ईको फ्रेंडली बने बप्पा, विसर्जन में प्रदूषित नहीं होंगे जलस्त्रोत
श्रीगणेश चतुर्थी मनाने के लिए श्रद्धालु तैयारियां करने में जुटे हैं। महज चार दिन ही शेष बचें हैं।
राजेश डढवाल, ऊना
श्रीगणेश चतुर्थी मनाने के लिए श्रद्धालु तैयारियां करने में जुटे हैं। महज चार दिन ही शेष बचें हैं। मेहमान बनकर घर में विराजमान हुए गणपति बप्पा को विदा करने में। गणपति बप्पा की विदाई (विसर्जन) पर हर बार की तरह मन भावुक जरूर होगा, पर इस बार विदाई के बाद पर्यावरण को लेकर गणेश जी की मूर्तियां ईको फ्रेंडली रहेंगी।
कारण यह कि इस बार जिला में गणपति बप्पा की ईको फ्रेंडली मूर्तियों को स्थापित करने का नया ट्रेंड नजर आया है। ऊना में दशकों से सिंथेटिक रंगों से युक्त पीओपी से बनी मूर्तियों का ही ट्रेंड देखने को मिला करता था लेकिन इस बार ईको फ्रेंडली गणेश भक्तों को अपना आशीर्वाद के साथ साथ पर्यावरण को बचाने में भी सहायता करेंगे। ईको फ्रेंडली मूर्तियां 50 से लेकर 1500 रुपये तक में बिक रही हैं। पिछले सालों में यही मूर्तियां दो से ढाई गुणा अधिक दामों में बिकती थीं।
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पुराणों में भी मिट्टी के गणेश का उल्लेख
गणेश प्रतिमा के पूजन से नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है। मिट्टी में स्वाभाविक पवित्रता होती है। मिट्टी की यानी पार्थिव गणेश प्रतिमा प्रकृति के पांच मुख्य तत्व यानी भूमि, जल, वायु, अग्नि और आकाश बने होते हैं। इसलिए इसमें भगवान का आह्वान और उनकी प्रतिष्ठा करने से कार्यसिद्धि होती है। वहीं प्लास्टर ऑफ पेरिस और अन्य केमिकल्स से बनी गणेश प्रतिमा में भगवान का अंश नहीं आ पाता और इनसे नदियां अपवित्र होती हैं। ब्रह्मपुराण और महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार नदियों को प्रदूषित करने से दोष लगता है।
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मिट्टी के ही गणेश जी क्यों
पुराणों में भगवान श्रीगणेश के जन्म की कथा में बताया गया है कि माता पार्वती ने पुत्र की कामना से मिट्टी का ही पुतला बनाया था, फिर शिवजी ने उसमें प्राण संचार किए। वो ही भगवान गणेश थे। शिव महापुराण में धातु की अपेक्षा पार्थिव प्रतिमा को महत्व दिया है।
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होना क्या चाहिए
जलीय जीवन को बचाने के लिए ईको फ्रेंडली मूर्तियां बनाई जाएं। ये मूर्तियां पेपर पल्प से बनाई जाएं। मूर्तियों पर नेचुरल गम का उपयोग हो। ऊना मलाहत रोड पर इस प्रकार की ईको फ्रेंडली मूर्तियों का निर्माण एक प्रजापत परिवार द्वारा किया जा रहा है।
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मिट्टी के गणेश इसलिए जरूरी
पर्यावरणविद् एवं आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. राजेश ने बताया प्लास्टर ऑफ पेरिस, ¨सथेटिक कलर, जहरीले पदार्थो से बनी मूर्तियां नॉन बायो डीग्रेडेबल होती हैं। ये पानी के साथ मिलने पर आसानी से नहीं घुलते हैं। इससे पानी में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है जिससे जलीय जीवन, वनस्पति तथा मछलियों व पर्यावरण पर सीधा प्रभाव पड़ता है। ब्रम्होति व स्वां नदी विसर्जन के केंद्र रहते हैं। जहां विसर्जन किया जाता है। गणेश चतुर्थी व अन्य पूजा के दौरान मूर्ति विसर्जन पर ऑक्सीजन का स्तर गिर जाता है। प्लास्टर ऑफ पेरिस में लेड की मात्रा बहुत अधिक होती है। यह जलीय प्राणियों के लिए जान लेवा सिद्ध हुए हैं।
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पर्यावरण की रक्षा के लिए कैसे करें विसर्जन
जल में विसर्जन
- गणेश जी की छोटी मूर्ति का विसर्जन आप अपने घर में ही कर सकते हैं। इसके लिए बड़े टब में साफ पानी भरें और उसमें गणेश जी का विसर्जन कर दें। कुछ दिन तक टब में पानी और मूर्ति रहने दें। फिर किसी पेड़ के नीचे उस जल को छोड़ दें।
भूमि विसर्जन
यदि गणेश जी की मूर्ति बड़ी है तो आप किसी खाली जमीन या पार्क में बड़ा गड्ढा बनाकर गणेश जी की मूर्ति का भूमि विसर्जन कर सकते हैं। इससे नदी, तालाब में जल प्रदूषण नहीं बढ़ेगा।
गमले में भी कर सकते हैं विसर्जन
गणेश जी की प्रतिमा छोटी है तो आप फूल वाले गमले में रखकर भी गणपति का विसर्जन कर सकते हैं। प्रतिमा पर हर दिन जल चढ़ाएं। धीरे-धीरे करके गणेश जी की प्रतिमा मिट्टी में लीन हो जाएगी।
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क्ले और सोइल से भी बना सकते हैं
पंडित वेदाचार्य जयदेव तिवारी बताते हैं भगवान भाव के भूखे हैं। क्ले और सोइल से भी गणेश जी की मूर्ति बनाई जा सकती है। कई श्रद्धालु पार्थिव शिव¨लग बनाते हैं, जो काली-पीली मिट्टी से बनते हैं। पूजा पूर्ण होने पर उनका विसर्जन किया जाता है। इसी तरह पार्थिव गणेश प्रतिमा को भी बनाया जाए तो अधिक उपयुक्त रहेगा।
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ऐसा भी हो सकता है
मूर्ति विसर्जन के लिए स्थानीय स्तर पर प्रशासन के सहयोग से अस्थायी टैंक और पॉड बनाए जा सकते हैं ताकि मूर्तियों का विसर्जन यहां किया जा सके। इससे प्राकृतिक रूप से बने स्त्रोत प्रदूषित नहीं होंगे। यही नहीं घर में भी सांकेतिक रूप से विसर्जन किया जा सकता है।