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Interview: पिछला पदक तब आया था जब मैं पैदा भी नहीं हुआ था - मनप्रीत सिंह

Tokyo Olympics 2020 मनप्रीत का मानना है कि उनके आने से टीम में जादू की तरह बदलाव आया है। जिससे हम पदक जीतने में कामयाब रहे। टोक्यो से पदक जीतकर लौटे मनप्रीत सिंह से शुभम पांडेय ने खास बातचीत की।

By Viplove KumarEdited By: Published: Wed, 11 Aug 2021 05:47 AM (IST)Updated: Wed, 11 Aug 2021 03:40 PM (IST)
Interview: पिछला पदक तब आया था जब मैं पैदा भी नहीं हुआ था - मनप्रीत सिंह
भारतीय हाकी टीम के खिलाड़ी- फोटो ट्विटर पेज

शुभम पांडेय। मनप्रीत सिंह की कप्तानी में भारतीय पुरुष हाकी टीम ने 41 साल बाद ओलिंपिक में पदक जीतकर अपना खोया हुआ गौरव प्राप्त किया। जिसके पीछे मनप्रीत ने आस्ट्रेलियाई मूल के भारतीय कोच ग्राहम रीड का आभार व्यक्त किया। मनप्रीत का मानना है कि उनके आने से टीम में जादू की तरह बदलाव आया है। जिससे हम पदक जीतने में कामयाब रहे। टोक्यो से पदक जीतकर लौटे मनप्रीत सिंह से शुभम पांडेय ने खास बातचीत की।

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मनप्रीत आपने बतौर कप्तान देश को 41 साल बाद हाकी में कांस्य पदक जिताया। इसे कैसे देखते हैं?

बहुत ही ज्यादा खुशी महसूस हो रही है क्योंकि पिछला पदक (1980 मास्को ओलिंपिक स्वर्ण पदक) 41 साल पहले आया था और तब मैं जन्मा भी नहीं था। तो उस खुशी के पल के बारे में तो मैं नहीं जानता हूं लेकिन हां, अभी पदक हासिल करके सभी बहुत खुश हैं। यह मेरा तीसरा ओलिंपिक था, लंदन 2012 एक तरह से काफी खराब रहा क्योंकि हमने सबसे निचला स्थान हासिल किया था। उस समय से निकल कर 2016 रियो ओलिंपिक में क्वार्टर फाइनल में हारे। जिसके बाद तीसरे ओलिंपिक में पदक लाने से काफी गौरवान्वित महसूस हो रहा है।

2012 के समय को भारतीय हाकी का काला समय भी कहा जाता है। उसके बाद आपके सामने ही पिछले आठ वर्षो में भारतीय हाकी पूरी तरह से बदलती चली गई। इसके बारे में क्या कहना चाहेंगे?

2012 का समय वाकई काफी खराब रहा था और हार के बाद जितना खराब एक एथलीट को लगता है। मुझे नहीं लगता है कि शायद ही किसी को लगता होगा। क्योंकि वह पूरी मेहनत करता है और जब ऐसा प्रदर्शन होता है तो काफी मनोबल भी टूट जाता है। जिसके बाद हमने ठान लिया कि अब हमें आगे अच्छा करना है। इसकी शुरुआत 2014 एशियन गेम्स से शुरू हुई क्योंकि उसमें हमने स्वर्ण पदक हासिल किया फिर राष्ट्रमंडल खेलों में हमने रजत पदक जीता। इसके बाद 2016 में हमने चैंपियनशिप ट्राफी में भी रजत पदक जीता। इन टूर्नामेंट से टीम का आत्मविश्वास लौटा और हमारी टीम में कई सुधार भी हुए। 

2018 विश्व कप में हमें नीदरलैंड्स से हार मिली, उसके बाद ओलिंपिक के सेमीफाइनल में बेल्जियम से हार मिली। इस तरह की उच्च टीमों के खिलाफ क्या अभी हमारी टीम कमजोर है? 

अभी कुल मिलाकर देखा जाए तो टीम ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। जब सभी पूरी तरह से जश्न मनाने के बाद वापस अभ्यास शिविर में लौटेंगे तो हम वीडियो विश्लेषण के जरिये पता लगाएंगे कि कहां पर हमसे गलतियां हुईं तो अभी हमें यही नहीं रुकना है। हमारी रणनीति बस यही है कि कैसे हमें आगे बढ़ना है और टीम की कमजोरियों को दूर करके आगामी ओलिंपिक में पदक का रंग बदलना है।

-ओलिंपिक के ग्रुप मैच में आस्ट्रेलिया ने भारत को 7-1 से हराया। उसके बाद आपने टीम को कोच के साथ मिलकर कैसे संभाला?-

जब हम बुरी तरह हारे थे तो उस समय पूरी टीम निराश थी, लेकिन अच्छी बात यह थी कि वह नाकआउट मैच नहीं था। हमने अपने खिलाडि़यों को समझाया कि अगर अब भी हम अपने आगामी तीन मैचों को जीत लेते हैं तो ग्रुप में दूसरे स्थान पर रहेंगे। हमने आस्ट्रेलिया वाले मैच का विश्लेषण किया तो पता चला कि इतना भी बुरा नहीं खेले थे। वह दिन आस्ट्रेलिया का था और गोल दागते चले जा रहे थे। हमारी यही मानसिकता थी कि हमने अभी तक अपनी सर्वश्रेष्ठ हाकी नहीं खेली है। -

साल 2018 में टीम के कोच हरेंद्र सिंह थे, लेकिन उसके बाद ग्राहम रीड को कोच बनाया गया। इसके बारे में क्या कहना चाहेंगे?-

ग्राहम सर का यही मानना था कि भारतीय हाकी के पास कई जादुई खिलाड़ी हैं, लेकिन उनके होने से भी टीम को नतीजा नहीं मिल पा रहा है। हम कई बार विरोधियों के खेमे में जा रहे थे, लेकिन वहां से गोल नहीं कर पा रहे थे। इसमें काफी सुधार हुआ। ओलिंपिक में भले ही हम कम मौकों पर विरोधियों के खेमे में आक्रमण के लिए गए हो, लेकिन हमने अधिक से अधिक मौकों को भुनाया है। यह एक तरह का जादू उनके आने से हमारे अंदर आया है।


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