Move to Jagran APP

जिंदा शहीद पीर का गुरुद्वारा: यहां हाेता है सच और झूठ का फैसला, पल में सुलटते हैं थानों के मामले

आज भले ही सच उगलवाने के लिए नार्को टेस्ट या लाई डिटेक्टर का इस्तेमाल किया जाता हो लेकिन इस गुरुद्वारे में सच और झूठ का फैसला होता है।

By Babita kashyapEdited By: Published: Wed, 05 Jun 2019 12:53 PM (IST)Updated: Wed, 05 Jun 2019 12:53 PM (IST)
जिंदा शहीद पीर का गुरुद्वारा: यहां हाेता है सच और झूठ का फैसला, पल में सुलटते हैं थानों के मामले
जिंदा शहीद पीर का गुरुद्वारा: यहां हाेता है सच और झूठ का फैसला, पल में सुलटते हैं थानों के मामले

गगरेट, अविनाश विद्रोही। सच को बढ़ाया जाए या कम किया जाए तो सच नहीं रहता लेकिन झूठ की कोई इंतिहा नहीं होती। बेशक दुनिया चांद पर पहुंच गई, सच उगलवाने के लिए नार्को टेस्ट या लाई डिटेक्टर आदि इस्तेमाल किए जाते हैं। यहां गुरुद्वारे में सच और झूठ का फैसला होता है। कुछ के लिए यह अंधविश्वास हो सकता है लेकिन कुछ के लिए यह आस्था का प्रश्न है। हिमाचल से सटे पंजाब के एक गुरुद्वारे में झूठ और सच का फैसला होता है। आलम यह है की जिंदा शहीद पीर के नूरपुर बेदी, जिला रोपड़ स्थित गुरुद्वारे का संचालन और देखरेख पंजाब पुलिस करती है। 

loksabha election banner

थाना नूरपुर बेदी के अलावा पटियाला, फतेहगढ़ साहिब, मोहाली, नवांशहर, जालंधर, नंगल, भाखड़ा और हिमाचल के कुछ मामले भी इस स्थान पर इंसाफ लेते हैं। कानूनी मामले तो पुलिस कानून के दायरे में ही सुलझाने की कोशिश करती है। लेकिन पंचायत स्तर के मामले, जो विवाद बढ़ने पर थाने तक जाते हैं, उनमें पुलिस भी गुरुद्वारे की शरण में जाती है। 

उदाहरण के लिए दिलचस्प मामला है गगरेट ट्रक यूनियन का। ट्रक यूनियन में ट्रक सिर्फ सदस्य ही संचालित कर सकते हैं। बाहरी व्यक्ति को यूनियन में ट्रक शामिल करने की इजाजत नहीं है। कुछ पूंजीपति यूनियन के सदस्यों के नाम से ट्रक खरीद कर उन्हें उनके नाम से चलाते हैं, ताकि वे सामने न आएं। पीर बाबा जिंदा शहीद गुरुद्वारा नूरपुर बेदी के सामने यूनियन के सदस्य अपने-अपने ट्रकों की आरसी या पंजीकरण प्रमाणपत्र रख देते हैं। उन्हें कहा जाता है कि ट्रक आपका है तो आरसी उठा लो, नहीं है तो रहने दो। जानकारों के अनुसार, आरसी वही उठाता है, जिसकी हो। 

इतिहास पर हैं परतें

एक पाठी कहते हैं कि इस स्थान के इतिहास के बारे में स्पष्ट रूप से कहना मुमकिन नहीं। एक इतिहासकार काहन सिंह नाभा की किताब ‘महानकोष’ को इसी स्थान से जोड़ा जाता है। किताब के अनुसार मुगल श्री गुरु गोबिंद सिंह के पीछे पड़े थे। मुगल भाइयों गनी खान व नबी खान ने श्री गुरु गोबिंद सिंह को पहचान लिया था। तब यहां के पीर ने श्री गुरु गोबिंद सिंह के पक्ष में झूठ बोला कि यह गुरु गोबिंद सिंह नहीं हैं। पीर की बात दोनों भाइयों ने मान ली। लेकिन पीर ने फिर गुरु गोबिंद सिंह से कहा, ‘महाराज। मैंने आपको बचा लिया लेकिन मुझे झूठ बोलने का अपराधबोध हो गया है।’ तब श्री गुरु गोबिंद सिंह ने कहा कि आपने मेरी गवाही दी है और जिंदा ही समाधि ले ली है, इसलिए आपको जिंदा शहीद पीर के नाम से जाना जाएगा। आज के बाद आप झूठ और सच का फैसला करने वाले पीर के रूप में जाने जाएंगे।

सिख-मुस्लिम एकता का प्रतीक

सिख धर्म के अनुसार सिख समाज सिर्फ गुरुग्रंथ साहिब का पाठ करते हैं। वैसे तो किसी भी गुरुद्वारे में किसी भी तरह की मूर्ति पूजा वर्जित है लेकिन इस गुरुद्वारे में एक तरफ गुरु ग्रंथ साहिब हैं, दूसरी तरफ जिंदा शहीद पीर की मूर्ति है। मान्यता पूरी होने पर गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ किया जाता है।

गुरुद्वारे से जुड़े अनेक मामले

इस गुरुद्वारे से जुड़े अनेक मामले हैं जिनमें लोगों ने कसम खाई और उन्हें सच झूठ का फैसला भी करवाया। फतेहगढ़ साहिब का एक मामला था जिसमें दो भाई एक ट्रैक्टर को लेकर आपस में उलझ गए थे। अंत में मामला जिंदा शहीद पीर गुरुद्वारे में पहुंचा। वहां पर बड़े भाई ने चाबी रख दी और कहा कि यदि ट्रैक्टर तेरा है तो चाबी उठा ले, लेकिन छोटे भाई ने चाबी नहीं उठाई। एक साल से लंबित मामला तत्काल खत्म हो गया। हिमाचल की नगर पंचायत संतोषगढ़ में जनप्रतिनिधियों ने पद बंटवारे को लेकर आपस में समझौता किया हुआ था। एक पक्ष मुकरा लेकिन यहां आने पर उसने अपनी गलती स्वीकार कर ली।

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.