सब कुछ गंवा दिया साहब.. अब होश में आने से फायदा क्या
नशे के आदी युवा ने सुनाई आपबीती, चोरी छोड़िए, नशे के लिए तो मैंने डकैती भी की है, जीने की चाह कुछ भी नहीं रहा।
गगरेट, अविनाश विद्रोही। नशा एक ऐसा दानव है जिसकी लत अगर लग जाए तो एक हंसते खेलते इंसान की जिंदगी को नरक बना देती है। शुरुआत में लोग अपने दर्द का या अन्य परेशानी को भुलाने के लिए इसका सहारा लेते हैं लेकिन बाद में पता चलता है कि गम भुलाने के लिए मौत को गले लगा लिया। नशे के उलझते इस मकड़जाल में न जाने कितने मासूमों ने फंसकर अपनी जिंदगी और आत्मसम्मान को खो दिया है। कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जिनकी आमदनी बहुत अच्छी थी और आज पाई-पाई के मोहताज हैं।
लोगों के आगे हाथ फैलाने को मजबूर ऐसी ही एक कहानी है युवा अजय (काल्पनिक नाम) की। अजय दो होटल का मालिक था। उसका एक होटल पंजाब के अमृतसर में और दूसरा जम्मू में था। लेकिन कई बार कहते हैं न कि बहुत धन आ जाने पर भी लोग खुद को संभाल नहीं पाते और नशा करने को भी रईसों का स्टेटस सिंबल बना लेते हैं। ऐसा ही कुछ अजय के साथ भी हुआ। पैसा बहुत होने की वजह से दोस्तों के साथ महफिलें जमाकर शुरुआत शराब से की। फिर आदत चरस की हुई क्योंकि लोगों से मिलना पड़ता था और शराब की दुर्गंध से होटल का कारोबार खराब हो रहा था। इसलिए ऐसा नशा चुना जो मदहोश रखे लेकिन किसी को खबर न हो। धीरे-धीरे चरस का नशा भी नाकाफी होने लगा। लगभग तीन साल चरस के नशे के बाद चिट्टे का नशा शुरू किया। बीते नौ साल से लगातार चिट्टे की लत ने दोनों होटल बिकवा दिए। यह पूछने पर कि क्या नशे के लिए कभी चोरी की है... अजय की आंखें भर आईं।
कहा, ‘मैंने नशे के लिए दो बार डकैती भी की है। चोरियों की तो गिनती ही नहीं कितनी और कहां-कहां की हैं।’ अजय बिलख-बिलख कर रोने लगा। तीन महीने से नशामुक्ति केंद्र में रह रहा अजय बीते समय को याद नहीं करना चाहता। उसका कहना है कि शुरू में उसे बहुत तकलीफ होती थी। शरीर टूटता था, नशा करने को मन करता था। लेकिन बीते समय को याद कर मन को मजबूत किया। कई बार खुद से इतनी नफरत हो जाती थी कि मन करता था आत्महत्या कर लूं।
लेकिन अब धीरे-धीरे नशे से दूर चला गया हूं। यहां से निकल कर नर्ई जिंदगी शुरू करूंगा। लोगों को भी सलाह है कि नशे से दूर रहें। नशा कभी किसी को जिंदगी नहीं दे सकता है। नशे की लत किसी दुश्मन को भी नहीं लगनी चाहिए।