अस्थायी हाथों में कला को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी, कार्यक्रम ठप
कला संस्कृति साहित्य के उत्थान को लेकर केंद्र और राज्य सरकार कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कला के उत्थान एवं प्रोत्साहन के लिए गठित संस्थाओं के संचालन की जिम्मेदारी अस्थायी हाथों में है।
अशोक शर्मा, जम्मू
कला, संस्कृति, साहित्य के उत्थान को लेकर केंद्र और राज्य सरकार कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कला के उत्थान एवं प्रोत्साहन के लिए गठित संस्थाओं के संचालन की जिम्मेदारी अस्थायी हाथों में है। इससे सांस्कृतिक गतिविधियां ठप होकर रह गई हैं। पिछले चार माह से जम्मू-कश्मीर कला, संस्कृति एवं भाषा अकादमी का कोई सचिव नहीं है। यहां इंचार्ज सेक्रेटरी बनाया गया है। इसके चलते चार महीने से अकादमी का कोई कार्यक्रम नहीं हुआ है। यहां तक कि नियमित प्रकाशन भी नहीं हो सके हैं। बीच में हालत यह हो गई थी कि कर्मचारियों को वेतन भी एक महीने बाद मिला। अकादमी का स्थायी सचिव होने पर अक्सर महीने में 10 से 15 कार्यक्रम हो जाते हैं। इस वर्ष तो 25 वर्ष से अधिक समय से हो रही नियमित चिल्ड्रन समर वर्कशॉप तक नहीं करवाई गई। न कोई साहित्यिक गोष्ठी हुई और न ही किसी कार्यक्रम में अकादमी की भागीदारी रही।
कला शिक्षा के एक मात्र संस्थान इंस्टीट्यूट ऑफ म्यूजिक एंड फाइन आर्ट्स (इम्फा) जबसे जम्मू यूनिवर्सिटी के अधीन आया है, कोई स्थायी प्रिसिपल तक नहीं मिल सका है। हालत तो यह भी रही कि यूनिवर्सिटी ने जिन प्रोफेसरों को इम्फा का प्रिसिपल बनाया, उन्हें महीनों कॉलेज तक जाने का समय तक नहीं मिला। इम्फा से पासआउट अश्विनी शर्मा ने कहा कि प्रिसिपल तो स्थायी होना ही चाहिए। यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों को अक्सर प्रिसिपल की अतिरिक्त जिम्मेदारी ही सौंपी जाती है। जब कॉलेज में प्रिसिपल ही नहीं होगा, तो कॉलेज के कई महत्वपूर्ण कार्य नहीं हो पाते। इससे अनुशासन भी नहीं बन पाता। रेडियो कश्मीर में कोई निदेशक नहीं
जम्मू दूरदर्शन, रेडियो कश्मीर जम्मू के पास वर्षो से कोई निदेशक नहीं है। प्रोग्राम हेड को ही निदेशक की जिम्मेदारी सौंप दी जाती है। इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशन (आइसीसीआर) भी इंचार्ज डायरेक्टर के भरोसे चल रहा है। वर्जन--
किसी भी कार्यालय में हेड का न होना दर्शाता है कि सरकार कला, संस्कृति को लेकर गंभीर नहीं है। हेड न होने के कारण कलाकारों से न्याय नहीं हो पा रहा है। सांस्कृतिक, साहित्यिक गतिविधियों का थमना किसी भी सभ्य समाज के लिए ठीक नहीं होता। खासकर अकादमी का सचिव नियुक्त करने में हो रही देरी चिता का विषय है। पहले ही जम्मू दूरदर्शन से पिछले पांच वर्ष से पुराने कार्यक्रमों का ही प्रसारण चल रहा है।
-मोहन सिंह, अध्यक्ष, डुग्गर मंच