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युद्ध के सालों बाद भी इन पहाड़ियों पर बिखरा है पाक सैनिकों का गोलाबारूद और अन्य साजो-सामान

Kargil Vijay Diwas इन पहाड़ियों पर आज भी जहां-तहां बिखरा पाकिस्तानी सेना का गोलाबारूद और अन्य साजो-सामान भारतीय शूरवीरों की वीरता और बलिदान की गाथा सुनाता है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 19 Jul 2019 09:23 AM (IST)Updated: Fri, 19 Jul 2019 09:45 AM (IST)
युद्ध के सालों बाद भी इन पहाड़ियों पर बिखरा है पाक सैनिकों का गोलाबारूद और अन्य साजो-सामान
युद्ध के सालों बाद भी इन पहाड़ियों पर बिखरा है पाक सैनिकों का गोलाबारूद और अन्य साजो-सामान

जम्मू, राज्य ब्यूरो। कारगिल की बर्फीली और पथरीली चोटियां पिछले 20 सालों से पूरी तरह खामोश हैं, लेकिन इन पहाड़ियों पर आज भी जहां-तहां बिखरा पाकिस्तानी सेना का गोला-बारूद और अन्य साजो-सामान भारतीय शूरवीरों की वीरता और बलिदान की गाथा सुनाता है। यह सामान साबित करता है कि ऊंची पहाड़ियों पर बंकरों में घात लगाए बैठे पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ने के लिए जब भारतीय जांबाजों ने अंतिम प्रहार किया होगा तो दुश्मन को भागते समय अपना सामान तक समेटने का मौका नहीं मिला होगा।

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रक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि टाइगर और तोलोलिंग की पहाड़ियों के आसपास के इलाके में कई बार सैन्य गश्ती दलों को पाकिस्तानी सेना द्वारा छोड़े गए कारतूस, ग्रेनेड, आरपीजी, खाने-पीने का सामान मिला है। अगर उक्त साजो-सामान को नष्ट करना संभव न हो तो उस जगह को चिह्नित कर दिया जाता है, ताकि वहां कोई जाने अंजाने जाकर विस्फोटक को न छेड़े। टाइगर हिल के पास ऐसी जगहों पर एक निश्चित दूरी तक पर्यटकों को भी जाने दिया जाता है, जो द्रास की यात्रा के दौरान टाइगर हिल पर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने आते हैं।

मश्कोह घाटी में प्वाइंट 4355 के पास मिला बंकर व सामान :

रक्षा मंत्रालय के अधिकारी ने बताया कि करीब एक पखवाड़ा पहले ही मश्कोह घाटी में प्वाइंट 4355 के पास सैन्यकर्मियों ने पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा कारगिल युद्ध के दौरान पत्थरों से बनाए गए एक बड़े बंकर का पता लगाया है। इस बंकर के पास ही दो और बंकर बने हुए हैं। यह बंकर उस जगह बनाया गया है, जहां से आप अपने विरोधी को ऊपर चढ़ने से रोकने में पूरी तरह समर्थ रहें। इसमें करीब डेढ़-दो दर्जन जवान एक साथ रह सकते हैं।

बंकर के पास हमें ऊपर एक चट्टान पर मीडियम मशीन गन का कारतूसों से भरा पट्टा, वहीं पास घास और पत्थरों के बीच एक आरपीजी और एक ग्रेनेड भी मिला है। वहां कुछ एम्यूनेशन बॉक्स भी मिले हैं, जिन्हें अब जंग लग चुका है। रेडी टू ईट फूट पैकेट व डिब्बाबंद खाने के कुछ डिब्बे भी बिखरे हुए मिले हैं। पाकिस्तानी सैनिकों का एक स्नोबूट और एक टूटी हुई हेल्मेट भी मिली है।

ट्रैकिंग रूट बनाने के दौरान मिला सामान :

पाकिस्तानी सैनिकों का सामान बत्रा टॉप के रास्ते में मिला है। यह सामान अब भी नहीं मिलता, अगर बत्रा टॉप के लिए एक ट्रैकिंग रूट न बनाया जाता। ट्रैकिंग रूट बनाते हुए जवान जब आगे बढ़ रहे थे तो उन्हें एक जगह एक प्राकृतिक गुफा और पत्थर लगाकर बनाई एक दीवार नजर आई। उसी समय जवान समझ गए कि यहां भी पाकिस्तानी छिपे थे।

खलूबर व बटालिक में भी मिल चुके पाकिस्तानी विस्फोटक :

अधिकारियों के मुताबिक, पाकिस्तानी सैनिकों का साजो सामान खलूबर और बटालिक सेक्टर में भी मिल चुका है। वहां भी जिस हालात में यह सामान मिला था, उसे देखकर पाकिस्तानी सैनिकों की भारतीय जवानों के आगे स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसा लगता है कि युद्ध के दौरान उन्हें जान बचाने के दौरान अपना सामान भी उठाने का मौका नहीं मिला होगा और कांपते हुए वापस भाग गए होंगे।

हर एक पहाड़ी को खंगालना संभव नहीं :

यह पूछे जाने पर कि पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़े जाने के बाद क्या भारतीय सेना ने इलाके में तलाशी नहीं ली थी जो यह सामान अब मिल रहा है, तो उक्त अधिकारी ने कहा कि हर एक पहाड़ी को नहीं खंगाला जा सकता। उन्हीं पहाड़ियों पर जवानों की गश्त और मोर्चेबंदी रहती है, जहां से घुसपैठ की संभावना हो या फिर जहां से पूरे इलाके में नजर रहती है। युद्ध के दौरान पाकिस्तानी लगभग हर पहाड़ी और उसकी ढलान पर बैठे थे। हमारे जवान जब किसी पहाड़ी विशेष या क्षेत्र पर कब्जा करते थे तो आसपास जहां पाकिस्तानी सैनिक होते थे, तो वह भाग जाते थे। इसलिए अब जब कभी जवान ऐसे इलाकों में गश्त करते हैं, तो पाकिस्तानी सैनिकों का सामान मिलता है।


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