जम्मू-कश्मीरः फारूक पर पीएसए को कोर्ट में चुनौती देगी नेशनल कांफ्रेंस
कश्मीर में जो लोग हालात सामान्य होने का दावा कर रहे हैं उनके दावों की पोल खुल चुकी है। कश्मीर में लोगों को दबाया जा रहा है उनके लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन हो रहा है।
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर : पूर्व मुख्यमंत्री एवं नेकां सांसद डॉ. फारूक अब्दुल्ला को जन सुरक्षा अधिनियम पीएसए के तहत बंदी बनाए जाने के राज्य सरकार के फैसले को नेशनल कांफ्रेंस अदालत में चुऩौती देगी। राज्य प्रशासन ने फारूक को कानून व्यवस्था के लिए खतरा बताते हुए रविवार की रात पीएसए के तहत बंदी बनाया है।
नेकां के वरिष्ठ नेता और सांसद मोहम्मद अकबर लोन ने कहा कि फारूक को जनसुरक्षा अधिनियम के तहत बंदी बनाया जाना अत्यंत निंदनीय है। राज्य व केंद्र सरकार अपने इस कदम को किसी भी तरह से न्यायोचित नहीं ठहरा सकती। हम राज्य सरकार के इस कदम को अदालत में चुनौती देंगे। हम उनकी रिहाई के लिए सभी संवैधानिक और कानूनी रास्तों का सहारा लेंगे।
उत्तरी कश्मीर में बारामुला-कुपवाड़ा से सांसद अकबर लोन ने कहा कि जो शख्स यहां हमेशा हिंदोस्तान का झंडा उठाकर चलता रहा है, हिंदोस्तान की बात करता रहा, अगर यहां कोई दुत्कारा गया तो वह डॉ. फारूक ही हैं। हिंदोस्तान ने जो सुलूक डॉ. अब्दुल्ला के साथ किया है, वह दुर्भाग्यजनक है। उन्होंने कहा कि कश्मीर में जो लोग हालात सामान्य होने का दावा कर रहे हैं, उनके दावों की पोल खुल चुकी है। कश्मीर में लोगों को दबाया जा रहा है, उनके लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन हो रहा है।
फारूक का घर ही बनी जेल, उमर पहले से ही हैं हिरासत में
नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला को राज्य प्रशासन ने जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत बंदी बना लिया है। पीएसए के तहत बंदी बनाए जाने वाले वह राज्य के पहले पूर्व मुख्यमंत्री और सांसद हैं। उनके घर को ही अस्थायी जेल का दर्जा दिया गया है। श्रीनगर के सांसद और जम्मू कश्मीर में तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके डॉ. फारूक अब्दुल्ला को जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन विधेयक को लागू करने से पूर्व चार अगस्त की मध्यरात्रि को घर में प्रशासन ने एहतियात के तौर पर नजरबंद किया था। उनके पुत्र पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला भी एहतियातन हिरासत में हैं। उन्हें हरि निवास में रखा गया है। डॉ. अब्दुल्ला पर राज्य सरकार ने रविवार रात ही पीएसए लगाया है। इस कानून के मुताबिक, संबंधित व्यक्ति को बिना किसी सुनवाई के दो साल तक एहतियातन हिरासत में रखा जा सकता है। सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय में एमडीएमके नेता वायको द्वारा डॉ. फारूक अब्दुल्ला की रिहाई के लिए दायर याचिका पर सुनवाई से पूर्व ही उन्हें पीएसए के तहत बंदी बनाने की पुष्टि हुई। सूत्रों के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय में डॉ. फारूक अब्दुल्ला की हिरासत को न्यायोचित्त ठहराने के लिए ही यह कदम उठाया गया है।
सरकार ने कहा था कोई रोक नहीं :
डॉ. फारूक अब्दुल्ला को जब अपने घर में नजरबंद किया गया था तो सरकार ने साफ कहा था कि वह हिरासत में नहीं हैं और कहीं भी आने-जाने को स्वतंत्र हैं। अलबत्ता, उसके बाद डॉ. अब्दुल्ला ने अपने घर की दिवार के पास खड़े होकर सरकार पर झूठ बोलने का आरोप लगाया था।
शेख अब्दुल्ला ने बनाया था कानून :
राज्य में पीएसए को फारूक अब्दुल्ला के पिता व पूर्व मुख्यमंत्री स्व. शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने वर्ष 1978 में लागू किया था। उस समय उन्होंने यह कानून जंगलों के अवैध कटान में लिप्त तत्वों को रोकने के लिए बनाया था। बाद में इसे असामाजिक तत्वों, आतंकियों, कानून व्यवस्था के लिए संकट बनने वाले तत्वों पर भी लगाया जाने लगा। अलगाववादियों को भी अक्सर इसी कानून के तहत बंदी बनाया जाता रहा है। इस कानून के मुताबिक, दो साल तक किसी तरह की सुनवाई नहीं हो सकती थी, लेकिन वर्ष 2010 में इसमें कुछ बदलाव किए गए। पहली बार उल्लंघन पर पीएसए के तहत हिरासत की अवधि छह माह रखी गई और अगर उसमें सुधार नहीं होता है तो इसे दो साल तक बढ़ाया जा सकता है।