय कार्यक्रम था। कार्यक्रम में खास वरायटी होती थी। रूपक, झलकियां भी जानकारी से भरपूर होते थे। लोक कलाकारों को भी खूब मौके मिलते थे। लोगों के खत, गांव-गांव जा कर कार्यक्रम करना। जिस गांव में भी जाते थे। लोगों में एक खास उत्साह होता था कि रेडियो से लोग उनके गांव आए हैं। हर पात्र के बारे में लोग जानना चाहते थे। कई श्रोता तो इस कदर जुड़ जाते थे कि सभी अपने कार्यक्रम का हिस्सा लगते थे।समय के साथ जो बदलाव हुए हैं। उन्हें समय की जरूरत कहा जा सकता है लेकिन हमें अपने लोक से जोड़ने में रेडियो का जो दायित्व है, उसे समझना होगा।


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