क्या है समान

नागरिक संहिता
भारत में यूसीसी का पहली बार कब हुआ जिक्र और किन राज्‍यों में लागू है यह कानून, जानें 'A' टू 'Z'

क्‍या है यूसीसी?

समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) का मतलब है कि भारत में रहने वाले हर नागरिक पर एक समान कानून लागू होगा, फिर चाहे वह शख्‍स किसी धर्म-जाति या समुदाय का हो। अगर UCC लागू होता है तो सबके लिए विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और संपत्ति से संबंधित कानून एक जैसा होगा। इससे सभी धर्मों के व्यक्तिगत कानूनों में एकरूपता आएगी।

इतिहास

  • 1948 में यूसीसी को नीति निदेशक तत्व के तहत संविधान के अनुच्छेद 44 का हिस्‍सा बनाया गया था।
  • संविधान सभा में इस पर डॉ. भीमराव अंबेडकर और जवाहर लाल नेहरू के बीच बहस भी हुई थी।
  • तब इसे देश की विविधता और सामाजिक शांति के लिए चिंताजनक मानकर लागू नहीं किया गया।

अहम तथ्‍य

  • एक ऐसे कानून का प्रस्‍ताव, जो सभी देशवासियों पर समान रूप से लागू होगा।
  • इससे राष्‍ट्रीय एकता और मजबूत होगी।
  • लैंगिक सामानता सुनिश्चित हो सकेगी।
  • धर्म व जाति के आधार पर भेदभाव खत्‍म होगा।

चुनौतियां

  • देश की विविध धार्मिक मान्यताएं और प्रथाएं।
  • अलग-अलग धार्मिक समुदायों का विरोध।
  • धर्म विशेष पर बने कानून खत्‍म करने का प्रयास।

अब तक क्‍या-क्‍या हुआ?

केंद्र की मोदी सरकार देश में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। देश की आजादी के बाद उत्तराखंड देश का पहला ऐसा राज्य बन गया, जहां यूसीसी लागू किया गया। हालांकि, विपक्ष इसका विरोध करता आया है।

यूसीसी से ये बदलेगा

  • विवाह
  • तलाक
  • मुआवजा
  • वंशानुक्रम उत्तराधिकार
  • गोद लेना
  • पैतृक संपत्ति का उत्तराधिकार

यूसीसी पर कब हुआ विचार?

भारत में समान नागरिक संहिता का जिक्र पहली बार 1948 में संविधान का मसौदा तैयार करते समय हुई थी, लेकिन धार्मिक समूहों के विरोध के चलते इसे अंतिम दस्‍तावेज में शामिल नहीं किया गया था। दरअसल, विरोध धर्मग्रंथों, रीति-रिवाजों पर आधारित कानून को लेकर था। इसलिए धर्मों को लेकर अलग-अलग बनाए गए। भारत के विधि आयोग ने 1963 में अपनी 17वीं रिपोर्ट में राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए यूसीसी के फायदे गिनाए थे। इसके बाद 1984 में राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी व्यक्तिगत कानूनों में प्रचलित लैंगिक भेदभाव से निपटने के लिए यूसीसी की वकालत की।

भारत में पर्सनल लॉ कब लागू हुआ?

भारत में पर्सनल लॉ का बीज ब्रिटिश शासन के दौरान बोया गया था। उस दौरान हिंदू और मुस्लिम नागरिकों के लिए व्यक्तिगत कानूनों को संहिताबद्ध किया गया था।

आजादी के बाद विभिन्न धार्मिक समुदायों के लिए व्यक्तिगत कानूनों में सुधार के प्रयास किए गए। 1955 में हिंदू कोड बिल पास हुआ। इसमें हिंदू, बौद्ध, जैन और सिखों के लिए कई बड़े सुधार हुए। हालांकि, ईसाई, यहूदी, मुस्लिम और पारसियों को इन सुधारों से छूट दी गई थी। इसको समान नागरिक संहिता की दिशा में एक प्रारंभिक कदम के रूप में देखा गया था।

संयुक्त राष्ट्र में 193 सदस्य हैं, जिनमें से आठ देशों- अमेरिका, आयरलैंड, तुर्किये, इंडोनेशिया, मिस्र, बांग्लादेश, मलेशिया और पाकिस्तान में यूसीसी लागू है। खास बात यह है कि यूसीसी वाले इन आठ देशों में से छह देश मुस्लिम-बहुल हैं और शेष दो ईसाई-बहुल। यूसीसी हर देश में लागू होना चाहिए, ताकि वहां रहने वाले हर नागरिक पर एक ही कानून लागू हो, जो कि किसी देश की व्‍यवस्‍था को सुचारू रूप से चलाने के लिए अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि यह प्रशासनिक और न्यायिक भार को कम करता है। विविधता में एकता की भूमि माने जाने वाले भारत में भी यूसीसी लागू होना चाहिए, जिसे सभी हितधारकों के उचित परामर्श के बाद तैयार किया जाना चाहिए।
जे.एस. सोढ़ी
सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट कर्नल

