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आग में कुंदन बनी आजाद हूं मैं

आजाद हिंद की आजाद औरत हूं मैं। रूढिय़ों में बंधने की मजबूरी नहीं रही है अब मेरी। परंपराओं का सम्मान करते हुए अपना रास्ता खुद बनाती हूं। अपने मन का काम चुनने की आजादी पा ली है मैंने। नियमों में खुद को जकड़ती नहीं, अपने नियम खुद बनाती हूं मैं।

By Babita kashyapEdited By: Published: Mon, 17 Aug 2015 02:16 PM (IST)Updated: Mon, 17 Aug 2015 02:19 PM (IST)
आग में कुंदन बनी आजाद हूं मैं

आजाद हिंद की आजाद औरत हूं मैं। रूढिय़ों में बंधने की मजबूरी नहीं रही है अब मेरी। परंपराओं का सम्मान करते हुए अपना रास्ता खुद बनाती हूं। अपने मन का काम चुनने की आजादी पा ली है मैंने। नियमों में खुद को जकड़ती नहीं, अपने नियम खुद बनाती हूं मैं। एक झरने की तरह बहती हुई, संकरी राहों और चौड़े पाटों के बीच अपनी राह तलाशती हुई बस निरंतर चलती जाती हूं मैं, चलती जाती हूं मैं। आजादी की इस राह में आई मुश्किलों को जीता है मैंने, समाज की बनाई गिरहों को खोला है मैंने...

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टेसी थॉमस देश की पहली भारतीय महिला हैं, जिन्होंने देश के मिसाइल प्रोजेक्ट को हैंडल किया है। टेसी को 'मिसाइल वूमनÓ के नाम से भी जाना जाता है। वरिष्ठ पुलिस अधिकारी संयुक्ता पराशर के नाम से बोडो उग्रवादी खौफ खाते हैं। बाइकरनी एसोसिएशन की शबनम अकरम कई सालों से अपनी बुलेट सरपट दौड़ा रही हैं। श्रीनगर की युवा सोशल एक्टिविस्ट हैं कुर्तुलीन मसूदी। कंप्यूटर इंजीनियर होकर भी उन्होंने कश्मीर में आतंकवाद से जूझते समाज के लिए काम करना स्वीकार किया है। मैरीकॉम ने बॉक्सर बन कर दुनिया में अपना नाम कमाया। सानिया मिर्जा और साइना नेहवाल ने अपनी मंजिल के सामने किसी की परवाह नहीं की। महिलाओं की आजादी की मिसाल कायम करती इन महिलाओं को कौन नहीं जानता। आज ये कामयाब हैं, पर ऐसा नहीं है कि इनकी राहें बहुत आसान थीं। लेकिन इन्होंने और इनकी जैसी हजारों-लाखों महिलाओं ने हर रुकावट को अपने तरीके से हैंडल किया। अपना रास्ता खुद बनाया और आजाद होकर दूसरी महिलाओं के लिए भी आजादी की राहें खोल दीं। आज महिलाएं सैनिक, सिक्योरिटी गार्ड, स्टेशन कंट्रोलर, ट्रेन ड्राईवर, प्रोफेशनल कैब ड्राइवर, भारी मशीनों की फिटर से लेकर राजमिस्त्री, स्टंट बाइकर, बार टेंडर, डीजे, फायर इंजीनियर तक के प्रोफेशन में लगातार आगे आ रही हैं। इतना ही नहीं इन्होंने रासायनिक, जैविक, परमाणु बम और विकिरण जैसे अनजाने खतरों से बचाव तक के लिए भी कमान संभाल ली है।

