मोहे रंग दे गेरुआ
चलो सखि फागुन आयो रे... उस अलमस्त और मदमस्त टोली का मात्र बुलावा नहीं है, बल्कि यह वह सोच है, जो होली के बहाने खुलकर जीने का सबब देती है। हुरियारों की टोली न सिर्फ रंग चुनती है, बल्कि उन रंगों को बुनती भी है, जो उसकी दुनिया को पूरे
चलो सखि फागुन आयो रे... उस अलमस्त और मदमस्त टोली का मात्र बुलावा नहीं है, बल्कि यह वह सोच है, जो होली के बहाने खुलकर जीने का सबब देती है। हुरियारों की टोली न सिर्फ रंग चुनती है, बल्कि उन रंगों को बुनती भी है, जो उसकी दुनिया को पूरे साल रंगों से सराबोर रखते हैं...। फिर वो चाहे उल्लास का रंग हो या देशप्रेम का, हर महिला अपने हिस्से का लाइफ कैनवास सजा ही लेती है होली के बहाने...
फ्लैशबैक में जाती हूं तो याद आती है वो होली... पापा ने हाथों में गुलाल का पैकेट दिया और बोले 'बेटा जाकर सुमंता के लगा दो...- साल दर
साल गुजरते गए और यूं ही हर होली पर पापा के कहने पर सुमंता बुआ को हम रंगते रहे... एक बार होली पर मन नहीं माना और पापा से पूछ ही बैठी कि 'सुमंता बुआ से ही हम होली क्यों शुरू
करते हैं...- पापा ने भी उसी सहजता से बता दिया कि 'रंग उसे ही सबसे पहले लगाना चाहिए, जो सबसे ज्यादा फीका हो। कुछ बड़ी हुई तब मर्म समझी।
दरअसल सुमंता बुआ वह महिला थीं जिनके पति देश की रक्षा करते-करते लापता हो गये थे...। बुआ तटस्थ थीं। न खुश न दुखी...। बस हम बच्चों के गुलाल लगाने पर जरूर खिल उठती थीं और हमारी होली उन्हें खिलखिलाते देख सार्थक हो जाती थी।-
...वाकई ये कर्तव्य है हमारा कि एक नागरिक और इंसान होने के नाते हम अपने त्योहारों को समाज के उस तबके के साथ मनाएं, जो विभिन्न कारणों से वंचित हैं खुशियों से। ग्लोबलाइजेशन ने होली जैसे पारंपरिक त्योहारों को पुनर्भाषित किया है। आज उत्सव भी ब्रांडेड हो गये हैं। यह विचारणीय है कि विकास का पहिया जिस रफ्तार से दौड़ रहा है उससे हमारी संस्कृति कहीं पिस तो नहीं रही...।
निश्चित रूप से हमें सांस्कृतिक सुरक्षा पर ध्यान देना होगा और यह भी समझना होगा कि त्योहार तभी है जब देश समृद्धशाली है। सभ्यता, भूगोल,
समाज और आन्तरिक संरचना के अनुसार।
प्रेम का उद्घोष है होली
कहने को मु_ी भर रंग ही हैं, पर होली के दिन ऐसी छटा बिखेरते हैं कि मन धुल भी जाता है और इन रंगों में घुल भी जाता है। वाकई होली वह त्योहार है जहां प्रेम की ऐसी धूनी रमाई जाती है
कि हर तबका अपना हो जाता है।
हमारे देश में 'आज- वह महत्वपूर्ण पड़ाव है, जो इतिहास रच रहा है और हम बहुत से परिवर्तनों के साक्षी बन रहे हैं...। ऐसे में यह जरूरी है कि अपनी दुनिया को थोड़ा विस्तार दिया जाए और
देशप्रेम की ऐसी अलख जगाई जाए, जो उन लोगों को भी प्रेरणा दें, जो सामाजिक दुर्भाव को पैदा कर रहे हैं।
होली मंच है प्रेम के मुखर होने का...। खुले दिल से गले मिलने का, सद्भाव बढ़ाने का। साथ ही आनंद की बयार में बहने का।
आभार की अभिव्यक्ति
होलिका दहन की परंपरा उन संकल्पो को याद दिलाती है, जो समाज विरोधी ताकतों के दहन के लिए, लिए जाते हैं तो होलिका पूजन के समय की गयी प्रार्थनाएं देश की समृद्धि का प्रशस्तीकरण करती हंै। हमारे समाज में बहुत से लोग अपना जीवन एक लक्ष्मण रेखा के भीतर रह