यूसीसी पर सियासत

1985 में शाह बानो मामले (जिसमें तीन तलाक के बाद गुजारा भत्ता मांगा गया था) के बाद यूसीसी भारतीय राजनीति में एक केंद्र बिंदु बन गया। इस मामले ने धार्मिक स्वतंत्रता पर सार्वभौमिक कानूनों के लागू होने का सवाल उठाया। यूसीसी बिल 2019 और 2020 प्रस्तावित किया गया, लेकिन राजनीतिक दलों में सहमति न होने के कारण पारित न हो सका। भाजपा नीत एनडीए के भीतर ही कई राजनीतिक पार्टियों ने यूसीसी का विरोध करते हुए कहा कि ये आदिवासी समुदायों के विशेषाधिकारों को कमजोर कर देगा।

यूसीसी कैसे फायदेमंद?

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने धार्मिक विश्वासों पर प्रभाव की आशंका जताते हुए समान नागरिक संहिता का विरोध किया। मुस्लिम बोर्ड ने विशेष रूप से बहुविवाह और पैतिृक संपत्ति में अधिकार को लेकर इसका विरोध किया है। वहीं, सिख समुदाय को इस बात की चिंता है कि अगर यूसीसी लागू हुआ तो शादी व अन्‍य धार्मिक प्रथाओं को प्रभावित करेगा।

क्‍या कहते हैं विशेषज्ञ...

यूसीसी देश के कानूनी ढांचे के लिए एक परिवर्तनकारी कदम साबित होगा। इससे देश में धार्मिक व सामाजिक एकरूपता और समानता आएगी। यह कानून धर्म व लिंक से परे सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करेगा। इससे देश में धर्मनिरपेक्षता और गैर-भेदभाव को मजबूत करने की दिशा में बल मिलेगा।

धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता के लिए मशहूर भारत मे यूसीसी लागू होने पर कुछ चुनौतियां भी सामने आएंगी। देश की धार्मिक और सांस्‍कृतिक विविधता और धार्मिक प्रथाओं को सम्मान देने के लिए संतुलन की जरूरत होगी। कुछ देश कानूनी एकरूपता को सर्वोपरि रखते हैं, तो कुछ धार्मिक प्रथाओं को सम्‍मान देते हुए धर्मनिरपेक्षता बरकरार रखते हैं। इसके अलावा, कानून को लागू करने के लिए राज्‍यों के पास अपने-अपने अधिकार हैं। हालांकि, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि लैंगिक समानता कई देशों के लिए अहम है, जो यूसीसी जैसे काननू लागू होने पर ही संभव है। ऐसे में यूसीसी लागू करने से पहले जरूरी है कि इन सभी बातों पर गौर किया जाए।
डॉ. सुमेध लोखंडे
सहायक प्रोफेसर, ऑरो यूनिवर्सिटी, सूरत

क्‍या महिलाओं को मिलेंगे और अधिकार?

यूसीसी का एक और महत्वपूर्ण पहलू लैंगिक न्याय को बढ़ावा देना है। इसके लागू होने से महिलाओं के खिलाफ चल रही भेदभावपूर्ण प्रथाओं को खत्म करने में मदद मिलेगी। महिलाओं को पुरुषों की तरह समान अधिकार और अवसर मिलेंगे और ये कानून सम्मत होगा। तलाक और भरण-पोषण को लेकर पर्सनल लॉ के विपरीत यूसीसी विशेष रूप से काम करेगा और एकरूपता लाएगा। जहां महिलाओं को अक्सर असमानताओं का सामना करना पड़ता है, लैंगिक न्याय के प्रति यूसीसी महिलाओं की शिक्षा, रोजगार और स्वतंत्रता को भी प्रोत्साहित करता है।

क्या कहते हैं यूसीसी के आलोचक?

विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा समान नागरिक संहिता का विरोध भी हो रहा है। इसके विरोध के केंद्र में धार्मिक स्वतंत्रता, सांस्कृतिक विविधता और अल्पसंख्यक समुदायों की स्वायत्तता पर यूसीसी के प्रभाव के बारे में चिंताएं हैं। आलोचकों का कहना है कि यूसीसी, विभिन्न धार्मिक समुदायों में व्यक्तिगत कानूनों को खत्म करने का लक्ष्य रखकर लाया जा रहा है। ये भारतीय संविधान के तहत संरक्षित विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक पहचानों के खात्मे का कारण बन सकता है।

यूसीसी लागू करने में आएंगी ये जटिलताएं

भारत की विविध आबादी के चलते यहां यूसीसी लागू करने में कई कठिनाइयां आ सकती हैं। प्रत्येक समुदाय में विवाह, तलाक और विरासत जैसे व्यक्तिगत मामलों में अनूठे रीति-रिवाज और परंपराएं हैं और एक समान संहिता लागू करने पर असंतोष और प्रतिरोध हो सकता है। दरअसल, यूसीसी लागू होने के बाद विभिन्न समुदायों को उनकी प्रथाओं को बदलने की आवश्यकता होगी, जो उनके हिसाब से उनकी संस्कृति और धार्मिकता पर असर डाल सकती है।

यूसीसी पर सुप्रीम कोर्ट का क्या था फैसला?

सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों ने समान नागरिक संहिता के इर्द-गिर्द चर्चा को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सबसे ज्यादा चर्चित शाह बानो मामला है, जहां अदालत ने एक बुजुर्ग तलाकशुदा मुस्लिम महिला को गुजारा भत्ता देने के पक्ष में फैसला सुनाया था। हालांकि, इस निर्णय का ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने काफी विरोध किया, लेकिन इसने विभिन्न धार्मिक समुदायों में समान अधिकार और न्याय सुनिश्चित करने के लिए यूसीसी की आवश्यकता को रेखांकित किया।

एक अन्य महत्वपूर्ण फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि यूसीसी को लागू करने की जिम्मेदारी विशेष रूप से संसद की है।

दूसरी ओर विधि आयोग ने भी शाह बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए सक्रिय रूप से यूसीसी पर जनता की राय मांगी थी। यह पूरे भारत में यूसीसी को लागू करने की व्यवहार्यता पर विविध विचार इकट्ठा करने के लिए किया गया था।

यूजीसी का देश में लागू होना अच्‍छा रहेगा। अब तक देश में हर धर्म, जाति और समुदाय के लिए अलग-अलग कानून हैं, लेकिन अब सरकार सभी के लिए एक कानून बनाने का प्रयास कर रही है। अगर यूसीसी लागू हो जाता है तो फिर चाहे कोई धर्म-जाति और समुदाय हो, सबके लिए विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और संपत्ति से संबंधित कानून एक ही होगा। इससे कुरीतियां खत्म होंगी। अदालत के लिए भी आसान होगा, अभी जब कोई केस आता है, तो धर्म-जाति-समुदाय, रीति और परंपरा व धर्म विशेष कानून सबको ध्‍यान में रखकर फैसला सुनाया जाता है। हालांकि, इसमें भी क्षेत्र को धर्म में रखकर कुछ रियायत देनी होगी।
मनीष भदौरिया
एडवोकेट, कड़कड़डूमा कोर्ट

गोवा में समान नागरिक संहिता

गोवा भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां समान नागरिक संहिता कई वर्षों से प्रभावी रूप से लागू है, जो मूल रूप से गोवा नागरिक संहिता पर आधारित है, जो 1867 के पुर्तगाली नागरिक संहिता से प्रभावित है। यह संहिता न केवल गोवा के निवासियों पर लागू होती है, बल्कि यह दमन और दीव,दादरा और नगर हवेली में रहने वाले लोगों पर भी लागू होती है।

दिलचस्प बात यह है कि गोवा नागरिक संहिता हिंदुओं के लिए बहुविवाह की अनुमति देता है, लेकिन स्पष्ट रूप से गोवा में रहने वाले मुसलमानों के लिए शरिया कानून को नहीं लागू करता है। यह चयनात्मक प्रक्रिया गोवा में यूसीसी के भीतर जटिलताओं और अनुरूप दृष्टिकोणों पर प्रकाश डालता है। यह दर्शाता है कि गोवा में यूसीसी एकरूपता नहीं ला रही है।

उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता

7 फरवरी 2024 को उत्तराखंड में यूसीसी पारित किया गया था। इससे उत्तराखंड समान नागरिक संहिता लागू करने वाला भारत का पहला राज्य बन गया, जिसने राज्य के भीतर विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों में एकरूपता लाने में एक मिसाल कायम की।

अन्य देशों में क्या है कानून?

भारत में समान नागरिक संहिता की अवधारणा महत्वपूर्ण बहस और चर्चा का विषय रही है, जबकि यूसीसी का कार्यान्वयन धार्मिक विविधता और व्यक्तिगत अधिकारों के संरक्षण के बारे में चिंताओं के साथ एक विवादास्पद मुद्दा रहा है। इसके विपरीत अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में यूसीसी नहीं है, बल्कि अलग-अलग नागरिक संहिताएं हैं, जो व्यक्तिगत और पारिवारिक कानून के विभिन्न पहलुओं को नियंत्रित करती हैं।

ग्रेट ब्रिटेन में यूसीसी नहीं है, बल्कि यह इंग्लैंड और वेल्स, स्कॉटलैंड और उत्तरी आयरलैंड के लिए अलग-अलग कानूनी प्रणालियों के तहत काम करता है, जिनमें से प्रत्येक के अपने पारिवारिक कानून हैं। दुनिया भर में देशों ने व्यक्तिगत कानूनों के लिए विविध दृष्टिकोण अपनाए हैं, कुछ ने एकीकृत नागरिक संहिता को चुना है, जबकि अन्य ने धार्मिक या प्रथाओं के आधार पर अलग-अलग कानूनी ढांचे बनाए रखे हैं।

Credits:

Ideation: Anil Pandey
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