अशोक ध्यानचंद बोले- क्या भारत रत्न पर एक ही परिवार के लोगों का हक है?
हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद के बेटे अशोक कुमार को आज भी उनके भारत सम्मान मिलने की आस है लेकिन हर बार उनको निराशा मिलती है।
चंडीगढ़, विकास शर्मा। भारत रत्न पर क्या एक ही परिवार के लोगों का हक है? भारत रत्न उन लोगों को देने के लिए है जिन्होंने तिरंगे की शान को बढ़ाया है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में भारत रत्न अपने राजनीतिक लाभ को देखते हुए दिए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री को इस विषय में सोचना होगा। यह कहना है हॉकी के जादूगर ध्यानचंद के बेटे अशोक ध्यानचंद का। वह प्ले राइट में हिस्सा लेने के लिए चंडीगढ़ पहुंचे थे।
सन 1975 की विश्व विजेता हॉकी टीम के सदस्य रहे अर्जुन अवॉर्डी अशोक ध्यानचंद ने प्ले राइट के हॉकी-70 शो सेशन में हिस्सा लिया। उनके साथ विश्व विजेता टीम के कप्तान पद्मश्री अजीत पाल सिंह और वरिष्ठ पत्रकार प्रभजोत पॉल सिंह भी मौजूद रहे।
इस सेशन के बाद जब अशोक से उनके पिता ध्यानचंद को भारत रत्न न दिए जाने के विषय पर पूछा गया तो उन्होंने बताया कि 1936 वर्ल्डकप में जर्मनी के खिलाफ मैच में जब भारतीय टीम ने 6-0 की बढ़त हासिल कर ली थी, तो हिटलर आधे मैच में ही उठकर गया था। ध्यानचंद के खेल से हिटलर इतना प्रभावित हुआ कि ध्यानचंद को जर्मन-सेना में शामिल होने का प्रस्ताव कर दिया था। उन्होंने कहा कि यह ध्यानचंद का जादू था कि हॉकी में भारतीय टीम ने वर्षों तक अपना रसूख बनाए रखा।
हर बार होती है उनके नाम की अनदेखी
अशोक ध्यानचंद ने कहा कि सरकार ने 1956 में ध्यानचंद की उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें देश का पहला पद्म विभूषण अवॉर्ड दिया। उनके निधन के 10 दिन बाद सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट जारी कर किया था। देश में कई स्टेडियम उनके नाम से हैं। उनके जन्मदिन पर हर साल नेशनल स्पोर्ट्स-डे मनाया जाता है। उनके परिवार के पास 13 इंटरनेशनल और छह ओलंपिक मेडल हैं। लंदन ओलंपिक 2012 के दौरान लंदन में ध्यानचंद के नाम पर तीन मेट्रो स्टेशन के नाम रखे गए थे, इतना ही नहीं जिस स्टेडियम में हॉकी के मुकाबले हुए उसका नाम ध्यानचंद के नाम पर था। लोग चाहते हैं कि ध्यानचंद को भारत रत्न मिले, लेकिन सरकार जब लिस्ट जारी करती है तो उसमें उनका नाम नहीं होता।
खिलाड़ियों को मानसिक रूप से सशक्त बनाने की जरूरत
अशोक ध्यानचंद ने कहा कि 1970 के बाद हॉकी के खेल में तेजी से बदलाव आया है। हमारे देश में ज्यादा खिलाड़ी ग्रामीण इलाकों से आते हैं, यह खिलाड़ी जब इंटरनेशनल स्तर के टूर्नामेंट में खेलते हैं तो वह मैच के मानसिक दबाव को नहीं झेल पाते, नतीजन अच्छी टीम होने के बावजूद हम टूर्नामेंट में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं। इसलिए खिलाडि़यों को मानसिक तौर पर मजबूत बनाने की सख्त जरूरत है, ताकि वह मैच से पहले और मैच के दौरान नर्वस न हो।