कुछ अलग तो करना है

'फीमेल डीजे का मेरा प्रोफेशन ऐसा है कि मुझे हर किसी ने गलत समझा। जब मैं देर रात या अलसुबह शॉर्ट ड्रेस और मेकअप के साथ घर लौटती तो आसपास के लोग यह सोचते कि रात भर बाहर रहती है पता नहीं कहां जाती है? क्या करती है? वे सोचते कि मैं किसी बार में डांस करती हूं। मेरी फैमिली को भी मेरा प्रोफेशन पसंद नहीं था। उनका भी कोई सपोर्ट नहीं था। मेरा कोई गॉडफादर नहीं था। लोअर मिडिल क्लास को बिलॉन्ग करती हूं। मैंने अपनी पॉकेट मनी बचाकर म्यूजिक सीखा। लोगों की हर तरह की नजर का सामना किया, लेकिन मैं सोचती कि आज लड़कियां पायलट बन रही हैं, नेवी में जा रही हैं तो क्या मैं म्यूजिक का एक कंसोल नहीं बजा सकती। बस मुझे सबसे अलग करना था और मैंने किया। फीमेल डीजे बनकर अभी बहुत पॉपुलर तो नहीं हुई लेकिन एक लेवल तक जरूर आ गई हूं मैं।Ó मुंबई की डीजे अपराजिता नंदा को हर किसी ने डीजे बनने से रोका, लेकिन उन्होंने किसी अवरोध की परवाह नहीं की और लोगों को अपनी अंगुली पर नचाने के अपने जुनून को पूरा किया। स्ट्रगल की इंतेहा झेली है अपराजिता ने। एक पार्टी में किसी ने उन पर पैसे फेंक दिए। वह बहुत हर्ट हुईं। सोचा कि इतनी मेहनत के बाद मैं यहां तक पहुंची और मेरे साथ ऐसा सुलूक। इस हरकत से उन्हें शर्मिंदगी महसूस हुई, कुछ दिन का ब्रेक लिया, लेकिन फिर म्यूजिक नंबर्स प्ले करने लग गईं।

चौंकाया फिटर बनकर

झारखंड की तान्या बेक ने जब भारी मशीनों के लिए फिटर की ट्रेनिंग में एडमिशन लिया तो सब चौंक गए। ट्रेनिंग के बाद तान्या जब काम करने स्टील प्लांट में गईं तो वहां भी सारे पुरुष ही थे। शुरू-शुरू में बड़ी-बड़ी मशीनें देखने पर डर भी लगा था कि कैसे कर पाएंगी, लेकिन आज वह बहुत से लड़कों के बीच एक टीचर की तरह खड़ी होती हैं और काम सिखाती भी हैं। वह कहती हैं, 'मैथ की कैलकुलेशन के साथ मशीनों के पार्ट फिट करती हूं और फिटिंग सिखाती भी हूं। पापा नहीं हैं। पूरे घर का खर्चा उठाती हूं। घर की गार्जियन समझी जाती हूं, जो भी पैसा मुझे मिलता है मैं घर भेज देती हूं। यहां मेरा रहना-खाना फ्री है। फैमिली को सपोर्ट करती हूं तो मुझे घर में गार्जियन जैसा आदर मिलता है। आज तो मुझे लगता है कि मैं अच्छा कर सकती हूं और दूसरों को भी सिखा सकती हूं, उनका कॅरियर बना सकती हूं।Ó

जब सड़क बना डाली

राजमिस्त्री ममता सेठ ने जब चुनाई का काम शुरू किया था तो गांव वालों ने बोला कि आप महिलाएं राजमिस्त्री का काम कैसे करेंगी? उनके घर वाले भी राजी नहीं थे, लेकिन जब पति का पैर टूटा और तीन बच्चों को पालने की जिम्मेदारी उन पर आ गई तो उन्होंने राजमिस्त्री का काम शुरू कर दिया। अपने जीवन को अपने हिसाब से बदल कर आत्मविश्वास से भर गई हैं ममता। कहती हैं, 'गांव का स्कूल टूटा तो हमें बुलाया गया। हमने स्कूल की मरम्मत की। सरपंच ने कहा कि अब स्कूल का काम आपको ही दिया जाएगा। इस बार हम लोगों ने सड़क भी बनाई है, जो पति पहले मना करते थे वे अब कहते हैं कि तुम्हें काम पर जाना है। जाओ जल्दी से तैयार हो जाओ...।Ó

मुझे लड़का

पसंद नहीं

'मेरी बुआ की लड़की पूजा का रिश्ता आया है। लड़का पुलिस में है। पूजा भी पढ़ी-लिखी है। सरकारी नौकर है। उसने बात की लड़के से और मना कर दिया कि उसे लड़का पसंद नहीं है। कहती हैं कि लड़का बुरी आदतों वाला नहीं होना चाहिए। मैं खुद कमाती हूं, मैं घर चला लूंगी।Ó बरतनों पर हाथ चलाती कामवाली बबिता बोले जा रही थी। बबिता की बातें बता रही थीं कि लोअर मिडिल क्लास में भी लड़कियों ने खुद को अपने फैसले लेने के लिए आजाद कर लिया है। और तो और जो मां कल तक कहती थीं कि शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा, वह भी अब अपनी बेटी के फैसले को सही मानती हैं, अपना फैसला थोपती नहीं, बल्कि उसका हौसला बढ़ाती है।