गुजार रहे हैं। फिर वो चाहे विधवाएं हों या दलित किसान... होली का मूल उद्देश्य यही है कि उन दायरों से उन लोगों को बाहर खींचा जाए और मुख्य धारा से जोड़ यह जता दिया जाए कि
यह 'रंग- आपके लिए भी है।
गौर कीजिए तो ध्यान जायेगा कि हरा रंग किसानों ने दिया है फसलों के रूप में तो रक्त सा लाल हमारे सिपाहियों ने दिया है, तपस्वियों ने गेरुआ तो शांतिदूतों ने सफेद दिया और इन्ही रंगों को मिला हमने वो इंद्रधनुष बना दिया, जो सारा अवसाद दूर कर प्रफुल्लित कर देता है।
होली पर उन लोगों के प्रति आभार व्यक्त करना जरूरी है, जो जाने-अजाने हमें रंग जाते हैं कभी खुशियों के रंग से तो कभी संतुष्टि के भावों से। आगे बढ़ गले लगा गुलाल उड़ाना हमारी कर्तव्यनिष्ठा है हर उस वर्ग के प्रति जिससे हमारा जीवन जुड़ा है।
जुड़ें और जोड़े भी शिप्रा खन्ना, शेफआज इस उत्सव का महत्व और है क्योंकि होली हमें
खुश होने का मतलब सिखाती है। आप मन से खुश हैं, संतुष्ट हैं तो जीवंत हैं। आपका नजरिया बदल जाएगा। हर चीज पॉजिटिव दिखेगी। यदि कोई कहता है कि परिस्थितियों की वजह से या माहौल की वजह से होली नहीं खेलना तो उन्हें ब्रजभूमि और मथुरा की होली देखनी चाहिए। कितनी बेजोड़ है वहां की परंपरा, जो दूर-दराज से लोग उस होली की तरफ खिंचे चले आते हैं। यदि आपको गीली होली नहीं पसंद तो सूखी खेलें। बाजार आपकी सुविधा अनुसार होली खेलने के सारे विकल्प उपलब्ध कराता है। मैं होली पर विशेष व्यंजन बनाती हूं। होली पर इसकी खास अहमियत है। मैं इसका इस्तेमाल दोस्ती बढ़ाने और जिन दोस्तों के बीच मनमुटाव
है उसे जोडऩे के लिए करती हूं।
बुरा ना मानो होली है क्रिस्टिल डिसूजा, अभिनेत्री
यही तो एक फेस्टिवल है जिस दिन आप बच्चों की तरह व्यवहार कर सकते हैं, बच्चे बन सकते हैं। किसी को भी रंग लगाइए और बोल दीजिए 'बुरा ना मानो होली है।- जिसे होली नापसंद है उस पर तो रंगों का डिब्बा खाली कर दीजिए। खाने का भी बहुत मजा रहता है। दिनभर होली खेलो और भागते रहो तो भूख भी जमकर लगती है। दूध-जलेबी खाना अच्छा लगता है। मैं और
मेरे भाई तो जमकर होली खेलते हैं। शक्ल बदल जाती है हमारी। ग्रुप में खेलते हैं तो बॉन्डिग भी बढ़ती है। टोली में होली न खेलो तो होली
का मजा ही क्या। मैं तो होली के दिन फैमिली और फ्रेंड्स के साथ बहुत मस्ती करती हूं।
सार्थक हो होली
- होली तभी सारगर्भित है, जब मूल अवधारणा प्रेम हो। होली में अल्हड़ता तो हो, पर उद्दंडता न
हो।
- होली के दिन अपनी भावनाओं को री-फिल करें, गले लग बधाई दें और उन्हें जरूर सहेज लें, जो जीने का स्पंदन दें।
-होली मस्ती का उत्सव है। ज्यादा संवेदनशील न हों। होली खेलने वालों के मनोभावों को
समझें।
- क्या करें, क्या न करें की लिस्ट के साथ सामाजिक ताना-बाना नहीं बुना जा सकता। अत:
नखरीलापन दूर रखें।
- उन लोगों को अपने आयोजन में जरूर शामिल करें, जो वंचित हैं।
- एक मु_ी रंग जय हिंद के साथ आकाश में जरूर उड़ा दें, देश के उन सिपाहियों-सैनिकों के नाम जो हमें रंगीन बनाए रखते हैं।
डॉ. लकी चतुर्वेदी
साइकोलॉजिकल काउंसलर
व कॉर्पोरेट ट्रेनर