Move to Jagran APP

देश का मान बढ़ानी वाली खिलाड़ी का हो रहा है अपमान, इस चीज़ के लिए खा रही है दर-दर की ठोकरें

इस खिलाड़ी ने दिवंगत दादा की इच्छा पूरी की और खेल के मैदान में बुलंदियां भी छुईं।

By Pradeep SehgalEdited By: Published: Wed, 08 Nov 2017 11:49 AM (IST)Updated: Wed, 08 Nov 2017 11:50 AM (IST)
देश का मान बढ़ानी वाली खिलाड़ी का हो रहा है अपमान, इस चीज़ के लिए खा रही है दर-दर की ठोकरें
देश का मान बढ़ानी वाली खिलाड़ी का हो रहा है अपमान, इस चीज़ के लिए खा रही है दर-दर की ठोकरें

नई दिल्ली, पीटीआइ। उसके दादाजी चाहते थे कि उनकी पोती हाथों में स्टिक थामे। देश ही नहीं दुनिया में भी उसका नाम हो। दिवंगत दादा की इच्छा पूरी करने के लिए उसने ऐसा ही किया और खेल के मैदान में बुलंदियां भी छुईं। तमाम उपलब्धियां हासिल करने के बावजूद निजी जीवन में वह पैसों के लिए आज भी माता-पिता पर निर्भर है। उसकी यह शानदार उपलब्धियां उसे नौकरी नहीं दिला पाईं। वो भी उस राज्य में जहां ‘मेडल लाओ, नौकरी पाओ’ की योजना है। जी हां यह कहानी है भारतीय महिला हॉकी टीम की गोलकीपर सविता पूनिया की।

loksabha election banner

हरियाणा की इस बिटिया ने रविवार को जापान में चीन के खिलाफ एशिया कप फाइनल में निर्णायक पेनाल्टी रोककर 13 साल बाद भारत को एशिया का सरताज बनाने में अहम भूमिका निभाई। वह कहती हैं कि टीम की जीत में योगदान कर मैं बहुत खुश हूं। मैं देश और टीम को और अधिक उपलब्धियां दिलाने के लिए कड़ी मेहनत करूंगी। बेरोजगारी इसके आड़े नहीं आएगी। दिवंगत महिंदर सिंह की पोती सविता ने 2008 में भारतीय महिला हॉकी टीम में पदार्पण किया था व जापान में करियर का 150वां अंतरराष्ट्रीय मैच खेला।

खर्च के लिए माता-पिता पर निर्भर

सिरसा की इस गोलकीपर ने कहा, ‘मेरी उम्र 27 बरस की होने वाली है और पिछले नौ साल से मैं नौकरी मिलने का इंतजार कर रही हूं। हरियाणा सरकार की ‘मेडल लाओ, नौकरी पाओ’ योजना से आस बंधी थी पर हिस्से आए सिर्फ आश्वासन ही। मुझे आज भी अपने खर्च के लिए माता-पिता से पैसे लेने पड़ते हैं, जबकि इस उम्र में मुङो उनकी देखभाल करनी चाहिए। हर समय दिमाग में यही टेंशन रहती है कि मेरे पास नौकरी नहीं है। मेरी मां भी इससे चिंतित रहती हैं। मैं इसका असर अपने प्रदर्शन पर नहीं पड़ने देती, लेकिन हर जीत पर उम्मीद बंधती है और फिर टूट जाती है। यह सिलसिला वर्षो से चल रहा है।’ एशिया कप 2013 में भी मलेशिया के खिलाफ कांसे के मुकाबले में दो अहम पेनाल्टी बचाकर देश को पदक दिलाने वाली सविता के पिता फार्मासिस्ट हैं।

फिर बंधी उम्मीद

सविता कहती हैं कि रियो ओलंपिक के बाद भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) में भी हॉकी कोचिंग के लिए आवेदन भरा था लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं आया। अब एशिया कप में जीत के बाद फिर उम्मीद बंधी है कि खुद ओलंपिक पदक विजेता रहे खेलमंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ मेरी परिस्थिति को समझेंगे और मुझे जल्द ही कोई नौकरी मिलेगी।

क्रिकेट की खबरों के लिए यहां क्लिक करें

अन्य खेलों की खबरों के लिए यहां क्लिक करें            


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.