एटीट्यूड झेलने पड़े

इरा सिंघल, आईएएस टॉपर

जब छोटी थी तो मुझे क्लैफ पैलेट सिंड्रोम था। उसमें नेजल वॉइस होती है। नर्सरी स्कूल के एडमिशन में जो बच्चे मेरे साथ एडमिशन ले रहे थे मैंने उनसे अच्छा परफॉर्म किया, लेकिन मेरी नेजल वॉइस थी तो स्कूल ने मुझे रिजेक्ट कर दिया। मेरे पापा राजेंद्र सिंघल को काफी मेहनत करनी पड़ी। स्कूल वालों को रिक्वेस्ट करनी पड़ी। कई-कई टेस्ट दिलाने पड़े तब जाकर मुझे लिया गया। स्कूल में मैं हमेशा टॉप थ्री में रही। मेरा ऑपरेशन भी हुआ। इसके बाद जब हम दिल्ली आए तो पापा ने मॉडर्न स्कूल बाराखंबा में ट्राई किया। वहां की प्रिंसिपल ने कहा कि ऐसे बच्चों को तो आपको स्पेशल स्कूल्स में डालना चाहिए। यह नॉर्मल स्कूल्स के लिए नहीं है। ऐसे एटीट्यूड झेलने पड़े। सोचिए जो बच्चे अलग हैं, उन्हें स्पेशल स्कूल में डालेंगे तो वे नॉर्मल सोसायटी में कैसे फिट होंगे? इसका सॉल्यूशन सिर्फ यही है नॉर्मल स्कूल सबके लिए फिट हो। और तो और नौकरी के लिए मेडिकली अनफिट करार दे दिया गया। तब मैंने कैट यानी सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाया। जीत मेरी हुई और मुझे इंडियन रेवेन्यू सर्विसेस की ट्रेनिंग करने हैदराबाद भेजा गया तो मुश्किलें तो आईं ही। मेरा मानना है कि किसी भी चीज से घबराइए मत। अगर आस-पास के लोग कह भी रहे हैं कि आप किसी से कम हैं तो उनकी मत सुनिए।

जब पहली बार

लिखा गया 'मिसÓ

हर्षिनी कान्हेकर,

सीनियर फायर इंजीनियर मुंबई

मुझे हमेशा से यूनिफॉर्म सर्विसेज का क्रेज था। जब नागपुर के नेशनल फायर सर्विस कॉलेज में मैं एडमिशन लेने गई तो हर कोई अचरज से मुझे देखने लगा। उन्हें लगा कि गलती से कोई लड़की इस कॉलेज में आ गई है। 1956 से यहां सिर्फ लड़के ही पढ़ते थे। यहां तक कि कॉलेज के लोग कहने लगे कि अगर वर्दी का शौक है तो एयर फोर्स में जाइए। तब मैंने ठान लिया कि मैं तो यहीं पढ़ूंगी। लिखित परीक्षा मैंने पास कर ली। फाइनल इंटरव्यू का टाइम आया तो लोग रूम में अंदर झांक रहे थे कि एक लड़की फायर इंजीनियर के कोर्स के लिए इंटरव्यू देने आई है। इंटरव्यू में भी मुझसे पूछा गया कि आप फेल हो गईं तो? मैंने कहा कि फेल होने के लिए भी तो चांस दीजिए। मैं खुद को प्रूव करूंगी। जब हम वापस घर आए तो पता चला कि लिस्ट में नाम आ गया है। वह एक हिस्टोरिकल मोमेंट था। रिजल्ट में पहली बार मिस शब्द लिखा गया था। अखबारों की कॉल आने लगी, जो मुझ पर हंस रहे थे वे शर्मिंदा हुए और उनका रवैया बदल गया। अब ओएनजीसी मुंबई में सीनियर फायर ऑफिसर हूं। अपनी मर्जी से जी रही हूं, लेकिन मेहनत बहुत की है मैंने। बहुत संभल कर चलती हूं। किसी को बोलने का मौका नहीं देती।

