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बुजुर्ग दंपती का सहारा बने संजय

कैप्टन संजय पराशर जसवां-परागपुर क्षेत्र के गांव गुरालधार की चपरू बस्ती के बुजुर्ग रिटायर्ड सूबेदार मेजर कश्मीर सिंह और उनकी बीमार पत्नी रीता देवी का सहारा बने हैं।

By JagranEdited By: Published: Thu, 28 Oct 2021 10:54 PM (IST)Updated: Thu, 28 Oct 2021 10:54 PM (IST)
बुजुर्ग दंपती का सहारा बने संजय
बुजुर्ग दंपती का सहारा बने संजय

संवाद सहयोगी, चितपूर्णी : कैप्टन संजय पराशर जसवां-परागपुर क्षेत्र के गांव गुरालधार की चपरू बस्ती के बुजुर्ग रिटायर्ड सूबेदार मेजर कश्मीर सिंह और उनकी बीमार पत्नी रीता देवी का सहारा बने हैं। संसाधनों की कमी के कारण वे चाहकर भी अपनी स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों को दूर नहीं कर पा रहे थे। इसी बीच कश्मीर सिंह का संपर्क कैप्टन संजय से हुआ। संजय ने इस दंपती को न सिर्फ स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाईं, बल्कि अपनत्व का भी अहसास करवाया।

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78 वर्षीय कश्मीर सिंह के घुटनों का आपरेशन होने के बाद वह कुछ समय चलने-फिरने में असममर्थ हो गए। पत्नी रीता फेफड़ों की बीमारी से जूझ रही हैं। उन्हें सांस लेने में अकसर तकलीफ हो रही थी। तब किसी संबंधी ने बताया कि संजय पराशर से संपर्क करें तो मदद मिल सकती है। इसके बाद कश्मीर सिंह ने संजय से बात की तो उन्होंने कश्मीर सिंह के घर पर आक्सीजन कंसंट्रेटर पहुंचा दिया। कंसंट्रेटर कश्मीर के घर में रख दिया और बाकायदा इसे आपरेट करने के लिए उनको प्रशिक्षित भी किया। इसके बाद कश्मीर ने संजय को बताया कि उनकी व पत्नी की आंखों की रोशनी कम हो गई है और चूंकि वे चलने-फिरने में असमर्थ हैं तो पराशर द्वारा लगाए जा रहे कैंप में नहीं आ सकते। इन हालात में संजय ने बुजुर्ग दंपती की नेत्र जांच के लिए विशेष टीम भेजी और उन्हें आखों के चश्मे निश्शुल्क उपलब्ध करवाए। तब उन्हें सुनने में भी कठिनाई पेश आने लगी। संजय ने उनके लिए कान की मशीनें भी दीं।

कश्मीर सिंह ने बताया कि समाज में कैप्टन संजय जैसे शख्स दूसरों की मदद और सेवा में ही अपनी जिदगी का ध्येय तलाशते हैं। पराशर जहां मुसीबत में फंसे व बेसहारों के मसीहा बन जाते हैं, वहीं समाज के बाकी लोगों को भी प्रेरणा देते हैं। परेशान व तंगहाल लोगों की राह के कांटे चुनने का संजय के पास एक तरह का हुनर है। कश्मीर सिंह की पत्नी रीता ने भावुक होते हुए कहा कि शायद पराशर जैसे ही आदमी होते हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि कुछ लोगों की अच्छाई पर ही दुनिया टिकी है। वहीं, पराशर का कहना था कि उक्त दंपती को सहारे व अपनेपन की आवश्यकता थी। वह उनके बेटे के समान हैं और उन्होंने कोई उपकार नहीं किया बल्कि अपना सामाजिक फर्ज निभाया है। आगे भी उनसे जो संभव होगा, वह भविष्य में इन बुजुर्गों की मदद करेंगे।


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