रानी रामपाल ने रच दिया इतिहास, पहली बार किसी महिला हॉकी खिलाड़ी मिलेगा खेल रत्न
रानी रामपाल भारत की महिला हॉकी खिलाड़ी बनने वाली हैं जिनको देश के सर्वोच्च खेल सम्मान यानी खेल रत्न से सम्मानित किया जाएगा।
नई दिल्ली, उमेश राजपूत। इतिहास में ऐसा पहली बार होने जा रहा है जब किसी भारतीय महिला हॉकी खिलाड़ी को भारत के खेल जगत के सर्वोच्च सम्मान खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। यह इतिहास रचने वाली खिलाड़ी बनी हैं भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल। उन्हें इस सम्मान को दिए जाने की वजह उनका कप्तान और खिलाड़ी के रूप में बेहतरीन प्रदर्शन रहा है।
रानी रामपाल की अगुआई में भारतीय टीम ने महिला एशियाई कप 2017 में ऐतिहासिक जीत दर्ज की और 2018 में एशियन गेम्स में रजत पदक जीता। पिछले साल भारत ने एफआइएच सीरीज फाइनल्स जीता था, जो टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफायर था। रानी ने इसमें अहम भूमिका निभाई और निर्णायक गोल किया, जिससे भारत को टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने में मदद मिली। उन्हें टूर्नामेंट की सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी चुना गया था।
इतना ही नहीं, भारतीय महिला टीम इस बीच अपनी सर्वश्रेष्ठ नौवीं रैंकिंग पर भी पहुंची। अब तक 241 मैच खेल चुकीं रानी ने 118 गोल किए हैं। इस बार रानी सहित कुल तीन महिलाओं को खेल रत्न पुरस्कार दिया जाएगा। इससे पहले कुल 14 महिलाओं को यह पुरस्कार मिल चुका है। इस तरह अब यह पुरस्कार पाने वाली महिला खिलाड़ियों की संख्या 17 हो जाएगी। हालांकि, रानी खेल रत्न से सम्मानित होने वाली पहली महिला हॉकी खिलाड़ी और कुल तीसरी हॉकी खिलाड़ी हैं।
हॉकी खिलाड़ियों में रानी से पहले धनराज पिल्लै (1999-2000) और सरदार सिंह (2017) को यह पुरस्कार मिल चुका है। कोरोना वायरस की वजह से साल 2020 बेशक पूरी दुनिया के साथ-साथ खेल जगत के लिए अच्छा साबित नहीं हो रहा है, लेकिन रानी के लिए यह साल बेहद यादगार बनता जा रहा है। रानी इस साल की शुरुआत में 30 जनवरी को प्रतिष्ठित ‘वर्ल्ड गेम्स एथलीट ऑफ द ईयर’ अवॉर्ड जीतने वाली विश्व की पहली हॉकी खिलाड़ी बनी थीं। इससे पहले इसी साल उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
साधारण परिवार से आईं
चार दिसंबर, 1994 को जन्मीं रानी बहुत ही साधारण परिवार से आती हैं। घर चलाने के लिए उनके पिता तांगा चलाते थे और ईंटें बेचते थे। बारिश के दिनों में उनके कच्चे घर में पानी भर जाता था। रानी ने छह साल की उम्र में हॉकी खेलना शुरू किया था। एक बार उन्होंने बताया था कि वह ऐसी जगह पर पली-बढ़ी हैं जहां महिलाओं और लड़कियों को घर की चारदीवारी में रखा जाता है।
इसलिए जब उन्होंने हॉकी खेलने की इच्छा जाहिर की तो माता-पिता और रिश्तेदारों ने साथ नहीं दिया। उन्हें लगता था कि खेल में करियर नहीं बन सकता, और लड़कियों के लिए तो बिल्कुल भी नहीं। रानी ने जैसे-तैसे हॉकी खेलने के लिए माता-पिता को मना लिया, लेकिन उनके रिश्तेदार ताने देते थे। अब वही लोग उनकी पीठ थपथपाते हैं और उनके घर लौटने पर बधाई देने आते हैं।
कोच बलदेव ने दिया साथ
इस पूरे मुश्किल समय में अगर कोई उनके साथ खड़ा रहा, तो वह थे उनके कोच सरदार बलदेव सिंह। गुरु द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित बलदेव सिंह की देख-रेख में ही रानी ने शाहबाद हॉकी अकादमी में अपनी ट्रेनिंग की शुरुआत की थी। बलदेव ने ही रानी के लिए हॉकी किट खरीदी, जूते खरीदे और उन्हें हर तरह की मदद की। जब वह चंडीगढ़ में ट्रेनिंग ले रही थीं तब कोच बलदेव ने उनके रहने की व्यवस्था अपने ही घर पर करवाई। साथ ही अपनी पत्नी के साथ मिलकर रानी के अच्छे खान-पान की भी जिम्मेदारी उठाई।
रानी रामपाल ने सिर्फ 15 साल की उम्र में सबसे युवा भारतीय खिलाड़ी के रूप में विश्व कप में हिस्सा लिया था। वह टूर्नामेंट की शीर्ष फील्ड गोल स्कोरर रही थीं, जिसके लिए उन्हें टूर्नामेंट की सर्वश्रेष्ठ युवा खिलाड़ी चुना गया था।