दोस्त कहते, तुझसे नहीं होगा

अपराजिता नंदा, डीजे

इंसान कोई भी काम करे, लेकिन दिल से करे तो वह थोड़े में भी खुश रह सकता है। मेरी क्लास में 12 बच्चे म्यूजिक सीख रहे थे। उनके पास हाई-फाई लैपटॉप और मोबाइल होते। मैं लोअर मिडिल क्लास से थी। मेरे पास छोटा सा मोबाइल था। अंग्रेजी गानों के बारे में भी पता नहीं था। मेरे दोस्त कहते कि तू छोड़ दे यह फील्ड। तुझसे नहीं होगा। मैं रेलवे स्टेशन पर बैठकर रोती, लेकिन मुझे करना था। हालांकि आज वे ग्यारह लोग फील्ड छोड़ चुके हैं और मैं अकेली सर्वाइव कर रही हूं, बल्कि एक लेवल तक पहुंच गई हूं। अब तो मेरे दोस्त फोन करते हैं कि अपराजिता हमारी भी कहीं जॉब लगवा दे। डीजे का काम आसान नहीं है। यहां पब्लिक का माइंड खुद से पढऩा होता है। हर दिन नई जगह, नया क्राउड और नए माइंड। पब्लिक के माइंड को पकड़ पाना टफ है।

स्ट्रगल के बाद यहां तक पहुंची

भारती सिंह, स्टैंडअप कॉमेडियन

मैं बचपन से ही मिमिक्री करती थी। मैंने लाफ्टर चैलेंज का ऑडिशन दिया और शॉर्ट लिस्ट हो गई। जब मुंबई आने की बात आई तो रिश्तेदारों के ताने शुरू हो गए। सब कहने लगे कि हमें पता है मुंबई में पैसे कैसे कमाए जाते हैं। अपने रिश्तेदारों का काफी विरोध झेलना पड़ा, लेकिन मां का सपोर्ट था और खुद की काबिलियत पर भरोसा। बहुत स्ट्रगल के बाद यहां तक पहुंची हूं।

काफी परेशान किया कमेंट्स ने

अनम हाशिम, स्टंट बाइकर

एक लड़की का फ्रीस्टाइल बाइकर होना और मोटर स्पोट्र्स फील्ड में आना किसे पसंद आता? और फिर मैं मुस्लिम फैमिली से हूं तो स्टंट बाइकर बनने के मेरे पैशन को कौन सपोर्टंम उम्र में काफी अनुभव किए हैं मैंने। अगर कोई लड़का स्टंट करता है तो उसे दमदार कहते हैं, लेकिन अगर लड़की करे तो कहेंगे कि इसका तो दिमाग ठीक नहीं है। जब लखनऊ से पुणे आई थी तो लोगों की बातें सबसे ज्यादा आहत करती थीं। किसी ने कहा कि जब हाथ-पैर टूटेंगे तो उठ भी नहीं पाएगी। किसी ने कहा इसकी प्रोग्रेस बहुत स्लो है। अटकी हुई है एक ही जगह। लोगों से ज्यादा बात नहीं करती हूं तो कहते हैं बड़ा एटीट्यूड है इसमें। इस तरह के कमेंट्स ने काफी परेशान किया, लेकिन मैं अपने रास्ते से डिगी नहीं। एक एक्सीडेंट भी हुआ, कई टांके भी आए, लेकिन पैशन बरकरार रहा। अब जब इंडिया में इकलौती स्टंट बाइकर हूं तो हर कोई मुझे एप्रिशिएट करता है। सुर बदल गए हैं लोगों के। फिजिकल और मेंटल फिटनेस बनाए रखना एक चैलेंज है स्टंट बाइकर के लिए। जिम में वर्कआउट करती हूं, योग व रनिंग का रोज का रूटीन है। स्टंट की प्रैक्टिस करनी होती है, अपडेटेड रहना होता है। घर से बाहर हूं तो अपना खाना-पीना, रहना-सहना देखना होता है। काफी मेहनत लगती है मोटर स्पोट्र्स में, लेकिन जब पैशन सामने आता है तो हेक्टिक शेड्यूल शुरू हो जाता है। अब तो स्टंट के पाट्र्स बना कर सप्लाई करना भी शुरू किया है। 'स्टंट टेकÓ नाम से अपनी कंपनी के जरिए हम स्टंट पाट्र्स सप्लाई करते हैं।

यशा माथुर


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