Raksha Bandhan 2020: कोरोना महामारी में इस तरह मनाएं रक्षाबंधन पर्व, जानिए क्या है इस पर्व से जुड़ी पौराणिक कथाएं!
Raksha Bandhan 2020 भाई तिलक लगाएं भगवान को प्रणाम करें और भगवान को प्रसाद लगाकर स्वयं ग्रहण करें। पैसे निकाल कर रख दें जब भी बहन से मिले उनको भेंट करें।
जम्मू, जागरण संवाददाता। कोरोना महामारी के चलते इस प्रकार मनाए रक्षाबंधन: कोरोना महामारी के चलते भाई, बहन रक्षाबंधन के त्योहार पर अगर मिल नहीं सकते तो भाई-बहन अलग-अलग भी रहते हुए ये त्योहार मना सकते हैं।
बहनें मन में भाई का ध्यान करते हुए भगवान श्रीकृष्ण की तस्वीर अथवा प्रतिमा को राखी बांधे, तिलक, पूजन एवं प्रसाद का भोग लगाएं और भाई की मंगलकामना एवं दीर्घायु के लिए भगवान से प्राथना करें और भाई भी भगवान की प्रतिमा से राखी स्पर्श कर राखी बांध लें। तिलक लगाएं, भगवान को प्रणाम करें और भगवान को प्रसाद लगाकर स्वयं ग्रहण करें। पैसे निकाल कर रख दें जब भी बहन से मिले उनको भेंट करें।
पुराणों के अनुसार रक्षाबंधन से जुड़ी कहानियां: पुराणों के मुताबिक एक समय दानवो ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया था। जिसमें देवताओं की पराजय होने लगी थी। स्वर्ग लोक में मचे इस हाहाकार से देवराज इंद्र की पत्नी घबरा गई और अपने स्वामी के प्राणों की रक्षा करने के लिए तप करने लगी। तप करने से उन्हें एक रक्षा सूत्र प्राप्त हुआ। जिसे शचि, इंद्र की पत्नी ने इंद्र की कलाई पर बांध दिया। शचि ने इस रक्षा सूत्र को सावन महीने की पूर्णिमा के दिन इंद्र की कलाई पर बांधा था। इसलिए इसे रक्षा बंधन कहा जाता है। रक्षा सूत्र प्राप्त होने के पश्चात देवताओं की जीत हुई और दानव पाताल लोक वापस चले गए।
भगवान कृष्ण, पांडवों की पत्नी द्रोपदी को बहन मानते थे। शिशुपाल का सिर काटने के वक़्त कृष्ण की उंगली भी कट गई। द्रोपदी ने तुरंत अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ा और बांध दिया। भगवान ने वादा किया कि वो हमेशा द्रोपदी की रक्षा करेंगे। जब द्रोपदी चीरहरण का सामना कर रही थी। तो कृष्ण ने अपार वस्त्र देकर उनकी इज्ज़त बचाई। यह घटना भी सावन महीने की पूर्णिमा तिथि को हुई थी। कई लोगों का मानना है कि इस घटना के बाद से राखी का त्योहार मनाया जाने लगा।
जब सैनिकों के साथ मनाया गया रक्षाबंधन: एक कथा के अनुसार महाभारत युद्ध के समय भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि तुम्हारी रक्षा करने वाले तुम्हारे सैनिक हैं। इसलिए इनके साथ रक्षाबंधन का त्योहार मनाओ। श्री कृष्ण की सलाह पर युधिष्ठिर ने अपने सैनिकों के संग राखी का त्योहार मनाया। जिसके बाद से रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाने लगा।
राजा बलि की कलाई पर लक्ष्मी मां ने बांधी थी राखी: भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया तो राजा बलि से तीन पग जमीन मांगी। भगवान वामन ने एक पग में स्वर्ग और दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लिया। तीसरा पैर कहां रखे। इस बात को लेकर बलि के सामने संकट उत्पन्न हो गया। अगर वह अपना वचन नहीं निभाता तो अधर्म होता। आखिरकार उसने अपना सिर भगवान के सामने कर दिया और कहा तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए। वामन भगवान ने वैसा ही किया। पैर रखते ही बलि सुतल लोक में पहुंच गया। बलि की उदारता से भगवान प्रसन्न हुए। उन्होंने उसे सुतल लोक का राज्य प्रदान किया।
बलि ने वर मांगा कि भगवान विष्णु उसके द्वारपाल बनें। तब भगवान को उसे यह वर भी प्रदान करना पड़ा। पर इससे लक्ष्मी जी संकट में आ गईं। वे चिंता में पड़ गईं कि अगर स्वामी सुतल लोक में द्वारपाल बन कर रहेंगे तब बैकुंठ लोक का क्या होगा। तब देवर्षि नारद ने उपाय बताया कि बलि की कलाई पर रक्षा सूत्र बांध दो और उसे अपना भाई बना लो। लक्ष्मी जी ने ऐसा ही किया। उन्होंने बलि की कलाई पर राखी, रक्षासूत्र, बांधी। बलि ने लक्ष्मी जी से वर मांगने को कहा। तब उन्होंने विष्णु को मांग लिया। रक्षा सूत्र की बदौलत लक्ष्मी को अपने स्वामी पुन: मिल गए।