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Kashmir Avalanches: कश्मीर में तीन सालों में 100 जानों को लील गया हिमदानव

अधिकांश हिमस्खलन नवंबर से अप्रैल के बीच ही होते हैं। सर्दियों में तापमान गिरने के साथ ही उच्चपर्वतीय इलाकों में हिमपात होता है। बर्फ जब गिरती है तो बहुत ही नर्म और मुलायम होती है।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Fri, 28 Feb 2020 02:49 PM (IST)Updated: Fri, 28 Feb 2020 02:49 PM (IST)
Kashmir Avalanches: कश्मीर में तीन सालों में 100 जानों को लील गया हिमदानव
Kashmir Avalanches: कश्मीर में तीन सालों में 100 जानों को लील गया हिमदानव

श्रीनगर, राज्य ब्यूरो। कश्मीर में हिमपात-सैलानियों को लुभाता है। इसका आनंद लेने के लिए दूर-दूर से सैलानी आते हैं, लेकिन यही हिमपात हिमदानव बनकर आम लोगों पर कहर भी ढाता है। कई बहुमूल्य जानें भी चली जाती हैं। बीते तीन सालों में जम्मू कश्मीर में 100 से ज्यादा मासूम लोगों ने हिमस्खलन के कारण अपनी जान गंवाई है। इनमें सेना के जवान और स्थानीय नागरिक दोनों ही शामिल हैं।

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मौसम विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2017 से लेकर 2019 के अंत तक जम्मू कश्मीर के उच्चपर्वतीय इलाकों में 28 बड़े हिमस्खलन हुए हैंं। वर्ष 2017 में छह बड़े हिमस्खलन हुए थे। इनमें 34 लोगों की मौत हुई थी। सबसे ज्यादा 48 लोगों को अपनी जान 2019 में हुए हिमस्खलनों में गंवानी पड़ी है। 2019 में ही सबसे ज्यादा 18 बड़े हिमस्खलन हुए हैं। वर्ष 2018 में चार हिमस्खलनों में 18 मौतें हुई हैं।

नवंबर से अप्रैल के बीच हाेते हैं अधिकांश हिमस्खलन

अधिकांश हिमस्खलन नवंबर से अप्रैल के बीच ही होते हैं। सर्दियों में तापमान गिरने के साथ ही उच्चपर्वतीय इलाकों में हिमपात होता है। बर्फ जब गिरती है तो बहुत ही नर्म और मुलायम होती है। हिमपात के दौरान पहाड़ों पर बर्फ की एक चादर बिछ जाती है जो बर्फ की मात्रा के आधार पर मोटी या पतली होती है। हिमपात के साथ ही यह बर्फ एक चट्टान की तरह सख्त हो जाती है। इस बीच अचानक धूप निकलने या हवा में नमी कम होने के साथ इस बर्फ पर एक और कड़ी परत जम जाती है। इस कड़ी परत पर जब दोबारा हिमपात हाेता है तो बर्फ टिक नहीं पाती। यह बर्फ भीतर होती है। यह नीचे खिसकने लगती है और अपने साथ पहले से ही पहाड़ पर जमी बर्फ को भी नीचे घसीटती है। इससे हिमस्खलन होता है। बर्फीले तूफान की स्थिति भी बन जाती है। ढलहान जितनी तीखी होगी, हिमस्खलन भी उतना ही तेज व घातक होगा। सामान्य तौर पर इसकी गति 300-350 किलोमीटर प्रति घंटा हाेती है। हिमस्खलन जिस जगह जाकर थमता है, वहां बर्फ की एक माेटी परत बना देता है। इसमें दबे इंसान को अगर जल्द नहीं निकाला जाए तो उसका जिंदा बचना मुश्किल है।

तीन सालों के दौरान अधिक हुई बर्फबारी

मौसम विभाग श्रीनगर के उपनिदेशक डा मुख्तार अहमद ने कहा कि हिमस्खलन जम्मू कश्मीर के लिए कोई नयी बात नहीं हैं। बीते तीन सालों में जम्मू कश्मीर में बर्फ भी पहले से कहीं ज्यादा गिरी है। इसके अलावा बीते तीन सालों में असमय हिमपात की घटनाएं भी हुई हैं। इससे यहां जानमाल का नुकसान भी हुआ है। कई लोगों की जानें भी गई हैं। उन्होंने कहा कि बीते तीन सालों में यहां 100 लोगों की मौत सिर्फ हिमस्खलन की घटनाओं में ही हुई है। इनमें लद्दाख प्रांत की घटनाएं भी शामिल हैं।

मौसम में बदलाव भी हिमस्खलन का कारण

कश्मीर विश्वविद्यालय में अर्थ साइंस विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शकील रोमशू ने कहा कि हिमपात की तीव्रता और मात्रा का सीधा संबंध हिमस्खलन से होता है। बीते कुछ सालों में गुरेज, द्रास, टंगडार जैसे इलाकों में हिमस्खलन की घटनाएं बड़ी हैं क्योंकि इन इलाकों में इंसानी गतिविधियां भी तेज हुई हैं। मौसम में बदलाव भी इनका एक कारण है। जम्मू कश्मीर में पहले स्नो एवालांच वार्निंग की कोई ठोस व्यवस्था नहीं थी। वर्ष 2005 में आयी स्नो सुनामी के बाद इस मामले को गंभीरता से लिया गया। स्नो एंड एवलांच स्टडी इस्टेबलिशमेंट जिसे सासे कहते हैं, लगातार इस विषय में यहां शोध करता रहता है। अब कई इलाकों में हिमस्खलन के खतरे को टालने के लिए कृत्रिम तौर पर छोटे-छोटे हिमस्खलन भी पैदा किए जाते हैं। 


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