Jammu Kashmir: अनुसूचित जनजाति और परंपरागत वन निवासियों को मिलेगा वनाधिकार, अधिनियम 2006 होगा लागू
आपको बता दें कि वनाधिकार अधिनियम 2006 के तहत पूरे देश में जंगलों में रहने वाले वनवासियों आदिवासियों को वनसंपदा पर अधिकार प्रदान किया जाता है। यह केंद्रीय कानून पांच अगस्त 2019 से पूर्व जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं था। जम्मू-कश्मीर में यह कानून पहली बार लागू हुआ।
श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। जम्मू-कश्मीर प्रदेश में अनुसूचित जनजातियों और अन्य परंपरागत वनवासियों को भी वनाधिकार मिलेंगे। वनों पर उनके अधिकारों की बहाली के लिए प्रदेश में वनाधिकार, जिला और प्रदेश स्तर पर निगरानी समिति समेत चार समितियां बनेंगी।। सभी आवश्यक औपचारिकताओं को पूरा करते हुए पात्र लोगों काे पहली मार्च 2021 तक वनाधिकार प्रदान किए जाएंगे।
आपको बता दें कि वनाधिकार अधिनियम 2006 के तहत पूरे देश में जंगलों में रहने वाले वनवासियों, आदिवासियों को वनसंपदा पर अधिकार प्रदान किया जाता है। यह केंद्रीय कानून पांच अगस्त 2019 से पूर्व जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं था। जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के लागू होने के बाद 31 अक्तूबर 2019 का बने केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में यह कानून पहली बार लागू हुआ।
जम्मू-कश्मीर में गद्दी, सिप्पी, गुज्जर औेर बक्करवाल समुदाय ही वनों पर आश्रित है। इन समुदायों के कई लोग आज भी घुमंतु जीवन व्यतीत करते हैं जो अपने माल मवेशी के साथ चरागाहों और जंगलों में ही रहते हैं। प्रदेश में अनुसूचित जनजातीय वर्ग से जुड़े लोगों के वनाधिकार बहाल करने के लिए जनजातीय मामलेे एवं वन, पर्यावरण विभाग ने अक्तूबर 2020 में ही काम शुरु कर दिया था।
मुख्य सचिव बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने एक उच्चस्तरीय बैठक में अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 को जम्मू-कश्मीर में पूरी तरह प्रभावी बनाने के लिए किए जा रहे कार्याें की समीक्षा की। बैठक में तय किया गया है वनों पर दावा जताने वालों के सर्वे का काम ग्राम स्तर पर 15 जनवरी 2021 तक पूरा कर लिया जाएगा। इसके बाद उपमंडलीय समितियां अपने अपने कार्याधिकार क्षेत्र के दावों का आंकलन करेंगी और वे इनकी छंंटनी करने के बाद वनाधिकार का पूरा लेखा-जोखा 31 जनवरी 2021 को या उससे पहले तैयार करेगी। इसके बाद जिला स्तरीय समितियां संबधित रिपोर्ट और रिकार्ड का संज्ञान लेते हुए पहली मार्च तक वनाधिकारों का अनुमोदन करेगी।
बैठक में बताया गया कि इस अधिनियम के तहत अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी वर्ग को वनों में रहने, खेतीबाड़ी करने, वन संपदा से आजीविका कमाने, लघु वन उत्पाद, अनुमोदित जड़ी बूटियां जमा करने का अधिकार मिलेगा। यह अधिकार विरासती है। इस अधिनियम के मुताबिक ग्राम सभा की सिफारिश के आधार पर वनीय भूमि के एक एकड़ हिस्से को सरकारी स्कूल, अस्पताल, पेयजल याेजना, वर्षा जल सिंचाई योजना, छोटी नहरों के निर्माण, गैर परंपरागत संसाधनों से ऊर्जा उत्पादन व सड़क निर्माण के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
यह अधिनियम वनाधिकार प्राप्तकर्ता और ग्राम सभा को वन्य जीवों, वन संपदा, जैव विविधिता, जल स्रौतों व परिस्थितिक रुप से अन्य संवेदनशील इलाकों की सुरक्षा के लिए भी जिम्मेदार बनाता है।
मुख्य सचिव ने बैठक में मौजूद वन विभाग के अधिकारियों को अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 को पूरी तरह से प्रभावी बनाने के लिए चार स्तरीय समितियों के गठन का निर्देश दिया है। इन चार स्तरीय समितियों में प्रादेशिक निगरानी समिति, जिला स्तरीय समिति, उपमंडलीय समिति और वनाधिकार समिति शामिल है। अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 की बहाली से जुड़े मामलों की नियमित अंतराल पर समीक्षा के लिए एक निगरानी तंत्र भी विकसित करने को कहा है।